यह कहानी है प्राचीन भारत की , उस समय की, जब भारत कई छोटी बड़ी रियासतों में बँटा हुआ था, जिनमें कई राजा अपने छोटे बड़े राज्यों में शासन किया करते थे ।
इनमें से कुछ तो अत्यधिक न्यायप्रिय और प्रजापालक होते थे, तो वहीँ दूसरी और कुछ अत्यंत की क्रूर और अत्याचारी हुआ करते थे ।
ऐसा ही एक प्रदेश था, आयुधनगर । आयुधनगर की प्रजा ठीक अपने महाराज " शक्ति सिंह " के समान , क्रूर और अत्याचारी थी, प्रजा ऐसी जिसे युद्ध और रक्त से अतिशय लगाव था , फलस्वरूप नगर में हर माह एक ऐसे उत्सव का आयोजन होता था, जहाँ खूंखार जानवरों को इंसानों से लड़ाया जाता था, और महाराज समेत सभी लोग इस खूनी उत्सव का बड़ी तल्लीनता से आनंद लेते थे ।
इसके इतर, शक्ति सिंह ने अपने राज्य में ईश भक्ति और पूजा पाठ पर भी पाबंदी लगा रखी थी, यदि गलती से भी कोई पूजा पाठ, या भजन गाता दिख जाए तो उसे देशद्रोही करार किया जाता था, अतः सजा के तौर पर उसे खूनी उत्सव में खूंखार जानवरो से लड़ने के लिए छोड़ दिया जाता था।
पर जिस तरह कमल कीचड़ में ही खिलता है, उसी प्रकार , शक्ति सिंह के यहाँ भी एक कमलीनी, उसकी पुत्री के रूप में खिली थी, नाम था, राजकुमारी 'आनंदनी ' ।
आनंदनी अपने पिता के विपरीत बड़ी ही सौम्य, दयालू, सुशील और स्नेहिल थी । वैसे तो शक्ति सिंह को राजकुमारी का दयालू होना बिलकुल भी ना भाता था, पर उसके अलावा शक्ति सिंह के कोई और संतान भी न थी, अतः वह अनंदिनी को अत्याधिक प्रेम करता था, और उसे अपनी तरह बनाने का प्रयास भी ।
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भारत का गिरीवन पुरे विश्व में, सबसे खरतनाक और दुर्लभ प्रजाति के बब्बर शेरों के लिए प्रसिद्ध है । ये शेर विश्व पटल पर गिरीवन के ही नही अपितु सदा से ही भारत की भी पहचान रहे है । परिणामस्वरूप प्रचीन काल से ही विश्व भर से लोग इनका शिकार करने आते थे ।
इसी गिरिवन के जंगल में एक शेरनी के जुड़वा शावक आपस में खेलते हुए अपने निवास स्थान से काफी दूर आ चुके थे । तीन - तीन माह के ये दुर्लभ प्रजाति के अति सुंदर शावक अपने स्वभाव अनुसार ही आक्रामक और फुर्तीले थे । दोनों आपस में कुलेल कर ही रहे थे कि, अचानक से सुनेहरा दिन उन्हें भयावह सा प्रतीत होने लगा। और हो भी क्यों ना, उत्तर से आने वाली हवाओं में उनकी माँ की गंध नही थी, बल्कि थी...हज़ारों अनजानी महक , जिससे दोनों ही अपरचित थे, सतर्कता से दोनों के कान खड़े हो जाते है, और उन्हें यह समझते बिलकुल भी समय नही लगता कि शायद वे खतरे में है , पर तब तक कई घुरघुराते हुए रथ और घुड़सवार उन्हें घेर लेते है, तथा एक के बाद एक अजीब सी सुई दोनों को आ चुभती है और सब अंधकारमय हो जाता है ।
जब दोनों की आँखे खुलती है तो , वे स्वयं को एक मध्यम रोशनी वाली ठंडी जगह पर, छोटे से पिंजरे में कैद पाते है । घबराये हुए दोनों शावक दहाड़ते हुए पिंजरे को खुरचालने का प्रयास करते है, तभी कुछ जूतों की आवाज़ आती है, और दो प्लेट में माँस के कुछ टुकड़े, पिंजरे के अंदर रख दिए जाते है । दोनों पहले तो कुछ कदम पीछे हटाते है, पर माँस की गंध उन भूखे शावकों को अपनी और खींच ही लेती है, वे अभी खा ही रहे होते है कि, फिर से दो पैर उनके पिंजरे के निकट आते है, और आवाज़ आती है,
" ठीक सरदार फिर तय रहा, यह जायेगा " और उसके बाद फिर वे पैर वापस चले जाते है ।
दोनों माँस ख़त्म कर, पिंजरे में रखा पानी पीते है, और सो जाते है ।
अगली सुबह जब दोनों में से बड़े शावक की आँखे खुलती है तो वह अपने आप को एक बड़े पिंजरे में पता है, उसकी एक तरफ पिंजरे में विशाल काय हाँथी था, तो वहीँ दूसरी तरफ भालू, जो बहुत ही गुस्से में लग रहा था, उसके चारों तरफ से कई जानवरों की आवाज़ें आ रही थी, बस नही आ रही थी तो उसके अपने छोटे भाई की आवाज़ और गंध । भाई को पास न पाकर वह अपना आपा खो देता है और जोर जोर से दहाड़ने लगता है, उसके छोटे पंजे पिंजरे की जमीन को अपनी यथा समर्थ से खुरचाले जा रहे थे, काफी देर के बाद , अपने भीतर क्रोध, दुःख, और भय का ज्वाल ले वह पिंजरे के एक कोने में बैठ जाता है, वह जान चुका था कि, ना तो उसका भाई अब उसके साथ है, और ना ही उससे मिलने की उम्मीद ।
क्रमश :