जब भी कभी अभिभावकों से मिलना होता है तब कई बार वे यही कहते हैं , क्या करें बच्चा हमारी बात ही नहीं मानता । हम कक्षा में बैठे हुए बच्चे के उठने - बैठने के ढंग , उसके बोलचाल के ढंग से आसानी से उसके घर के तौर तरीकों के बारे में जान जाते हैं. बच्चा कक्षा में ऊँचे स्वर में बोलता है , अभद्र भाषा का प्रयोग करता है, अक्सर मार पीट कर बैठता है - आदि आदतें बच्चे के साथ- साथ उसके घर की संरचना के बारे में भी बता देती हैं।
ऐसा क्यों होता है कि बच्चा बात नहीं मानता। बच्चा चाहे लड़का हो या लड़की , वह यह अच्छी तरह जानता है कि मेरे माता- पिता मुझे बहुत चाहते हैं और मैं अपनी बात इनसे कैसे मनवा सकता हूँ। जब बचपन में वह ज़िद करता है तो माँ कह देती है , “ चलो दिला देते हैं , क्या रुलाना !” बच्चा समझ जाता है कि रोने से माँ - पिताजी का दिल पिघल जाता है और वे उसकी बात मान लेते हैं। अब वह अपनी बात मनवाने के लिए इस अस्त्र का प्रयोग करता है। जब मनपसंद सब्जी नहीं बनी, तो वह रोने लगता है, “यह नहीं खाना “ , तो कई बार दादाजी या दादीजी या फिर पिताजी भी कह देते हैं कि चलो कुछ और बना दो , नहीं तो भूखा रह जाएगा। जब ऐसा अक्सर होने लगता है तो बच्चा जिद करने लगता है और हरी सब्जियों से दूर होता जाता है। पौष्टिक भोजन न कर वह जंक फ़ूड की ओर अधिक आकृष्ट होता है और धीरे - धीरे वह मोटापे का शिकार होने लगता है। कई बार अभिभावक यह कहते हैं कि मैम आप ही समझाइए, हमारी बात तो मानता ही नहीं. लेकिन आदतें तो इतनी जल्दी नहीं बदलती।
इसी तरह रोज एक नियमित ढंग से पढ़ाई न करने पर भी बच्चे कक्षा में सही परिणाम नहीं दर्शाते।जब अभिभावकों से बात की जाती है तो कहते हैं, “क्या करें बच्चा बात नहीं मानता।” यह नियमित पढने की आदत भी बचपन से होनी चाहिए। एक नियत समय पर पढाई के लिए बैठना, एक नियत समय पर खेलने के लिए जाना, टीवी देखना भी बचपन से ही नियमबद्ध होना चाहिए। जहाँ माता- पिता थोड़ी- सी ढील देने लगते हैं , बच्चा हाथों से निकलने लगता है, धीरे धीरे पढाई में दूसरों से पिछड़ जाता है, फिर लाख कोशिश करने पर भी अच्छे अंक नहीं ला पाता । हर नियम बचपन से लागू करना चाहिए. कहते हैं न बचपन एक कच्चे घड़े के समान होता है . जैसा उस पर डिज़ाइन बनाओगे, वैसा ही वह पकेगा।
यहाँ तक तो आपने देखा कि बच्चे की इन आदतों से आपका अपना परिवार ही सिर्फ नुकसान झेल रहा है। लेकिन जब यही बच्चा अपनी गलत आदतों से समाज को नुकसान पहुँचाने लगता है तो बात आगे बढ़ जाती है। जब गलत संगति में पड़कर वह झूठ बोलने लगता है, दूसरों पर हाथ चलाने लग जाता है, नशाखोरी करने लगता है , तो आंच दूसरों पर आने लगती है। ऐसे ही छोटी उम्र में बच्चों को स्कूटी, बाइक या गाड़ी की चाभी मिल जाती है, तो वे सड़क के नियमों को तोड़ने लगते हैं। बात न मानने की आदत के कारण सड़कों पर आए दिन अपना गुस्सा औरों पर निकालने लगते हैं , नतीजा यह कि अपने साथ- साथ दूसरों की ज़िन्दगी भी दांव पर लगा देते हैं। छोटी उम्र में सही गलत की पहचान नहीं होती, माँ – पिता की बात मानने की भी आदत नहीं होती , इसलिए उसे समझ नहीं आती और गैर -ज़िम्मेदाराना हरकत कर बैठता है। आजकल आए दिन सड़क पर होने वाले हादसों की ह्रदय विदारक खबरें सुनाई देती हैं।
इन सब समस्याओं से निपटने के लिए अभिभावकों को सही समय पर बच्चों का मार्गदर्शन करना होगा, बच्चा बात नहीं मानता , कह देने भर से वे अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त नहीं हो सकते। बच्चों के लिए जिस उम्र में जो सही है, उसे उतनी ही छूट मिलनी चाहिए। बच्चों की बेमतलब की जिदों के आगे घुटने टेक देने से बात हाथों से निकल जाती है। बच्चों से बार- बार संवाद करना सही रहता है। बच्चों को हर समय मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। हर उम्र की अपनी समस्याएं होती हैं अतः मिल- बैठकर उसका निवारण करने में ही भलाई है। बाद में यह कहना अच्छा नहीं लगता कि क्या करें बच्चा बात नहीं मानता !
उषा छाबड़ा