आयुध नगर के विशाल वैभवशाली महल में राज सभा सजी थी, ऐसी राज सभा जहाँ दया और करुणा जैसे भाव शायद ही किसी के हृदय में उद्गम करते हो । इसी सभा में रत्नजड़ित स्वर्ण सिंघासन पर बैठ महाराज शक्ति सिंह अपने तानाशाही नियम और फैसले सुनाता था । और उसकी दोनों ओर शक्ति सिंह का मंत्री मण्डल बैठा था, मंत्री मण्डल के समस्त सदस्य भी अपने महाराज की तरह ही उग्र और कठोर व्यवहारी थे ।
तेजस के खो जाने की खबर उड़ते उड़ते शक्ति सिंह के कानों में जा पहुंची थी , और इसी अपराध के लिए , आज वरुण सभा के बीच अपनी नजर और सर झुकाए खड़ा था ......
वहीँ पहली मंजिल पर पर्दे की ओट से अमय और आनंदनी की नजर भी वरुण पर टिकी थी ।
शक्ति सिंह की आँखे क्रोध से लाल हुई जा रही थी, आपा खो शक्ति सिंह सिंघासन से उठ खडा होता है, और झुंझलाता हुआ वरुण से पूंछता है,
" तुम कहाँ थे, जब वह शेर यहाँ से भाग निकला ...??"
" जी , क्षमा करें महाराज , जरा सी आँख लग गई थी । पर मुझे एक मौका दे, मैं तेजस को जल्द ही आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा। "
" यह तो तुम्हे करना ही होगा, वोभी 7 दिन के भीतर । और हमसे सेना या किसी और तरह की मदद की अपेक्षा मत करना। रही बात क्षमा की, तो, जिसे इस बात का अहसास न हो की खुला शेर नगर में कितनी तबाही मचा सकता है, उसे बिना दण्ड दिए छोड़ दे, ऐसा शक्ति सिंह का स्वभाव नही, ताकि आगे से कोई ऐसी गलती दोहरा ना सके ।"
वरुण सर झुकाए शान्त खड़ा था, शायद वह जानता था की उसके कुछ बोलने का कोई लाभ नही है । पर उधर पहली मंजिल पर खड़ी राजकुमारी कुछ बोलना जरूर चाह रही थी, जिसे अमय उसके मुह पर हाथ रख रोक लेता है ।
तभी शक्ति सिंह की आवाज़ फिर गूंजती है, "अब खड़े क्यों हो, अपना अपराधिक चेहरा ले कर जाओ यहाँ से, और यह भी जान लो, कि यदि 7 दिन के भीतर तुम उसे न ढूंढ़ सके तो सजा मृत्यु दण्ड होगी । "
मृत्यु दण्ड सुन वरुण का चेहरा सफेद पड़ जाता है और वह तुरन्त ही आँखे झुकाए वहाँ से चला जाता है, वह जानता था कि गलती हुई है, और अब उसे ही सब सही करना है । पर स्वयं से ज्यादा चिंता उसे तेजस की थी, क्यों की उसे शिकार करना नही आता था , वरुण जनता था कि जब तक वह बाहर है, तब तक उसे खाने को कुछ नही मिलेगा ।
इधर राजकुमारी और अमय पश्चाताप में गले जा रहे थे, अमय आनंदनी को डाँटते हुए कहता है, " मैंने कहा था, कि कुछ गड़बड़ न हो जाए, पर तुम् नही मानी, अब भुक्तो ? "
पर राजकुमारीं बस रोए जा रही थी, इस पछतावे में की, उसकी गलती की सजा उसके वरुण को मिलेगी । आखिर प्रेम जो करती थी उससे ।
इधर तेजस घास के मैदान में प्यासा घूम रहा था, उसे कोई भी जगह जानी पहचानी नही लग रही थी, और उसका गला पानी के बिना सूखा जा रहा था । तभी कुछ ही दूर पर एक बड़ी चट्टान की ओट में उसे एक चरवाहा नजर आता है, जो अपनी भेड़ें चरा रहा था, तेजस उसके निकट जाता है तो वह चरवाहा भोजन कर रहा था, मदद की आस में तेजस उसकी बगल सट कर बैठ जाता है ।
