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भाग ९ पुनर्मिलान

10 अक्टूबर 2021

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उदित होते सूर्य के साथ, राजकुमारी को, वरुण का जीवन अस्त होता नजर आ रहा था । वह समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या करे, इसी उधेड़बुन में सुबह कब हो गई वह जान ही नही पाई । राजकुमारी का सूजा हुआ चेहरा और लाल आँखे उसकी हृदय की वेदना साफ साफ कह रहे थे । झरोखे से झाँकते सूर्य को देख आनंदनी के मन में जाने क्या विचार कौंधा की वह तुरंत उठ गई, और भागती हुई रानी सूर्यमाला के पास जा पहुंची, सूर्यमाला को श्रृंगार करता देख राजकुमारी थोड़ा सकुचा जाती है, तभी रानी सूर्यमाला की नजर शीशे पर पड़ रहे आनंदनी के प्रतिबिंम्ब पर पड़ती है ।
" क्या बात है, आज सुबह सुबह तुम् हमारे कक्ष में..?"

" माँ.…" आनंदनी के मुख से माँ सुन सूर्यमाला चिढ़ जाती है। जिसे राजकुमारीं नजरअंदाज कर आगे बोलती है।
" माँ , आप पिताजी से बात करें, कि वो तेजस को सर्कस में न भेजे, चाहे तो उसे जंगल में छोड़ दे। माँ उसे सही से शिकार करना भी नही आता, सर्कस में तो उसकी मृत्यु तय है ।"

" आज जो भी हो रहा है ये तुम्हारी ही तो गलती है ना, तुमने ही उसे एक पालतू बिल्ली की तरह पाला है, तुम् चाहती तो उसे एक योद्धा बना सकती थी । पर अब मैं इसमें कुछ नही कर सकती। "

" लेकिन माँ, ....

आनंदनी की बात पूरी होने से पहले ही सूर्यमाला बोल पड़ती है, " मैंने कहा ना मैं कुछ नही कर सकती, जाओ यहाँ से.....और वही करो जो तुम्हारे पिता कह रहे है। "

सूर्यमाला की बात सुन आनंदनी का मुह लटक जाता है, वह निराश हो वहाँ से जाने लगती है , तभी सूर्यमाला उसे रोकते हुए कहती है,
" और हाँ, तैयार हो जाना, आज तुम्हे भी खेल देखने चलना है।"

बेबस सी आनंदनी रोते हुए वहाँ से भाग जाती है । कुछ समय बाद एक दासी हाथ में शाही वस्त्र पकडे आती है, और कहती है, " राजकुमारी जी, महारानी जी ने ये वस्त्र, आपके के लिए भिजवाए है, और कहा है कि आज आप इन्हें ही पहन कर सर्कस में जाए ।"
     इतना सुनते ही आनंदनी गुस्से से लाल हो जाती है, और दासी के हाथों से कपड़े छीन कर जमीन पर फेंकते हुए कहती है, " न मैं ये कपडे पहनूँगी और ना ही कहीं जाऊँगी, जाकर कह दो अपनी महारानी और महाराज से ।"
      दासी मुह  बनाते हुए वहाँ से जाने को मुड़ती है, तो दरवाजे बज अमय खड़ा था । अमय को देख वह सर झुका वहाँ से चली जाती है ।
       " जानता हूं तुम् परेशान हो, पर अपना गुस्सा इन लोगो पर निकाल कर कोई लाभ नही होगा, चलो तैयार हो जाओ, मैं भी चलूंगा..?"

" तो अब तुम्हे भेजा है, महारानी सूर्यमाला ने, मुझे तैयार करने के लिए, लेकिन अमय में वहाँ नही जाऊँगी, मैं तेजस को मरते अपनी आँखों से नही देख सकती, सुना है कोई बहुत् ही खूँखार शेर आया है....इस बार, जिससे आज तक कोई जानवर नही जीता ।"

