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भाग ७ वापसी

8 अक्टूबर 2021

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अमय की उपस्तिथि से अंजान , आनंदनी अपने पलंग पर, हाथ में एक किताब पकडे, आँख मूंद तेजस और वरुण की याद में खोई थी, उसकी आंखे अब भी नम थी । इतने में अमय उसके पास कब आया उसे पता भी ना चला ।
पहली बार अमय ने उसे इतना नीरस और मुरझाया हुआ देखा था, उसे बहुत ही दुःख हो रहा था कि, वह अपनी सखी के लिए कुछ कर भी नही पा रहा । तभी उसकी नजर राजकुमारीं के हाथ में रखी किताब पर पड़ती है,वह तुरंत ही उसके हाथ से किताब ले दबे स्वर में  पढ़ता है ।
" श्रीमद्भागवतगीता "
   आनंदनी झटके से उठ  अपनी किताब उसके हाथ से वापस लेना का प्रयास करती है, पर अमय अपना हाथ पीछे कर लेता है ।
और आर्श्चय से पूँछता है, " ये तुम्हे कहाँ से मिली, और तुम्हे पता है न कि, यदि तुम्हारे पिता  जी को पता चल गया तो क्या होगा "

" क्या होगा...!!! ज्यादा से ज्यादा प्राण ले लेंगे, तो लेने दो कम से कम इस आत्मग्लानि से तो मुक्ति मिलेगी, कि मेरे कारण किसी और की जान खतरे में है ।" आनंदनी दुःख और क्रोध के मिश्रित भाव से बोलती हुई, रो पड़ती है ।

अमय उसकी यह दशा देख , किताब पलंग पर फ़ेंक, उसके कंधों को पकड़ उसे शान्त करता हुआ प्रेम से  समझता है, " शान्त हो जाओ अन्नु, मुझे भी उतना ही दुःख है जितना तुम्हे , पर महाराज के आगे हम क्या कर सकते है ।"

" मैंने निर्णय ले लिया है अमय ।"

" कैसा निर्णय...?" अमय अनिश्चितता के भाव से पूंछता है ।
राजकुमारीं पलंग पर पड़ी गीता को देखती है, और अमय घबरा जाता है । कुछ क्षण मौन के बाद राजकुमारीं बोलती है ।
" पडोसी राज्य में एक माधव का मंदिर है, जहाँ सबकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है ..."

आनंदनी की बात बीच में ही काटते हुए अमय बोल पड़ता है,
" तम पूजा करोगी, मंदिर जाओगी, शक्ति सिंह के राज्य में..? "

" हाँ जाऊँगी, पूजा करुँगी और व्रत उपवास भी रखूंगी, तुमसे तो मदद करते नही बना ना, जाओ बता दो जाके पिता जी को, जो सजा देना है दे देंगे मुझे । " राजकुमारी क्रोध में बोल पड़ती है ।

अमय बिना कुछ कहे तमतमाता हुआ बाहर चला जाता है ।

राजकुमारी ने ना कभी पूजा की थी, न ही कभी देखी थी, वह मन ही मन सोचने लगती है । "आज तेजस को खोए 6 दिन हो चुके है कल तक अगर नही मिला तो वरुण का क्या होगा ??"
     उसने यह तो सुना था कि लोग मन्नत मांगते है, मेरी यह कामना पूरी कर दो, मैं प्रसाद चढ़ाऊंगा या फिर कुछ त्याग दूँगा , पर उसे समझ नही आ रहा था कि वह क्या करे।
वह दान करने के लिए कुछ समान ढूंढ़ने लगती है है, तभी उसकी नजर अपने सबसे प्रिये रत्नजड़ित हार पर पड़ती है, जो उसकी दादी ने उसे दिया था ।
      राजकुमारी उस खूबसूरत हार को उठा कर, एक चादर ओढ़ती है और महल के बाहर चल देती है ।
  साँझ होने को थी, आनंदनी के मन में विचारो, आशंकाओं का बवंडर चल रहा था, वह समझ नही पा रही थी कि क्या करे । कभी तेजस और वरुण की चिंता तो कभी, पिता के विरुद्ध जा ईश भक्ति का भय , इसी उधेड़बुन में वह कब नदी किनारे पहुँच गई उसे पता भी ना चला । वह् जानती थी की, अपने राज्य से बाहर जाना  उसके लिए संभव नही , अतः प्रार्थना करने नदी किनारे ही आई थी ।
           मन ही मन ईश्वर को याद कर, कहती है,
" हे प्रभु, आप सब की प्रार्थना सुनते है, मुझे कोई पूजा विधि नही आती, आपको कैसे कुछ अर्पण करु यह भी नही जानती , पर अपना सबसे प्रिय हार मैं इस नदी में प्रवाहित कर आपको भेंट कर रही हूं, मेरे तेजस को जल्द ही लौटा कर वरुण की रक्षा करो ।"
इसी प्रथना के साथ राजकुमारी उस मणिजड़ित हार को ईश्वर का नाम ले नदी में प्रवाहित कर देती है, और आंख मूंद कर प्रार्थना करने लगती है, उसकी आँखों के पोर से अश्रु झर रहे थे ।
        कुछ क्षण बाद जब वह आँखे खोलती है तो उसे, नदी उस पार तेजस पानी पिता नजर आता है, वह सोच में पड़ जाती है, कि क्या इतनी जल्दी मेरी प्रार्थना स्वीकार हो गई , या यह मेरा भ्रम है । तभी तेजस भी उसकी और देख जोर से दहाड़ता है । आनंदनी कि खुशी का ठिकाना नही रहता, आज तो 6 दिन ही पूरे हुए, अब वरुण को कुछ नही होगा ।
वह भाग कर पुल पर से जा, तेजस को अपने साथ ले आती है । और मन ही मन ईश्वर का बहुत बहुत धन्यवाद करती है । इतने दिनों बाद राजकुमारी को देख तेजस की चाल में भी बदलाव आ जाता है, मानो उसमे नई फुर्ती आ गई हो ।
           अस्त होते सूर्य की सिंदूरी लालिमा में दोनों अन्धकार में प्रकाश की चिंगारी के भाँति चमक रहे थे ।

राजकुमारी तेजस के साथ जब महल के दरवाजे पर पहुँचती है तो , पाती है की उसके पिता शक्ति सिंह अपनी रानी सूर्यमाला के साथ वही उसका इंतज़ार कर रहे थे , शायद उन्होंने उसे जाते देख लिया था ।
       पिता को देख राजकुमारी खुशी से उसके निकट जा कहती है, " पिता जी देखिये तेजस मिल गया ।"

पर शक्ति सिंह अब भी क्रोध में था, वह आनंदनी को झटकते हुए कहता है, " हाँ देख रह हूं, पर अब इन दोनों की जगह महल में नही सर्कस में है, यही इसकी सजा है "।

वरूण और तेजस को सर्कस में भेजा जाएगा, यह सुन कर राजकुमारी बेहोश हो जाती है ।

क्रमशः

प्रचंड का क्या हुआ...???
और क्या होगा तेजस और वरुण का..??
क्या राजकुमारीं बचा पाएगी दोनों को ..???
जानने के लिए पढ़ते रहे...कहानी के आने वाले भाग ।


Jyoti

Jyoti

बहुत बढ़िया

9 दिसम्बर 2021

Ranjeeta Dhyani

Ranjeeta Dhyani

शानदार👏

9 अक्टूबर 2021

विष्णुप्रिया

विष्णुप्रिया

9 अक्टूबर 2021

बहुत् बहुत् आभार आपका..💐🙏

9
रचनाएँ
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