तेजस और वरुण के दुःख में राजकुमारी का सही से भोजन ना करना और पिता का, दोनों को सर्कस में भेजने का फैसला सुन राजकुमारी मूर्छित हो जाती है ।
जब उसकी आंखे खुलती है तो वह स्वयं को अपने पलंग पर पाती है, एक तरफ राज वैद्य विष्णुभट्ट बैठे थे और दूसरी तरफ दाई माँ मधुलता, जबकि आनंदनी अपनी माँ को कुछ दूर खड़ा पाती है । आज तक उसे यह बात समझ ही न आई थी, कि क्यों उसकी माँ उसके इतने निकट नही है, जितना एक माँ को होना चाहिए , राजकुमारीं को सदा ही अपनी माँ के प्रेम की कमी महसूस होती थी, जिसे उसकी दाई माँ पूरा करती थी ।
" चिंता करने की कोई बात नही है, महारानी जी..!! , भोजन सही से न करने के कारण ही मुर्छा आ गई थी, बस खान पान का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है । " राज वैद्य ने रानी सूर्यमाला को अस्वस्थ करते हुए कहा ।
सूर्यमाला ने हाँ में सर हिलाया, और मधुलता की तरफ क्रोध से देखते हुए बोली, " अपना कर्तव्य भूल गई हो, या ये कि तुम अभी तक यहाँ महल में क्यों हो ........या फिर मुझे बदनाम करना चाहती हो कि, रानी सूर्यमाला अपनी पुत्री का ध्यान नही रखती ..??"
मधुलता बस, सजल नेत्रों से रानी को देखती रहती है, कोई प्रतिउत्तर नही देती । जिसे देख सूर्यमाला वहाँ से, गुस्से में पैर पटकते हुए चली जाती है ।
राज वैद्य के जाने के बाद मधुलता राजकुमारी के लिए भोजन मंगवाती है, पर आनंदनी खाने से मना कर देती है, और बेहद दुखी मन से कहती है, "दाई माँ, अब क्या होगा, ना तेजस को शिकार करना आता है और ना ही वरुण को तलवार चलाना, सर्कस में दोनों ही......"
" कुछ नही होगा दोनों, को विश्वास रखो उसपर जिसे तुमने अपना प्रिय हार अर्पित किया है ।" दाई माँ राजकुमारी की बात काटते हुए कहती है ।
ये सुन राजकुमारी चौंक जाती है, वह कुछ कहने को ही थी कि, एक दासी भीतर आ, महाराज का आदेश सुनाने की आज्ञा मांगती है ।
आनंदनी के हाँ में सर हिलाने के बाद, दासी कहती है,
" महाराज का आदेश है कि, कल आप 19 वर्ष की पूरी हो रही है, अतः कल से आप को भी उनके साथ सर्कस में खेल देखने जाना है ।"
" नहीं.......मैं नही जाऊँगी कोई पाप होता देखने, और कल तो बिलकुल भी नही, जाकर कह दो अपने महाराज से।" आनंदनी क्रोधित हो जोर से कहती है ।
दासी राजकुमारीं की बात सुन वहाँ से चली जाती है ।
" दाई माँ मुझे अकेला छोड़ दो। "
" लेकिन पुत्री..." मधुलता कुछ समझाने की कोशिश करती है, पर राजकुमारीं उसकी बात काट के कहती है
" आप जाइए यहाँ से, ये हमारा आदेश है ।"
मधुलता अपनी आँखों में आँसू समेटे वहाँ से चली जाती है।
मधुलता के जाते ही, आनंदनी निर्जीव सी हो अपने पलंग पर गिर जाती है, जाने कितनी ही आशंकाएं और विचार रात भर राजकुमारी को कचोटते रहते है । मधुलता से राजकुमारीं की व्यथा देखी नही जाती, और मध्य रात्रि में वह कपडे से अपना चेहरा ढाँक, एक चादर ओढ़ती है और निकल जाती है, महल से बाहर ।
इधर सर्कस का सरदार अपने कमरे से बाहर निकल कर टहल रहा था, तभी उसे कोई स्त्री पहचान छुपाते जाते दिखती है । सरदार त्वरित ही, उसे पकड़ लेता है , और उसके चेहरे से चादर हटा देता है, वह देखता है कि, चादर के पीछे राजकुमारी की दाई माँ मधुलता है। मधुलता को देखते ही उसके हाव भाव बदल जाते है, कुछ चिंता, हर्ष ओर् विषाद के अनेको भाव एक साथ ही क्षण भर में उसके चेहरे पर उभर आते है । स्वयं को सँभालते हुए वह मधुलता से पूंछता है, " इतनी रात्रि को आप यहाँ क्या कर रही है ?"
