पूरब से उदित होते सूर्य की रक्तवर्णी रश्मियों से सिन्दूर धरा पर उतर रहा था, कनक की तरह चमकते सूर्यदेव अपना सिंधूरी रंग त्याग कर मानो स्वर्ण से अपनी आभा बदल रहे थे। उसी हिरण्यमयी आभा के बीच सूर्य के चिन्ह की पताका लहराती सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ महाराज राजवेंद्र सिंह, अपने पुत्र राजकुमार अमय के साथ आयुधनगर में प्रवेश कर चुके थे । अमरावती राज्य के महाराज राजवेंद्र शक्ति सिंह के बचपन का करीब मित्र था । दोनों ने एक ही गुरुकुल से शिक्षा ग्रहण की थी, अतः उनके गुरु भी एक थे । दोनों का स्वभाव एक समान ही था, परंतु राजवेंद्र शक्ति सिंह की तरह इतना क्रूर और तानाशाही नही था, वह निर्णय लेने से पहले अपनी मंत्रिमंडल से विचार विमर्श अवश्य करता था, वो बात अलग है, की उनका मंत्री मंडल चापलूसी के चक्कर में, राजा की ही हाँ में हाँ मिलाता था ।
राजवेंद्र के दो संताने थी छोटी बेटी मणिप्रभा और बड़ा बेटा अमय । अमय राजकुमारी आनंदनी का एक मात्र सखा था, जिसके संग वह बचपन से खेलती आई थी । अतः एक दूसरे से मिलने का उन्हें हरपल इंज़ार रहता था ।
आनंदनी महल के झरोखे पर खड़ी शावक के बारे सोच रही थी, उसकी बुझी आँखों ने राजकुमारी के हृदय को भीतर से हिला कर रख दिया था ।
" राजकुमारी की जय हो "
तभी एक परचित सा स्वर आनंदनी के अविरल बहते विचारों को रोक देता है, राजकुमारी पीछे मुड़ कर देखती है तो सामने राजकुमार अमय मुस्कराते हुए हाथो में एक छोटा सा स्वर्णिम संदूक लिए खड़े थे ।
" अमय.....!!! तुम कब आए...? " आनंदनी ने मुस्कराकर पूँछा ।
" बस अभी....जब तुम झरोखे पर खड़ी ठण्डी हवा खा रही थी, वो भी बिना कटोरी चम्मच के । "
अमय ने चिढ़ाते हुए कहा ।
आनंदनी खुशी से उछलती हुई अमय के हाथों से संदूक लेते हुए कहती है,
" इसमें क्या है ? "
वह संदूक खोलने को ही थी कि, वरुण शवाक को ले कर आ जाता है ।
उस नन्हे से आकर्षक शेर को देख अमय आश्चर्य से अपनी आँखे बड़ी करता हुआ कहता है, " तुम्हे कब से शेर पालने का शौक हो गया आनंदनी ।"
राजकुमारी मुस्कराते हुए अपने कदम शावक की ओर बढ़ाती है, उसके नूपुर में लगे घुंघरूओं की छन छन छन से शावक के कान खड़े हो जाते है, शायद उसने राजकुमारी की गंध से आपनी स्नेहप्रिया को पहचान लिया था ।
वरूण के द्वारा पिंजरे का सांकल खुलते ही, शावक राजकुमारी की ओर अपने नन्हे कदमो से भाग आता है , पर ये क्या.....आज उसने छोटे छोटे बूट्स पहन रखे थे ।
आनंदनी शावक को अपने प्रेमपूर्ण हाथों से गोद में उठा लेती है और वरुण से कहती है,
" अच्छा तो वरुण तुमने यह तरीका निकाला इसके नाखूनों के लिए । तब तो तुमने इसका नाम भी सोच ही लिया होगा ।"
" नही इसके नामकरण का अधिकार तो सिर्फ आप को है। " वरुण ने उत्तर दिया ।
