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भाग-2

11 अक्टूबर 2021

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कॉलेज में स्नातक का सीता का दूसरा साल था। सीता पढ़ाई में जितनी होशियार थी रूप सौंदर्य में भी उतनी ही धनवान थी। यह उमर का वह पड़ाव है़ जिसमें दिल में अनेकों उमंगे जवां होती रहती हैं और अनेकों ख्वाब पलकों से होकर दिल के आशियाने में घर बनाते रहते हैं। सीता भी इन ख़्वाबों से दूर न रह सकी। सुनहरे भविष्य के सपने संजोए वह भी जीवन पथ पर लगातार पढ़ती जा रही थी।
   सीता की खूबसूरती की चर्चा कॉलेज में हर लड़के की जुबाँ पर थी। मगर सीता कभी भी इस विषय पर ध्यान नही देती और अपनी ही दुनिया में खोई रहती थी। कभी-कभी कुछ लड़के उसके ऊपर फब्तियां भी कसते मगर फिर भी वह उन सबको अनदेखा कर आगे बढ़ जाती।
  ऐसे ही एक दिन सीता अपनी सखियों के साथ कालेज कैंपस में एक आम के पेड़ के नीचे बैठी अपनी किताबों में खोई हुई थी कि दो-तीन लड़के जाकर वहीं पास में बैठ गये और सीता को निशाना साधकर तरह-तरह की बातें लगे। उनमें से एक ने कहा, " काश! हम भी कोई किताब होते तो कितना अच्छा होता, इन खूबसूरत हाथों का स्पर्श पाकर हमारी तो किस्मत ही निखर जाती।" इतना सुनकर बाकी सब जोरों से हंसने लगे। इसी तरह से लगातार हो रहें कमेंट से सीता उब गई और वहाँ से उठकर जाने लगी। तभी उन लड़कों में से एक ने कहा," अकेले-अकेले कहाँ जा रहे हो, हमें साथ ले लो जहाँ जा रहे हो।" यह सुनकर सीता तो कुछ न बोली मगर  अंकिता ने गुस्सा होते हुये कहा, "तुम्हारी अम्मा की गोंद में जा रहें हैं, तुमको भी चलना हो तो चलो।" इतना सुनते ही सभी लड़के एकदम से उग्र हो गये और अनेकों गलियाँ बकने लगे।
  अंकिता को उनके साथ दो-दो हाथ करने को तैयार  होते देख सीता उसका हाथ पकड़कर उसे खींचते हुये बोली, "छोड़ो भी इनके मुँह क्या लगना। कीचड़ में पत्थर मारने से अपना ही दामन गंदा होता है।" अंकिता न चाहते हुये भी सीता के साथ चल पड़ी। जैसे ही दोनों अपने क्लासरूम में पहुँचे अंकिता  सीता के ऊपर एकदम से भड़क गई और बोली, "तुम इन लफंगों से इतना डरती क्यों हो?"
 सीता बड़े ही शांत लहजे से बोली, "मैं डरती नहीं हूँ मगर कुत्ते के भौंकने पर खुद भी तो उन पर भौंकना नहीं शुरू कर देते।" 
   यह सुनकर अंकिता एक लंबी साँस लेते हुये बोली, " आज तो बच गये साले। लेकिन जिस दिन मेरे हाथ लग गये, उनकी सात पुश्तें किसी लड़की को छेड़ने का साहस न करेंगी।"
  अंकिता की बातें गलत नहीं थीं। वह मार्शल आर्ट में चैंपियन थी और उन जैसे दस-बारह लड़कों को एक साथ धूल चटाने की क्षमता रखती थी। सीता भी यह बातें भलीभाँति जानती थी मगर वह किसी बात को बेकार का तूल देने से बचना चाहती थी।

