उस दुर्घटना के बाद अमय इतना भयभीत हो जाता है कि उसने आयुध नगर आना ही छोड़ दिया था । करीब आठ माह बीत गए , लेकिन अमय आनंदनी से मिलने नही आया, हाँ, पर वह राजकुमारीं से चिट्ठियों के द्वारा संपर्क में अवश्य ही था ।
सूर्य अपने पूरे रूद्र रूप में चमक ग्रीष्मा का साथ दे रहा था, मानव ही नही पशु पक्षी भी परेशान हो दुपहरी में पेड़ो की शरण ले आराम कर रहे थे, आनंदनी अपने हवादार कक्ष में बैठी कोई पुस्तक पढ़ रही थी, और साथ ही तेजस राजकुमारी की गोद में सर रख आंखे मूंदे ऐसे लेटा था मनो कोई शिशु अपनी माँ की गोद में निश्चिन्त हो सो रहा हो । हलाकि आनंदनी अब उसका भार नही उठा पाती थी, पर फिर भी तेजस पर उसका प्रेम इतना था की वह कुछ न कहती, और बाद में दाई माँ से पैरों की मालिश करवाती ।
तभी एक दासी भीतर आ उसे अमय के आने की सूचना देती है । दासी को देख आनंदनी हड़बड़ाहट में किताब छुपा , उसे डाँटते हुए कहती है,
"आगे से कभी भी मेरे कक्ष में घुसने से पहले आवाज़ लगा देना,....समझी..!!, बिना आवाज़ लगाये आई तो पिताजी से शिकायत कर दूँगी ।"
तभी पीछे से आवाज आती है,
" तो क्या राजकुमारी जी, हमे भीतर आने की आज्ञा है..?"
आनंदनी मुड़ कर देखती है तो अमय खडा मुस्करा रहा था। उसकी मुस्कुराहट को नजरअंदाज कर आनंदनी बोल पड़ती है,
" नहीं, बिलकुल नही, पहले बताओ इतने समय से कहाँ थे...???"
" क्या करूँ , यह तुम्हारा तेजस..."
बोलते बोलते अमय की नज़र तेजस पर पड़ती है, जो उसकी तरफ ही आ रहा था, एक पूर्ण विकसित शेर , गर्दन पर घने बाल, उसके मजबूत पैर, महाराजाओं सी शाही चाल और आँखे.... आँखों में देखते ही अमय के भीतर भय झलक उठता है, उसे सहसा ही अपने ऊपर तेजस का हमला याद आ जाता है , जब तक अमय विचारो से बहार आता तब तक़् तेजस इसके इर्द गिर्द घूम रहा था, वह भय के मारे आँखे मींचे खडा हो जाता है , अमय को अपने पैरों पर कुछ महसूस होता है, धीरे से एक आंख खोल कर देखता है तो तेजस उसके पैरों पर अपना मुह रगड़ रहा था । अमय की जान में जान आती ।
वह झुका कर तेजस को सहलाते हुए, एक लंबी सांस ले कहता है ,
" ओ, तो तुमने मुझे पहचान लिया, शुक्र है ईश्वर का "
राजकुमारी ये सुन हँस पड़ती है, और अमय के मजे ले कहती है, " तो वीर योद्धा राजकुमार अमय भयभीत थे " इतना कह, फिर हँसने लगती है ।
" हाँ, तो इतना बड़ा शेर साथ रखोगी तो डर लगेगा ही, ऊपर से जब एक बार झेल चुका हूं ।" अमय थोड़ा उत्तेजित हो बोलता है ।
" अच्छा...क्षमा, क्षमा कर दो, गलती होगी, अब नही चिढ़ाऊँगी । "
बात वहीँ छोड़, अमय पूँछ बैठता है " वरुण कहाँ है ? चल मिल कर आते है उससे ।"
" शायद सो रहा है, " आनंदनी उत्तर देती है ।
" चल, चल कर जगाते है, ये कोई बात है इस समय सो रहा है ।" वरुण राजकुमारी का हाथ पकड़ बाहर ले जाते हुए कहता ।
अपना हाथ छुड़ा आनंदनी आंखे मटकाते हुए कहती है, " अरें नही, मेरे पास एक योजना है, उसके मजे लेने की , बहुत मजा आएगा, अगर तुम साथ दो तो ।"
अमय : " क्या..? "
राजकुमारी: " तेजस को छिपा देते है, और उससे कहेंगे कि तेजस खो गया ।"
अमय ना में सर हिलाता हुआ कहता है " नही, तेजस के साथ कोई तमाशा नही, मैं दुबारा से शिकार नही होना चाहता ।"
राजकुमारी : " तुम कितना डरते हो अमय,......कुछ नही होगा । बस तुम् हाँ कहो ।"
" और अगर कुछ हुआ तो..."
