रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीददासजी ने लिखा है-
"नहि कोउ अस जन्मा जग माहि,प्रभुता पाई जाहि मद नाहि".
अहंकार मानव का सबसे बड़ा शत्रु है.किसी को धन का अहंकार,किसी को पद का अहंकार,किसी को बल का अहंकार,किसी को रूप का अहंकार,किसी को यश का अहंकार,कोई सीमा नहीं है अहंकार के इस सूची की .अहंकार एक तुलनात्मक भाव है.जब हमारे पास कोई वस्तु किसी और से अधिक मात्रा में होती है तो हमें उसका अहंकार हो जाता है,यद्यपि वह वस्तु किसी और के पास मुझसे भी अधिक हो सकती है.
हमारे इतिहास पुराण अहंकार और उसके छेदन के अनेक आख्यानों से भरे पड़े हैं.रामचरितमानस में महर्षि नारद को हुए अहंकार व भगवान द्वारा उसके छेदन का वर्णन हम सबने पढ़ा है.महाभारत में अर्जुन को हुए अहंकार को श्रीकृष्ण ने वर्वरीक के माध्यम से दूर किया था.
इतिहास में छत्रपति शिवाजी से समबन्धित एक कथा आती है,शिवाजी महलों एवं भवनों का निर्माण करा रहे थे,उन्हें ये सब करते हुए अहंकार हो गया .उनके गुरु समर्थ रामदास को तुरंत इसका भान हो गया और वे पहुँच गए अपने शिष्य का अहंकार दूर करने.उन्होंने शिवाजी से एक पत्थर पर हथौड़ा चलाने को कहा.पत्थर में से एक छोटी से मेढकी उछलकर बाहर आ गयी. गुरु ने शिवाजी से पूछा कि ये मेढकी पत्थर में कैसे जीवित रही?शिवाजी बड़े ही वुद्धिमान थे,उन्होंने तुरंत जान लिया कि उनके गुरु ने उनके अंदर आये अहंकार को भांप लिया था.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य अज्ञान वश कहता है कि आज हमने इतना धन प्राप्त कर लिया ,अब इतना और प्राप्त कर लूंगा.आज मैंने उस शत्रु को मार डाला ,अब उस शत्रु को भी मार डालूँगा.अर्जुन को हुए मोह को दूर करते हुए उन्होंने कहा कि ये सारे योद्धा तो पहले ही मेरे द्वारा मारे जा चुके हैं,तू तो निमित्त मात्र बन जा.
इसको एक और दृष्टान्त से समझने का प्रयास करते हैं,एक तालाब के किनारे एक पीपल का वृक्ष है.वृक्ष के पत्तों पर बैठी हुई झुण्ड की झुण्ड चीटियाँ पत्तों के गिरने से नदी में गिरती हैं और मछलियाँ उन्हें बड़े चाव से चट कर जाती हैं.समय बदलता है,तालाब सूख जाता है,मछलिया जल के अभाव में मर जाती हैं.अब वहीँ चीटियाँ मछलियों को खा रही हैं,क्या व्यवस्था है हमारे दयालु प्रभु की.
प्रसिद्ध कथावाचक श्री मोरारी वापू अपने प्रवचन में कहा करते हैं कि पचास वर्ष के बाद हमें पांच वस्तुओं से शून्य हो जाना चाहिए अर्थात उन्हें छोड़ देना चाहिए .१-अहंकार शून्य २-अलंकार शून्य.३-अधिकार शून्य.४-अंधकार शून्य और ५-अंगीकार शून्य.अर्थात हमें अहंकार से मुक्त होना चाहिए.साज श्रृंगार से बचना चाहिए.अकारण किसी पर अपने अधिकार थोपने से बचना चाहिए.अज्ञान,भय,निराशा से मुक्त होना चाहिए और विना आवश्यकता के वस्तुओं को स्वीकार करने से बचना चाहिए.
अहंकार को अहैतुकी कृपा करने वाले परम दयालु प्रभुजी किसी न किसी रूप में खाकर हमें उससे मुक्त करते रहते हैं.