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भाग ४ नामकरण

6 अक्टूबर 2021

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     इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में काल ही है जो निरंतर चलता रहता है । यदि खुशियाँ साथ है तो समय बीतते देर नही लगती, पर वही दुःख और पीड़ा में एक दिन भी वर्ष बराबर  प्रतीत होता है। तेजस और प्रचंड को इस राज्य में आए दो बरस बीत गए । समय के साथ अब दोनों ही अपने अपने वातावरण में ढल चुके थे । देह के आकार के साथ साथ, उनके पंजे और दांत और भी ज्यादा नोकीले और खतरनाक हो गए थे, तथा उनकी गर्दन पर बाल भी आने थे ।
        राजकुमारी और तेजस का प्रेम और भी प्रगाढ़ होता जा रहा था, साथ ही साथ वरुण अमय और आनंदनी की मीत्रता भी घनिष्ट हो गई थी । पर समय पा मीत्रता की इसी डाली पर प्रेम पुष्प भी खिलने लगे थे । वरुण जिस तरह प्रेम भाव से तेजस का ध्यान रखता था , दिन प्रति दिन राजकुमारी के ह्रदय में उसके लिए प्रेम और सम्मान बढ़ता ही जा रहा था ।
लेकिन राजकुमारी अपने प्रेम को हृदय में ही दबा कर रखती थी, क्योंकि वह जानती थी की, वरुण का उसके जीवन में आना असंभव ही है । पर कहते है ना, प्रेम भला कब छिपाए  छिपा है, यह तो व्यवहार में झलकता है, अतः इस बात का अंदेशा  वरुण के साथ साथ अमय को भी हो गया था। जिस कारण वरुण राजकुमारी से यथा संभव दूरी बना कर रखता था । पर अमय समय मिलते ही इस बात को लेकर आनंदनी को यदा कदा चिढाने से बाज नही आता था । एक दिन आनंदनी सुबह सुबह शीशे के आगे सॉज सवंर कर अपने  कामलनायनों में काजल लगा रही थी, की अमय पीछे से आ पूंछता है, " आज बड़ी सवेरे सवेरे तैयार हो गई, कहीं जा रही हो तो मैं भी चलूंगा ।"
" नही कहीं नहीं, वरुण ने कहा था आज वह सवेरे तेजस को लेकर उपवन में टहलाने जाएगा, तो, मैं भी जा रही हूं ।"
राजकुमारीं ने उत्तर दिया ।

अमय जोर जोर से हँसने लगा । आनंदनी को उसे देख गुस्सा आ जाता है और क्रोध में कहती है, " इसमें हँसने वाली क्या बात है...? "

अमय मुह चिढ़ाते हुए कहता है, " झूठ क्यों बोलती हो, जैसे मैं नही जानता, तुम तेजस से कम, वरुन से जायदा मिलने जा रही हो ।"
उसकी बातें सुन आनंदनी झेंप जाती है और आँखे नीची कर बहार चली जाती है । और पीछे पीछे अमय भी चल देता है । दोनों उपवन में पहुँचते है तो, वरुण और तेजस पहले से वहाँ था । आनंदनी को देख तेजस उसकी ओर दौड़ कर पहुँच जाता है, राजकुमारीं पंजो पर बैठ तेजस के नरम मुलायम बालों को सहलाने लगती है और तेजस भी  अपनी आंखे मूंदे गर्दन उपर उठा कर खड़ा हो जाता है ।
   कुछ देर प्रेम आदान प्रदान करने के बाद अनंदिनी और तेजस साथ साथ टहलने लगते है, कभी तेजस उसका दुपट्टा पकड़ कर भागता तो कभी उसके इर्द गिर्द गोल गोल घुम्ता, तो कभी उसके गले लग जाता और कभी तरह तरह की कलाबाजियां दिखा अपनी खुशी का इजहार करता ।
   यह सब देख अमय, राजकुमारी के पास आता है, और उसे छेड़ते हुए कहता है, " तुम्हे शादी करने की क्या जरुरत है तुम्हारे पास तो बिना शादी के ही एक बच्चा है, और तुम् उसकी माँ ।"
" अमय तुम् अपनी हरकतों से बाज नही आओगे ना " आनंदनी झूठा क्रोध दिखाते हुए कहती है ।
अमय उसकी चोटी खींच, मुह चिढ़ा कर भाग जाता है, आगे आगे अमय और उसके पीछे आनंदनी। राजकुमारीं  अमय को पकड़ नही पाती और थक कर तेजस के पास आ कर बैठ जाती है । तेजस इन दोनों की हरकतें बड़े ही गौर से देख रहा था ।
तभी अमय एक गलती कर बैठा है वह माजक में तेजस की पूंछ थोड़ा सा खींच लेता है । तेजस तो मानो तैयार ही बैठा था, थोड़ा सा छेड़ते ही तेजस अमय की तरफ दहाड़ कर दौड़ पड़ता है, भयग्रसित अमय इससे पहले कुछ समझ कर भाग पता, तेजस उसका पैर अपने जबडें में फँसा लेता । तुरंत ही परिस्थिति को देख वरुण और आनंदनी भी तेजस को दूर करने की कोशिश करते है, पर तब तक अमय के पैर में तेजस के नोकीले दांत घाव कर चुके थे ।
घाव देख आनंदनी  घबरा जाती है । तभी वरुण कहता है 

