ज्योतिष सृष्टि के साथ ही श्री ब्रह्माजी के श्रीमुख से आविर्भूत हुआ था.लोक कल्याण के लिए इस शास्त्र की रचना की गयी.वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत में भी ज्योतिष के कई प्रसंग आये हैं. महर्षि वेदव्यास जी ने तेरह दिन के पक्ष में दो ग्रहण लगने पर एक भयंकर युद्ध की चेतावनी दी थी.महर्षि पराशर को ज्योतिष का प्रवर्तक माना जाता है.ज्योतिष चक्र के बारह भावों ,नौ ग्रहों एवं दशा अन्तर्दशा इत्यादि के माध्यम से एक सात्विक ज्योतिषी सफलतापूर्वक जातक के जीवन के बारे में सफल एवं सटीक भविष्यबाणी कर सकता है.ज्योतिषी के लिए कुछ अपरिहार्य नियम एवं सिद्धांत निश्चित किए गए हैं.ज्योतिषी को सत्यवादी होना एक प्रथम एवं श्रेष्ठ सोपाधि है.वैसे कोई भी जो सदा ही सत्य बोलता है,धीरे धीरे अपनी वाणी में वो शक्ति प्राप्त कर लेता है जिससे वो जब भी कोई बात कहता है ,वो सत्य ही सिद्ध होती है.ज्योतिषी को अपने शास्त्र के बारे में सम्पूर्ण ज्ञान होना चाहिए.ज्योतिषी के लिए जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात होती है ,वह है उसका अंतर्ज्ञान.और अंतर्ज्ञान प्राप्त होता है सात्विक एवं सरल जीवन से.यहाँ एक बात सर्वसिद्ध है कि हम जो कुछ भी करते या बनते हैं ,वह पूर्व निर्धारित होता है.हम प्रायः देखते है कि एक निश्चित शिक्षा प्राप्त किया हुआ व्यक्ति एकदम विपरीत कार्य से अपनी जीविका चलाता है.हमें जो कुछ भी मिलना है ,उसकी भूमिका पहले से बनी होती है,और एक सफल ज्योतिषी जातक की जन्मपत्रिका देखकर उसके भावी जीवन की दिशा और दशा के बारे में एक संभावित तथ्य प्रस्तुत कर सकता है.हमें किसी भी ज्योतिषी पर आँख मूँदकर विश्वास कभी भी नहीं करना चाहिए.ज्योतिषी भी हम सबकी तरह एक सामान्य प्राणी है,वह भगवान नहीं है,यदि वह आपसे आपके भविष्य को अच्छा बनाने के लिए आपसे बड़ी बड़ी बातें करे और आपसे उपायों के नाम पर एक मोटी रकम ऐंठना चाहे तो आपको तुरंत ऐसे ज्योतिषी को ठग समझकर छोड़ देना चाहिए.किसी भी ज्योतिषी या पंडित द्वारा उपायों के नाम पर किसी मंदिर मस्जित में उपाय करवाने के नाम पर धन मांगना बिलकुल ही अपराध एवं ठगी है.ज्योतिष हमारे कर्मों के आधार पर इस जन्म में मिलने वाले कर्मफल के बारे में बताता है.कर्म का कभी भी क्षय नहीं होता जब तक कि हम उसे भोग न लें.हाँ प्रायश्चित और भक्ति के द्वारा कुछ कर्मफलों को कम व निष्क्रिय किया जा सकता है पर उसमें भी हम स्वतंत्र नहीं है.अवश्यमेव भोक्तव्यं कर्मकृत शुभाशुभम.ज्योतिष पुनर्जन्म एवं कर्म के सिद्धांत पर आधारित शास्त्र है.
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