अपने बगल शेर को बैठा देख, चरवाहा भयभीत हो, अपना सब कुछ छोड़ वहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाता है । चरवाहे की छोटी बटुली में रखा पानी पी तेजस अपना गला तर कर, वहीं चट्टान की ओट में ही लेट जाता है । तभी उसे राजकुमारी के नूपुर की छन छन सुनाई देती, जो उसे बेहद पसंद थी, और वह देखता है कि, राजकुमारीं उसके निकट आ उसे सहला रही है, तेजस उससे गले लगने के लिए उठता पर आँखे खुलते ही वह पुनः अपने को उसी मैदान में अकेला पता है ।
इधर वरुण मदद की आस में सर्कस के सरदार के पास जाता है, और सरदार भी उसे मना नही कर पता, तथा उसके साथ अपने 10 आदमियों को तेजस को ढूंढ़ने भेज देता है । वरुण और बाकि सब आदमी, अलग अलग दिशा में बिखर जाते है ।
साँझ ढलने को थी, सूर्य अपना तेज समेट, शान्त शिथिल हो, सागर में छुपने जा रहा था, पंक्षियों के समूह अपने निड़ को लौट रहे थे, और यह सब देख तेजस को महल और राजकुमारी की और भी ज्यादा याद आने लगती है । अतः वह उस चट्टान की ओट छोड़ आगे बढ़ जाता है ।
अगली सुबह
पूर्वांचल से उदित होते सूर्य की आभा धरा से विलय करने को तत्तपर थी , तेजस को खोए तीन दिन हो चुके थे, पर वरुण अब तक उसे ले कर नहीं लौटा था । समय बीतने के साथ साथ राजकुमारीं के प्राण भी निस्जेत होते जा रहे थे , उसे भय था कि अगर वरुण तेजस को ढूंढ़ने में असफल रहा तो, कहीं उसे मृत्यु दण्ड न मिल जाए ।
इधर भूँखा तेजस घूमते घूमते एक बाज़ार में जा पहुँचता है, बाजार में शेर देख भगदड़ मच जाती है। इसी भगदड़ में एक बच्ची शेर के ठीक सामने ज़मीन पर गिर जाती है और भय बस उठ नही पाती, ना ही किसी अन्य व्यक्ति में हिमम्त होती है कि उसे उठा ले, सब अपनी जान बचा कर भागना चाहते थे । तेजस जैसे ही उसके सामने पहुँचता है, बच्ची भय से चींख कर अपनी आँखे मूंद लेती है, पर तेजस उसे बिना सूँघे ही आगे चल देता है । उसकी आँखे कुछ ही दूर पर कसाई की दुकान में रखे मांस पर पड़ती है । शेर के इस अजीब बर्ताव से लोग अचंभित थे । अतः शीघ्र ही यह बात शक्ति सिंह तक पहुँच जाती है।
दूसरी ओर राजकुमारीं का रो रो कर बुरा हाल था, वह अमय से कहती है, "चलो हम चल कर पिताजी से सच्चाई बता देते है कि, इसमें वरुण की कोई गलती नही है। "
अमय घबरा जाता है, और कहता है " पागल हो गई हो, तुम् जानती भी हो इसका क्या अंजाम हो सकता है ?"
" कुछ भी हो, हमें मृत्यु दण्ड तो नही मिलेगा ना पर अगर वरुण को तेजस नही मिला तो उसे जरूर मृत्यु ....." राजकुमारी इतना बोल कर रोने लगती है ।
रात भर आनंदनी वरुण के बारे में सोच सोच कर परेशाना होती रही , और अंत में उसने एक निर्णय लिया ।
वह जानती थी की उसका निर्णय उसके पिता की नजर में देशद्रोह है पर वह मजबूर थी.....
राजकुमारीं आखिर क्या निर्णय लेती ...?
क्या वह वरुण को बचा पाती है...?? और
क्या तेजस वापस आ जाता है...?
सभी सवालों के उत्तर जानने के लिए पढ़ना ना भूले THE TWINS के आने वाले सभी भाग ।
क्रमशः