" तो...मेरी जिम्मेदारी,... वैसे कुछ नही होगा। " ऐसा कह आनंदनी अमय को अस्वस्थ करती है ।
वो कहते है ना, विनाश काले विपरीत बुद्धि, शायद इसी कारण अमय राजकुमारी की जिद्द देख, थोड़ा अनमने मन से हाँ कर देता । और दोनों चल देते है, तेजस को छिपाने ।
पर वो नही जानते थे, कि वो जो करने जा रहे है, उससे इन सब के जीवन की दिशा और दशा पूरी तरह बदलने वाली है ।
आने वाले भविष्य से बेखबर दोनों रसोई के पास बने भण्डार गृह में जा, इधर उधर देखते है, और तेजस को थोड़ा खाने को दे कमरे में बंद कर बहार से सांकल चढ़ा देते है । और चल देते है वरुण के पास ।
इधर दोनों के जाते ही, एक रसोइया भण्डार गृह से कुछ लेने आता है, पर जैसे ही वह दरवाजा खोलता है, अंदर का नजारा देख उसकी चींख निकल जाती है, वह देखता है, एक शेर....... जिसके मुख में मांस का टुकड़ा दबा हुआ है ।
उसके चिलाते ही तेजस उसकी ओर बढ़ता है, रसोइया तेजस को अपनी ओर आता देख बेहोश हो जाता है ।
और दरवाजा खुला पा तेजस निकल पड़ता है, राजकुमारी के पास जाने को ।
पर रास्ते में जो भी उसे देखता या तो डर कर भाग जाता या जान बचाने के लिए किसी तरह इसे वहाँ से भगाने की कोशिश करता । इन सब में तेजस रास्ता भटक महल के प्रांगण से बाहर नगर में पहुँच जाता है ।
उधर वरूण के पास पहुँचते ही, राजकुमारी थोड़ी जोर से चिल्ला कर , रोने का ड्रमा करती है और कहती है,
" वरुण उठो .....वरुण उठो.....तेजस खो गया..."
राजकुमारीं आवाज़ कान में पड़ते ही, वरुण चौंक कर उठ पड़ता है, उसके चेहरे पर घबराहट साफ़ साफ़ दिख रही थी । अपने को शांत करता हुआ वह राजकुमारी से पूंछता है,
" क्या हुआ कैसे खो गया, आप कहाँ थी उस समय, और वो कहाँ था ? "
" मैं अमय से बात कर रही थी, तब वह मेरे साथ ही था, कुछ देर बाद पलट कर देखा तो गायब ।" राजकुमारीं उत्तर देती है।
इतना सुन, वरुण बाहर की ओर भागता है, राजकुमारीं और अमय भी उसके पीछे जाते है ।
उसकी हालत देख आनंदनी हँसने लगती है, वही, अमय उसे अस्वस्थ कर कहता है,
"घबराओ नही ये माजक कर रही है, चलो दिखाते है, तुम्हार तेजस कहाँ है, हमने उसे भंडार गृह में बंद कर दिया था । बस थोड़ा मजा करने के लिए ।"
वरुण को क्रोध तो आता है पर क्या कर सकता था, इसलिए शान्त हो दोनों के साथ चल देता है ।
तीनों भण्डार गृह पहुँचते है तो, वहाँ का नजारा देख, उनकी आंखे फटी की फटी रह जाती है । कमरे में अंदर सारा सामान बिखरा हुआ था, रसोइया बेहोश पड़ा था , और तेजस के जूतों के निशान कमरे के बहार जाते दिख रहे थे।
क्रमशः