  अगले दिन कॉलेज पहुँचते ही वे लड़के सीता के सामने आकर माफी माँगने लगे। इस समय उनकी हालत देखकर सीता एकदम से चौंक पड़ी। उन लड़कों में दो के सिर पर पट्टी बँधी थी और एक के हाथ पर प्लास्टर था। सीता को शुरू-शुरू में कुछ समझ नहीं आया कि क्या माजरा है फिर यह सोचकर कि यह सब सारा किया धरा अंकिता का हैं वह तेजी से क्लासरूम की तरफ बढ़ गई। क्लास रूम में पहुँचते ही अंकिता को एक तरफ ले जाकर सीता शिकायत करते हुये बोली, "कर ली अपने मन की। क्या जरूरत थी यह नया बखेड़ा खड़ा करने की?"
  अंकिता कुछ न समझ पायी कि आते ही सीता यूँ अचानक उसपर भड़क क्यों रही है़। वह सीता से बोली, "पहले कुछ बताएगी भी कि मैने किया क्या है़, या बस मुझे सुनाती ही रहगी?"
  सीता उग्र होते हुये बोली, उन लड़कों को मारने की क्या जरूरत थी और वह भी इस तरह? किसी का सर फूटा है़ तो किसी का हाथ टूटा है़।"
 अंकिता मासूमियत से जवाब दी। "किन लड़कों की बात कर रही हो तुम? मैने कब किसी को मारा?"
  सीता बिगड़ते हुये बोली, "अब ज्यादा नाटक मत कर। तुझे नहीं पता कौन लड़के? अरे वहीं! जो कल उलटी-सीधी बातें कर रहे थे।"
  अंकिता हंसते हुये बोली, " क्या....? उनकी ठुकाई हुई है़। अरे वाह! ये तो बहुत अच्छा हुआ। मगर इससे खुश होने के बजाय तू क्यों इतनी दुःखी हो रही है़? तेरे रिश्तेदार लगते हैं क्या?"
 सीता उसके बालों को नोचती हुई बोली, " मेरे रिश्तेदार क्यों होने लगे। मैं तो तुझे लेकर परेशान हूँ।"
  अंकिता, सीता को समझाते हुये बोली,"अरे मेरी भोली सीता! मैने किसी को नहीं मारा है़। इसलिए तुम्हें इतनी चिंता करने की जरूरत नहीं है़।"
  सीता यह सुनकर चकित होते हुये बोली, "अगर तुमने नहीं मारा तो फिर उन्हें किसने....।"
  अंकिता बोली- छोड़ो ना..!  हमे क्या लेना-देना? पड़ गये होंगे किसी हत्थे। अब हर कोई तुम्हारी तरह सहनशक्ति की मूरत तो है़ नहीं। सो उनके किये कर्मो का तत्काल फल दे दिया होगा।"
  उसके बाद सीता भी इस घटना को और तवज्जो तो न दी मगर फिर भी उसका मन पूरी तरह तक स्थिर न हो सका। उसके मन में बार-बार एक ही सवाल उठ रहा था कि अगर किसी के साथ उन लड़कों की लड़ाई हुई थी तो फिर वह सब आकर सुबह उससे माफी क्यों माँग रहे थे?"

    सीता इन्हीं खयालों में खोई थी कि कब उसे नींद आ गई पता ही न चला। सुबह जगने के बावजूद उसकी आंखों में जलन महसूस हो रही थी। शायद रात को नींद पूरी न होने की वजह से ऐसा था। 
  आज सुबह जगने के बावजूद सीता को रात की पूरी घटना याद रही। ऐसा पहली बार हुआ है़ कि उसे सब कुछ याद रह गया। हर बार वह रात की घटना याद करने की कोशिश करती थी और न याद आने पर परेशान होती थी मगर आज उसका उल्टा हो रहा है़। वह रात में देखे हुये ख्वाब को भूल जाना चाहती है़ मगर लाख कोशिशों के बावजूद भी वह भूल नहीं पा रही है़। वह जब तक किसी काम में व्यस्त रहती, तब तक ठीक रहती मगर ज्यों ही काम  खत्म करके वह खाली बैठती पुरानी यादें उसे आ घेरती और वह उसी की रवानी में न चाहते हुये भी खोती चली जाती।
   सारा दिन इसी तरह अनचाहे उलझनों से उलझते-उलझते बीत गया। फिर भी शाम होते-होते पिछली रात की घटना काफ़ी हद तक सीता के दिमाग से उतर चुकी थी। रात को अपनी पढ़ाई में खोई-खोई नींद के आगोश में खो गई। नींद में खोने के कुछ ही देर बाद सीता फिर उन्ही पुराने दिनों में पहुँच गई। शायद पिछली रात की घटना ख्वाब का रूप लेकर उसके अंतःस्थ पर छा गया था। ऐसा अक्सर होता है कि हम दिन भर जिस बारे में सोचते हैं वहीं नींद में ख्वाब बनकर हमारे सामने हाजिर हो जाता है़। सीता के साथ भी यहीं हो रहा था। 
   
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शापित... अ हांटेड लव स्टोरी
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