अमय राजकुमारी का हाथ पकड़ उसे एक कोने में ले जाता है और कहता है," उसकी चिंता तुम् मत करो, और जो मैं कह रह हूं उसे ध्यान से सुनो "
    अमय राजकुमारीं को कुछ बताता है, जिसे सुन आनंदनी  जमीन पर बैठ जाती है, और दोनों गुठनो पर अपना सर रख लेती है ।
        " मैं चलता हूं, और तुम् भी तैयार हो जाओ..।" ऐसा कह कर अमय चला जाता है ।
    इधर दासी सूर्यमाला को आनंदनी के द्वारा किया गया बर्ताव , और बाते कह सुनाती है । यह सब सुन रानी चिंतित हो जाती है कि, यदि आनंदनी सर्कस में न आई तो शक्ति सिंह को क्या उत्तर देगी, अतः सूर्यमाला मधुलता ( दाई माँ ) को बुला उसे आनंदनी को हर् हाल में तैयार कर सर्कस में लाने का आदेश  देती है ।
     मधुलता जब आनंदनी के कक्ष में पहुँचती है, तो देखती है कि, सारा सामान इधर उधर बिखरा  है, साथ ही सूर्यमाला के दिए हुए कपड़े भी जमीन पर पड़े थे , और राजकुमारी झरोखे के पास  सुध बुध खोए बैठी थी । मधुलता जमीन से कपड़े उठाते हुए कहती है, " बिटिया चलो तैयार हो जाओ "
    मधुलता का स्वर राजकुमारी की तन्द्रा तोड़ता है, आनंदनी बड़े ही ध्यान से मधुलता को बिना कुछ बोले ही देखने लगती है ।
मधुलता  आनंदनी का हाथ पकड़ उसे तैयार करने लगती है, और राजकुमारीं भी बिना किसी विरोध के , यंत्रवत मधुलता का कहना मान जाती है । राजकुमारी के व्यवहार में परिवर्तन देख मधुलता को आश्चर्य होता है, पर वह कुछ बोल कर बात बिगड़ना नही चाह रही थी ।
फिर भी बिटिया की ऐसी हालत  उसे सता ही रही थी, अतः राजकुमारीं को तैयार करने के बाद , उसे अस्वस्थ करने के लिए मधुलता बोल ही पड़ती है , " आप चिंता ना करें, सब ठीक होगा, अब किया है तो ईश्वर पर अपना विश्वास रखे ।"

" सब ठीक होने ही होगा, दाई ...म...." इतना कहते कहते आनंदनी रुक जाती है ।
तभी दासी भीतर आ रथ तैयार होने की सूचना देती है, और आनंदनी बिना कुछ कहे चल देती है रथ की ओर, सर्कस जाने को ।

🌿🦁🌿🦁🌿🦁🌿

         पूरी पृथ्वी पर यदि कोई ऐसी जाती है जो दूसरो के दुःख में भी आनंद ढूंढती है तो वह मात्र मानव जाती ही हो सकती है । मनुष्य की आदत है की वह हर भाव में रस लेने लगता है, यहाँ तक की भय में भी उसे आनंद आता है, तब ही तो हॉरर देखने और पढ़ने वालों की संख्या धार्मिक पुस्तक पढ़ने वालों से कहीं अधिक है ।
          सर्कस में होने वाले आज के खेल को अयुधनगर की प्रजा देखने को बेचैन हो रही थी । लोग देखना चाहते थे की, राजकुमारी के पालतू शेर का क्या होगा और क्या होगा उस शेर की देखभाल करने वाले वरुण का । वैसे तो हर बार ही खेल में किसी न किसी की जान दाँव पर होती है, पर इस बार बात राजकुमारी से जुड़ी थी अतः लोगो की इस खेल में दिलचस्पी भी अधिक थी । धीरे धीरे सर्कस में भीड़ बढ़ती जा रही थी, शक्ति सिंह रानी सूर्यमाला और अपने मंत्री एवं सलाहकार के साथ खेल देखने आ चुके थे ।  मधुलता भी अपनी पहचान छुपा एक कोने में आ कर खड़ी हो गई थी जहाँ से रिंग साफ़ साफ़ देखी जा सकती थी, वही रिंग के पास सरकस का सरदार भी चक्कर काट रहा था, मधुलता की नजर रिंग की वजाय सरदार पर ही टिकी थी, तभी सरदार की नजर अचानक उस पर पड़ती है, आँखों ही आँखों में  वह मधुलता को अस्वस्थ करता है , और उसका इशारा समझ मधुलता भी संतुष्ट हो जाती है ।