" तो फिर आज से इसका नाम तेजस है " राजकुमारी शावक का सर सहलाते हुए बोलती है ।
" बहुत ही सुन्दर " अमय और वरुण एक स्वर में बोलते है ।
वरुण तेजस की तरफ हाथ बढ़ाता हुआ केहता हैं " लाओ जरा मैं भी देखू तुम्हारा तेजस कैसा है ।"
अमय तेजस को आनंदनी के हाथों से अपनी गोद में लेता है, पर तेजस राजकुमारीं का दुपट्टा अपने मुह में दबाए दबाए इधरसे उधर मुख घुमाने लगता है।
जिसे देख वरुण हँसते हुए कहता है, "लगता है यह राजकुमारी जी से अलग नही होना चाहता, और आपके निकट नही आना चाहता ।"
यह सुन अमय का मुह बन जाता है , जिसे देख राजकुमारी खिलखिला कर हँस उठती है ।
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जहाँ एक ओर तेजस हंसी खुशी और प्रेम के माहौल मैं पल रहा है वही दूसरी ओर, उसका बड़ा भाई, उस भयानक उत्तेजक माहौल में रखे, पिंजरे में बेचैन हो टहल रहा था, उसकी आँखों में क्रोध साफ़ साफ़ देखा जा सकता था, अब वह पुराना डरा हुआ शावक नही , जो एक कोने पड़ा रहे , उसकी चाल में अब बदलाव आ चुका था ।
क्रोध में दहाड़ते हुए वह अपने पिंजरे में टहलता हुआ, बीच बीच में पिंजरे की शलाखो पर पंजा भी मार रहा था ।
तभी दो आदमी उसके पिंजरे के निकट आते है, और धीरे से एक जीवित खरगोश उसके पिंजरे के भीतर छोड़ जाते है। खरगोश को देख शावक अपनी आंखे बड़ी कर, आगे का पैर एक कदम आगे बढ़ा थोड़ा झुक कर शिकार करने की पोजीशन में आ जाता है, पैरों पर थोड़ा सा दबाव पड़ते ही उसके नोकीले नाखून दिखने लगते है, और आंखे खरगोश का पीछा करने लगती है । अपने को थोड़ा सा स्थिर कर वह एक बड़ी छलांग लगता है......और खरगोश.....उसके पंजो में..... उसका शिकार देख, एक आवाज़ आती है,
" अब तुम तैयार हो "
वह अपना शिकार खा ही रहा होता है कि एक पहलवान जैसी देह वाला, अधेड़ उम्र का व्यक्ति आता है, उसके चेहरे पर कई आड़े तिरछे पंजो के निशान थे ।
पिंजरे का दरवाजा खोल वह व्यक्ति भीतर जाता है, दरवाजे की आवाज़ से शावक सतर्क हो व्यक्ति को देखने लगता है ।
कुछ क्षण दोनों एक दूसरे की आँखों में देखते है, और अचानक से ही शावक व्यक्ति के ऊपर छलांग लगता हुआ अपने पंजे से वार करता है, परंतु व्यक्ति अत्याधिक सावधान था, अपने एक ही हाथ से वह शावक को ढकेल देता है, पर इनसब में उसके हाथ में शावक का पंजा गहरा घाव कर चूका था ।
घाव की परवाह किये बिना, वह व्यक्ति जोर से हँसता है, और कहता है,
" वाह , तुम अपनी उम्र से अधिक बलशाली हो, देह जितनी छोटी है उतनी ही प्रबल, आक्रमण एक योद्धा सा, और प्रहार....उतना ही प्रचंड....
हाँ आज से तुम्हारा नाम प्रचंड है । "
वह अपने पास खड़े युवक को आज्ञा देता है, " इसके भोजन का विशेष ध्यान रखो, आगे चल कर यह यहाँ का सबसे प्रचंड योद्धा होगा ।"
क्रमशः