" तुम से ही मिलने आई हूं, विश्वा.." मधुलता उत्तर देती है।
" विश्वा नही.....विश्वा तो 19 साल पहले ही मर गया, मैं सरदार हूं सर्कस का । यदि इस सरदार से कोई काम है तो बताए, वरना आप जा सकती है ।"
मधुलता सोने के सिक्कों से भरी लाल रंग की थैली सरदार के आगे करते हुए कहती है, " कल जो शेर वरुण से खेल में लड़ने आएगा, उसका पेट पहले से ही भर देना । इस थैली में इसकी कीमत है, और यदि कम लगे तो और देगूंगी ।"
सरदार मधुलता का हाथ दूर करते हुए कहता है, " मैं अपने महाराज के विरुद्ध नही जा सकता, किसी भी कीमत पर नही, आप यहाँ से जाइए ।"
मधुलता एक गहरी श्वास ले कहती है, " सरदार से नही होगा ये काम जानती हूं, पर क्या एक पिता से भी नही होगा । "
" कौन पिता..?" सरदार आश्चर्य से पूंछता है ।
" तुम विश्वा, आनंदनी के पिता...."
मधुलता का वाक्य पूरा होने से पहले ही, सरदार क्रोधित हो उठता है, और मधुलता को ढकेलता हुआ कहता है, " फिर झूठ, तुम्हारी आदत है झूठ बोल कर अपना काम निकलना, चली जाओ यहाँ से इससे पहले मैं तुम्हे पकड़ कर महाराज के सामने ले जाऊँ ।"
" मैं सत्य कह रही हूं, मैंने तुम् से कभी झूठ नही कहा विश्वा, मेरा विश्वास करो , आनंदनी तुम्हारी ही बेटी है ।"
सरदार : " बकवास मत करो, और जाओ यहाँ से ।"
मधुलता के नेत्रों से अविरल धारा बहने लगती, अपने आंसू पोंछते हुए वह कहती है, " तुम्हे मेरी बात का यकीन नही है, पर यह ही सच है, याद करो उस दिन नदी किनारे जब भैया शक्ति सिंह ने हमें साथ में देख लिया था,..... वो तो हमे जान से ही मार देते पर बड़े भैया ने उन्हें रोक लिया, और राजगद्दी के बदले, शक्ति सिंह को हमारी शादी के लिए मना लिया । पर अगली सुबह राज्याभिषेक के बाद वो अपने वादे से मुकर गए, और सैनिकों को तुम्हे मारने का आदेश दे दिया, यह बात सुनकर मैं मुर्छित हो गई थी, तभी वैद्य जी ने बताया कि मैं गर्भवती हूं । भाभी सूर्यमाला माँ नही बन् सकती थी ये बात शक्ति सिंह अच्छे से जानते थे, और यह भी कि, सन्तान ना होने का कारण भाभी नही भैया खुद है । उनकी मर्दानगी पर कोई ऊँगली ना उठा सके, इस लिए उन्होंने ने, सूर्यमाला के गर्भवती होने की खबर फैला दी । ये सब देकर मुझे अंदाजा लग गया कि उन्हें बच्चे की कितनी जरुरत है, इसलिए मैंने भी एक चाल चली, और उनसे कह दिया कि, यदी उन्होंने तुम्हे कुछ भी किया तो मैं अपनी जान ले लूँगी । यह सुनकर वो थोड़े शान्त पड गए ।
प्रजा के सामने मुझे दो साल का कारावास सुना दिया,
और बच्चे का जन्म बिना किसी को खबर लगे ही हो गया । परंतु सूर्यमाला ने उस बच्चे को पालने से इंकार कर दिया, इस लिए मजबूरी में शक्ति सिंह को मुझे जीवत रखना पड़ा, वो भी इस शर्त पर कि, मैं हमेशा आनंदनी की दाई माँ बन कर ही रहू ।"
सुनते सुनते सरदार की आँखे भी नम हो चुकी थी, अब वह अपनी बेटी से मिलने के लिए बेताब हो रहा था। पर अपने भीतर की व्यग्रता छुपाते हुए वह मधुलता को दोनों हाथों से पकड़कर कहता है, " मुझे क्षमा कर दो मधु, मैं तुम्हे धोखेबाज समझता रहा, और तुम् इतना कुछ अकेले ही सहती रही ।"
मधुलता भी सरदार के गले जाती है, और कहती है, "आनंदनी की जान तेजस और वरुण में बसती है, और अब इन दोनों की जान तुम्हारे हाथ में है, आनंदनी जानती है कि, वरुण से उसका विवाह नही हो सकता, लेकिन वह वरुण की मौत भी तो नही देख सकती ।"
तभी सर्कस में कुछ हलचल सी होती है, सरदार झट से मधुलता को अपने से दूर कर कहता है, " मधु तुम् जाओ, मैं देखता हूं कि क्या कर सकता हूं ।"
मधुलता सिक्कों की थैली छोड़ महल वापस चली जाती है ।
क्रमशः