           जहाँ एक ओर  लोग रिंग में जानवरों के उतरने का इंतज़ार कर रहे थे, वहीँ सरकस के भीतर  भाई होने की बात से अंजान दो जुड़वा शेरों ( प्रचंड और तेजस ) का पिंजरा एक दूसरे से कुछ ही दूरी पर रखा था ।
    इन 3 सालों में प्रचंड अपने भीतर दुःख, भय और इंसानों के प्रति नफरत के चलते इतना खूँखार बन चूका था कि, शायद  बचपन में भाई के साथ बिताए दिन भी वह अब तक भुला चूका था । पर इन सबके बीच कुछ दिनों से, परिचित मगर फिर भी अपरिचित सी गंध उसे और भी उत्तेजक कर रही थी, लगातार उसका मस्तिष्क इस गंध को पहचानने का प्रयत्न कर रहा था, पर फिर जानवरों की चीख और रक्त की बू उसके मन को दूसरी और खींच लेती।
              वहीं तेजस के साथ भी कुछ ऐसा ही था, जानी पहचानी अपनी सी गंध उसे भी विचलित कर , कुछ भूला बिसरा उसे धुंधला सा याद दिला रही थी ।

         आनंदनी भी अब तक सरकस में पहुँच चुकी थी, दर्शकों की इतनी भीड़ देख वह आश्चर्यचकित थी, कि लोग कितने संवेदनहीन है, जो जान कर किसी की मृत्यु देखने आये है,और  इतना ही नही उसमे आनन्द भी ले रहे है । उसने देखा की सरकस में दो और तीन के जोड़ों में दर्शको के लिए आसान लगे हैं, तथा उसका स्थान शक्ति सिंह और सूर्यमाला के साथ निश्चित है , माता पिता के प्रति क्रोध के चलते वह, निश्चित स्थान पर ना बैठ , पिता के आसन से थोड़ा अन्तर छोड़  अमय के पास बैठ जाती है । अमय उसके हाथ पर अपना हाथ रख आनंदनी को स्थिर करने का प्रयास करता है ।
           एक के बाद एक जानवरों की कई लड़ाइयाँ होती है,
और हर् बार ही राजकुमारीं देखने के वजाय अपनी आंखे बंद कर लेती थी । समय बीतने के साथ साथ लोगो में उत्साह और भी बढ़ता जा रहा था । इस बार एक भालू और बाघ की भयंकर लड़ाई थी, जिसमे बाघ ने भालू को चीर कर रख दिया था । ऐसा रक्तरंजित माहौल देख राजकुमारीं तेजस के लिए और भी चिंतित हो जाती है, वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना किये जा रही थी । तभी अचानक से लोगो का शोर बढ़ जाता है, , अपने विचारों से बहार आ, राजकुमारीं देखती है कि, रिंग में एक शेर को उतारा गया है। आनंदनी की धड़कने तेज हो जाती, इतनी दूर से वह शेर को देख पहचानने की कोशिश करने लगती है, भय और शांका के कारण वह पहचान ही नही पा रही कि यह उसका तेजस है या कोई और , अभी वह इस उधेड़बुन में ही थी की, दूसरी और से एक युवक को तलवार ले रिंग में भेज दिया जाता है ।  युवक को देख सरकस में शोर और भी तेज हो जाता है, ये युवक कोई और नही बल्की वरुण था । वरुण को देख राजकुमारीं का दिल जोर जोर से धड़कने लगता है, उसकी आँखों से अविरल धारा बहने लगती है, वह दोनों हाथ जोड़ अपनी आंखे बंद कर प्रार्थना करने लगती है ।
          इधर रिंग में उतरे अमय की हालत भय के कारण खराब  हो रही थी, आज से पहले उसने कभी तलवार पकड़ी भी ना थी, पर आज, आज तो उसे इसी तलवार से लड़ना था, वो भी किसी इंसान से नही बल्की एक शेर से ।
       वरुण को अपने पिता का बताया पाठ याद आता है  :

" शेरों से युद्ध ताकत के बल नही जीता जा सकता, अपितु उसकी आँखों से जीता जाता है, जानवर आपकी की आँखों में दिख रहे भय को बड़ी ही सरलता से भाँप लेते है, अतः यदि उन्हें हराना है तो, पहले आँखों से हराओ । "