" घबराए नहीं मेरे पास एक जड़ी बूटियों का मलहम है जिसेसे घाव कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएगा। आप भीतर जाए मैं मलहम लेकर आता हूं ।"

आनंदनी अमय को सहारा दे, उसे कक्ष में ले जाती है ।
कुछ क्षण बाद वरुण मलहम ले कर आता है, और बड़े ही आराम से अमय के घाव पर लगाते हुए उसे समझाता है,

" इससे आपको दर्द भी नही होगा, और घाव भी जल्द ही ठीक हो जाएगा, पर आगे से ध्यान रखें ऐसी कोई भी हरकत न करे, यह आपकी कोई पालतू बिल्ली नही है, अपितु सबसे खतरनाक प्रजाति का बब्बर शेर है, वो तो शुक्र है कि इसने जूते पहन रखें है, और ना ही इसके भेदक दाँत है, वरना आज तो आपका पैर गया था ।"

" मुझे लगा ये पालतू है तो..."
अमय की बात काटते हुए वरुण फिर बोल पड़ता है,

" पालतू है पर शेर है, और अब शावक नही रहा जो आप इसे अपने एक हाथ से ढकेल दें । ये तो आप दोनों की खिंचा तानी देख कर इसने भी वैसा ही किया, वरना अगर इसने पूरा जोर लगाया होता तो, आप अंदाजा लगा ही सकते है कि क्या हुआ होता । अतः आगे से ध्यान रखना ।"
वरुण की बातें सुन दोनों हाँ में सर हिलाते है और ऐसा ना हो इसका ध्यान रखने का वादा करते है ।
वरुण जा ही रहा होता है कि, राजकुमारी भी दोनों से एक वादा लेती है कि, आज जो भी हुआ वह बात किसी भी तरह उसके पिता शक्ति सिंह तक न पहुंचे, वरना उसे डर था कि कहीं  तेजस को उससे अलग न कर दिया जाए ।

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वही दूसरी ओर प्रचंड अब तक युद्ध के कई पैंतरे सीख चूका था । वहाँ काम कर रहे एक व्यक्ति से सर्कस का सरदार कहता है, " जाओ आज प्रचंड को रिंग में ले आओ, जरा देखे तो उसमें कितनी जान है। "
थोड़ी ही देर में प्रचंड एक खुले मैदान में रिंग के अंदर पहुँच जाता है । 2 सालों में आज प्रथम बार उसके और संसार के बीच लोहे की सलाखें नही थी, बस थी तो एक गहरी खाई , खाई के उस पार लकड़ी से बाड़ा बनाया गया था, पूरी रिंग के एक ओर, एक बड़ा सा दरवाजा था जिससे उसे भीतर लाया गया था । अतः इस रिंग में थोड़ा सा ही सही, आज प्रचंड स्वयं को कैद मुक्त महसूस कर रहा था । परिणामस्वरूप वह पूरी रिंग में दहाड़े मरता हुआ,  घूम घूम कर चक्कर काट रहा था । उसकी चाल वास्तव में किसी महाराज से कम न थी, और दहाड़....दहाड़  इतनी भयानक  की सर्कस से दूर जंगल में भी वृक्ष पर बैठे पक्षी भय से उड़ जाते है, तथा सर्कस के भीतर, कुछ क्षण को सभी जानवर शान्त हो जाते है ।
प्रचंड रिंग में चक्कर काट ही रहा था कि उसे अचानक से अपने सामने से आता हुआ, पीले रंग पर काली धारियाँ लिए एक बाघ नज़र आता है, दोनों की नज़र एक दूसरे पर पड़ती है , और दोनों ही एक दूसरे को जानी दुश्मन की नजरों से देख , कुछ आवाज़ें निकाल, एक दूसरे को डराने की कोशिश में थे । रिंग के बहार एक ओर सरदार खुशी में बड़े ही गौर से प्रचंड के एक एक कदम और हरकत पर नजर गड़ाए था । बाघ और प्रचंड कुछ देर एक दूसरे की आँखों में आंखे डाल घूमते है और फिर तेजी से एक दूसरे की ओर कूद पड़ते है, दोनों की तकरार से एक बार पूरी रिंग काँप उठती है । प्रचंड पीछे के दोनों पैरों पर खडा हो आगे के दोनों पैरों से बाघ के मुह पर जबरदस्त वार करता है, प्रचंड का प्रहार इतना तेज़ और जोर दार था कि, बाघ के चेहरे पर गहरा घाव बन् जाता है, जिससे रक्त की मोटी धार फूट पड़ती है ।
      बाघ भी प्रचंड पर उल्टा प्रहार करता है, परंतु प्रचंड बिजली की भाँति एक के बाद एक  वार किए जा रहा था, ठीक वैसे , जैसे अर्जुन ने एक के बाद एक वार से भीष्म पितामह को बाणों की शैया पर लिटा दिया था ।

        बाघ पर प्रचंड को भारी पड़ता देख सरदार अत्यंत ही प्रसन्न होता है, और इशारे से एक व्यक्ति को युद्ध बंद करवाने का आदेश देता ।

क्रमश :


Jyoti

Jyoti

मजेदार

9 दिसम्बर 2021

.........😊😊😊😊😊😊

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आगे क्या होगा इंतिजार रहेगा अगले भाग का

6 अक्टूबर 2021

विष्णुप्रिया

विष्णुप्रिया

6 अक्टूबर 2021

बहुत् बहुत् आभार भैया💐

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