         वरुण अपने आपको संतुलित कर अपने भय पर काबू पता है, वह जानता है कि यदि उसे विजय पानी है तो, शेर को अपनी आँखों से ही पराजित करना होगा, वह  तलवार हाथ में पकडे दो कदम आगे बढ़ाता है, सामने खडा शेर उसकी ओर देखता है, और वरुण उसकी आँखों में.....
       वरुण शेर पर वार करने को तलवार उठा अपनी पूरी जान लगा कर दौड़ता है, पर शेर के निकट पहुँच वह चोंक जाता है, उसके हाथ से तलवार छूट जाती है, तथा स्वयं को संभालता हुआ वह शेर के पैरों के पास गिर जाता है.... वरुण अपने हाथों से उसे सहलाने लगता है, और शेर भी उसके कंधे पर अपना मुह रख वरुण को चाटने लगता है । ये कोई और शेर नही बल्की उसका अपना तेजस ही था, ऐसा नजारा देख सब आश्चर्य चकित हो जाते है, और आनंदनी......खुशी के मारे उछल पड़ती है । वह जानती थी की कुछ भी हो तेजस वरुण पर तो वार  नही करेगा । फिर वह अपने सजल नेत्रों से शक्ति सिंह को देखते हुए मन में सोचती है, पिता जी इतने भी बुरे नही जितना मैं आज तक सोचती आई, एक क्षण में राजकुमारीं के मन में अपने पिता के लिए आदर भाव बढ़ जाता है, अतः वह शक्ति सिंह से खुशी के मारे गले लगने को आगे बढ़ती है । पर शक्ति सिंह अत्यंत ही क्रोध में उसे ढकेल देता है ।
        इससे पहले राजकुमारी अपने पिता का वर्ताव समझ पाती, रोएं कपाँ देने वाली एक दहाड़ से पूरा सरकस काँप उठता है, जिसकी आवाज़ मात्र लोगो में भय उत्पन्न कर रही थी । आनंदनी अपने को संभाल कर खड़ी होती है, और देखती है कि रिंग में एक और अत्यंत ही खूंखार शेर आ चुका है ।
        शेर को देख आनंदनी घबरा जाती है, वह जानती थी कि, वरुण को तलवार चलाना नही आता, अतः वह बिना कुछ सोचे ही पास खड़े पेहरेदार का भाला ले रिंग की ओर दौड़ पड़ती है । उसकी हरकत देख शक्ति सिंह सैनिकों को त्वरित ही इशारा करता है, और रिंग की और जाती राजकुमारी को आगे ही सेनापति द्वारा रोक लिया जाता है।

          रिंग में मौजूद वरुण और तेजस की नजर सामने से आ रहे शेर पर पड़ती है, आता हुआ शेर अचानक अपने कदम रोक लेता है, उसे फिर वही परिचित सी गंध आती है, जिससे उसका मन विचलित हो उठता है, और वही परिचित सी गंध तेजस को भी परेशान करती है, दोनों शेर एक दूसरे की आँखों में देखते है, और क्षण भर में ही तेजस उस शेर और उससे से आने वाली गंध को पहचान जाता है, वह समझ जाता है कि इतने दिनों से उसे परेशान करने वाली महक किसी और की नही बल्की बचपन में बिछड़े हुए उसके अपने बड़े भाई की थी ।
          पर इतने सालों में प्रचंड कई शेरों से लड़ चुका था । अतः सामने के शेर से आ रही अपनी सी महक उसे परेशान तो अवश्य कर रही थी, पर उसे इस वक्त बस अपना शिकार वरुण दिख रहा था जो, सामने खड़े शेर के कब्जे में था ।

प्रचंड के मन में क्या चल रहा था कोई नही जानता था , सबकी आंखे रिंग में उतरे शेरो और वरुण पर टिकी थी, और आगे क्या होगा देखने के लिए सब साँस रोके शान्त खड़े थे ।

प्रचंड वरुण को देख उसकी तरफ अपने कदम तेजी से बढ़ाता है, इसे देख वरुण घबरा कर अपनी तलवार ढूंढ़ने लगता है, पर तलवार उसकी पहुँच से काफी दूर गिरी हुई थी और शेर  उसके निकट आता जा रहा था, तभी वरुण पर झपट्टा मारने को प्रचंड एक लंबी छलांग लगता है, और वरुण भय से अपने दोनों हाथों को आगे कर चेहरा छुपा लेता है ।
           शिकार को आसानी से मार लेने वाले प्रचंड को इस बार , वरुण पर कूदने से पहले ही हवा में तेजस टक्कर दे देता है, वरुण आंखे खोल कर देखता है तो अपने और प्रचंड के बीच तेजस को खड़ा पता है ।
      अब खेल और भी दिलचस्प होता जा रहा था सब देखना चाहते थे कि क्या होगा कौन जीवित बचेगा और कौन मृत होगा ।
           तेजस जो अपने भाई को पहचान चूका था, प्रचंड पर जोर का हमला नही कर रहा था, आखिर इतने सालों में उसे यही तो सीखा था (.प्रेम करना, )  राजकुमारीं से , पर वरुण को प्रचंड से बचाना है यह भी वह जानता था ।

    दोनों जुड़वा एक दूसरे के सामने गोलाई में दहाड़ते हुए घूम रहे थे । प्रचंड को बार बार वह गंध परेशान कर उत्तेजित क्र रही थी, और अब वह इस गंध से हमेशा के लिए पिछा छुड़ाना चाहता था, प्रचंड तेजस पर झपट्टा मरता है, और दोनों ही शेर अपने पीछे के पैरों पर खड़े हो आगे के पैरों से एक दूसरे पर वार करते है, एक का वार अत्याधिक घातक होता है, तो दूसरे का बचाव में । पर इस बार तेजस प्रचंड को गिरा देता है और दोनों एक दूसरे के साथ लुढकने लगते है, इतने निकट से तेजस की महक सूँघ और साथ में लुढकते हुए प्रचंड को अपना बालपन तुरंत ही आ जाता है, कि कैसे वह अपने भाई के साथ मैदान में खेला करता था ।
         याद आते ही प्रचंड रुक कर पीछे हट जाता है, दोनों जुड़वा एक दूसरे की आँखों में देखते है, दोनों ही एक दूसरे को पहचान चुके थे, जो जुड़वाँ अब तक क्रोध में दहाड़ रहे थे वही अब प्रेम में एक दूसरे को पुकारने लगते है, मानो हालचाल पूँछ रहे हो  और  एक दूसरे के निकट आ चाट कर अपना प्रेम उड़ेलने लगते है ।  मानो सन्देश दे रहे हो कि, मात्र मनुष्य ही नही अपने रिश्तों से प्रेम करना जानता, बल्की जानवर भी प्रेम करना और जताना बखूबी जानते है ।
        अब तक सरकस में अनेकों युद्ध हुए थे पर ऐसा नजारा पहले कभी ना देखा गया था । पूरा सरकस आश्चर्यचकित हो दोनों शेरो और वरुण को बड़े ही हर्ष से देखे जा रहा था, शायद आज उन्हें पहली बार यह एहसास हुआ था कि मृत्यु देखने से ज्यादा आनंद और आत्म संतुष्टि ,   जीवन , प्रेम और मिलन देखने में है । साथ ही साथ सरकस में आजादी आजादी का स्वर गूंजने लगता है ।। इस खेल के नियम के अनुसार हारने वाले को मृत्यु और जितने वाले व्यक्ति को आजाद करने का प्रवधान था । पर आज तक मृत्यु के अलावा रिंग ने कुछ और देखा ही नही था , आयुध्नागर के इतिहास में यह प्रथम बार था कि, लोग मार पिट की जगह आजादी की माँग कर रहे थे।
      रिंग का दरवाज़ा खुलते है भीड़ वरुण को हाथो ही हाथो ऊपर उठा लेती है, बिना लड़े ही युद्ध जितने वाला अयुधनगर ने पहली बार जो देखा था ।
     ये सब देख जहाँ क्रोध से शक्ति सिंह अपनी मुट्ठी भींच लेता है, वहीँ रानी सूर्यमाला के चेहरे पर एक मधुर स्मिता थी । और राजकुमारी की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नही था, वह एक कुर्सी पर खड़ी हो, अपना दुपट्टा वरुण की ओर फेंकती है, और वरुण उसे अपने गले में लपेट लेता है ।
               प्रजा की माँग के आगे शक्ति सिंह विवश था, अतः मंच पर आ वह घोषणा करता है कि, " आज इस युद्ध में कोई भी परास्त नही हुआ, कारण भले ही भाग्य रहा हो, पर नियम अनुसार हम दोनों शेरों के साथ साथ वरुण को आज़ाद करते है । ये अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी जा सकते है ।" इतना सुनते ही सरकस में महाराज शक्ति सिंह की जय जयकार होने लगती है । पर सबकी नजर छुपा, शक्ति सिंह वरुण के कानों में छुप कर यह् बात भी दाल देता है, कि यदि जीवित रहना चाहते हो तो अब अयुधनगर में नजर ना आना।
          वरुण जिस ओर से जाता जा रहा था लोग स्वतः ही उसे मार्ग देते जा रहे थे ,  सूर्य अस्ताचल को हो, धरा पर अपना सिन्दूर छिटक रहा था । सरकस के मुख्य द्वार पर खड़े पहरेदार देखते है कि, सामने से वरुण चला आ रहा है, और उसके दोनों बगल से दो बब्बर शेर, अपना सर उठाए, इस वक्त तीनों साथ में ऐसे प्रतीत हो रहे थे, मानो कोई सम्राट विश्व विजय कर लौटा हो। किसीं में भी हिमम्त ना थी, उन्हें रोकने की । तीनों अपनी शान में चलते जा रहे थे, और इस बार तेजस आगे चल उनका मार्ग प्रशस्त कर था।



" समाप्त "

      सर्वप्रथम तो आप सबका हृदय से आभार जो आपने इस कहानी को पूरा पढ़ अपना असीम प्रेम दिया  💐💐🙏🙏  चूँकि यह् मेरी पहली कहानी है, आप से विनम्र निवेदन है कि समीक्षा कर इसकी कमियों से मुझे अवगत कराएं, ताकि में अगली बार से सुधर कर सकूँ ।

           जुड़वा शावकों की कहानी यहीं समाप्त होती है, पर आयुध नगर के अभी कई ऐसे रहस्य है जो उजागर होने बाकी है ।। फिर भी हर् कहानी अपने में पूरक होनी चाहिए इसलिए आप को बता दूँ, वरुण आयुध नगर में पुनः कभी नही दिखा, और समय के साथ राजकुमारी को भी एहसास हो गया कि, वरुण के प्रति उसका प्रेम मात्र किशोरावस्था का आकर्षण था । अतः कहानी के अंत में राजकुमारीं का विवाह राजकुमार अमय हो जाता है । पर अभी अयुधनगर को और भी कई उतार चढ़ाव देखने है, क्या है, यह जानने के लिए इंतज़ार करें अगली कहानी, THE TWINS 2 का । तब तक के लिए ...
शुभामस्तु 💐💐


Jyoti

Jyoti

अमेज़िंग

9 दिसम्बर 2021

.........😊😊😊😊😊😊

.........😊😊😊😊😊😊

Nice छोटी 😊👌 मुझे इंतिज़ार रहेगा सीजन 2 का

10 अक्टूबर 2021

विष्णुप्रिया

विष्णुप्रिया

10 अक्टूबर 2021

पूरा पढ़ने नके लिए बहुत बहुत धन्यवाद भैया...💐💐😊😊 सीजन 2 जल्द ही शुरू करुँगी ।

9
रचनाएँ
The Twins
5.0
यह कहानी है, शेर के दो जुड़वा शावकों की, जो अपने निवास स्थान जंगल से चुरा लिए जाते है । जहाँ एक शावक को अत्याधिक हिंसक और उतेजक बना कर सरकस में रखा गया था । वही छोटा शावक राजकुमारी को उपहार में दे दिया जाता है। पर एक छोटा सा माजकराजकुमारी के साथ साथ दोनों शावकों के जीवन में भी हलचल मचा देता है ।
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Trapped

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भाग ३ नामकरण

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भाग ५ The missing lion

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भाग ७ वापसी

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भाग ८ रहस्य

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भाग ९ पुनर्मिलान

10 अक्टूबर 2021
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