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बोझ उतार दो

29 मई 2015

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जीवन में सुख और दुःख आते रहते हैं.विना इन दोनों के जीवन में नीरसता आ जाती है.जब तक हम इन दोनों का अनुभव नहीं कर लेते ,उनके मूल्य को नहीं समझ सकते.प्रायः सुख का समय अधिक होने के कारण और सम्बन्धियों तथा मित्रो के समीप रहने के कारण वह समय सरलता से निकल जाता है और हमें पता नहीं चलता​.दुःख का समय यद्यपि अल्प काल का होता है,अभ्यास न होने के कारण वह समय हमें बहुत भारी लगता है. जीवन के बारे में दार्शनिकों और शायरों ने अलग अलग राय दी है. एक कवि ने लिखा- "दुनियां में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा,जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा" किसी और ने कहा-"जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर,कोई समझा नहीं ,कोई जाना नहीं " एक और शायर की दृष्टि में जीवन है -"जिंदगी एक सफर है सुहाना,यहाँ कल क्या हो किसने जाना " कदाचित जीवन के बारे में समझना एक सामान्य व्यक्ति के लिए कठिन है,हम जीवन के कुछ दुखों को तो स्वयं उत्पन्न कर लेते हैं या उनको बोझ समझ के दुखी हुआ करते हैं.दुःख का आना उतना कष्टकारी नहीं होता जितना उसको बोझ समझ कर तिल तिल दुखी होते रहना. एक युवक एक महात्मा के पास गया.उनसे प्रश्न किया कि महात्मन मैं जीवन के दुखों के बोझ से त्रस्त हो गया हूँ,अब ये बोझ मुझसे सहा नहीं जाता,कोई उपाय बताइये . महात्मा उसे पास के जंगल में ले गए.एक बड़ा सा पत्थर उसके सर पर रख दिया और बोले अब चलो.पत्थर बहुत भारी था.कुछ दूर जाने पर ही उसको पीड़ा होने लगी. पर उसने कुछ नहीं कहा.आगे जाने पर पीड़ा और बढ़ गयी.अब उससे सहन नहीं हो रहा था.उसने कहा कि महात्मन अब मुझसे ये बोझ सहन नहीं होता.महात्मा ने कहा कि बोझ अब उतार दो,उसने पत्थर सर पर से उतार दिया,महात्मा ने पूछा कि अब कैसा लग रहा है.उसने कहा अब बहुत अच्छा लग रहा है.मैं अब बहुत ही मुक्त और प्रसन्न अनुभव कर रहा हूँ. महात्मा ने कहा कि जीवन के बोझ को भी इसी तरह जो सर पर उठाये चलते हैं,उन्हें बहुत कष्ट होता है.कुछ देर तक उठाने पर थोड़ा कष्ट और बहुत देर तक उठाने पर बहुत कष्ट होता है.जीवन में आने वाले दुखों को धैर्य और साहस से दूर करना चाहिए,पर उनको मन में लेकर उनके बोझ से अपने आप को दुखी नहीं करना चाहिए.अच्छा तो ये है कि बोझ को उठाया ही न जाये,और यदि उठाना ही पड़े तो उसे बहुत देर तक नहीं ढोना चाहिए,उसे उतार देना चाहिए.और सबसे अच्छी बात ये है कि जीवन को बोझ समझा ही न जाये. हम सभी ने कुत्तों को देखा होगा.उन्हें चोट लगती है तो वे अपनी चोट को अपनी जीभ से चाट चाट कर ठीक कर लेते हैं.वहीँ पर बन्दर अपने घावों को कुरेद कर और भी ख़राब कर देता है.हमें अपने जीवन के घावों को आत्मसात करते हुए उनसे अपनापन दिखाते हुए उनसे उबरना चाहिए,न कि उन्हें बोझ समझ कर अपने आप को कष्ट और दुःख देकर और भी अधिक दुखी करना चाहिए. जीवन जीने का नाम है न कि उससे भागने का.हम जितना भागेंगे,जीवन उतना ही बोझ लगेगा,जिस पल हम ठहर जायेंगे,जीवन भी ठहर जायेगा,दुःख भी विश्राम को चला जायेगा.दुःख का कोई अलग से अस्तित्त्व नहीं है,सुख का अभाव या अभाव की अनुभूति ही दुःख है.

सुरेन्द्र नारायण सिंह की अन्य किताबें

शालिनी कौशिक एडवोकेट

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sarthak vichar prastut kiye hain aapne jeevan ke bare me .

29 मई 2015

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12 अप्रैल 2015
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ईश्वर ने सबको समान रूप से बनाया है. सबको हवा ,पानी,पृथ्वी आदि की व्यवस्था की है.फिर हम कौन होते हैं किसी को उसके अधिकार से वंचित करने वाले.ईश्वर ने सबको इंसान बनाया ,हमने उसे जाति,धर्म ,वर्ग आदि में बाँट दिया.यह ईश्वरीय व्यवस्था के विरुद्ध है.आइये हम सब संकल्प लें कि अब से और अभी से हम वंचितों को

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स्वभाव

12 अप्रैल 2015
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हम सबने एक कथा पढ़ी है .एक ऋषि नदी किनारे बैठे थे .उन्होंने देखा कि एक विच्छू पानी में गिरा है और निकलने का प्रयास कर रहा है पर सफल नहीं हो रहा है.कोमल ह्रदय ऋषि ने उस विच्छू को बचाने का निर्णय लिया.उन्होंने विच्छू को हाँथ से बहार निकालना चाहा .विच्छू ने उन्हें डंक मार दिया. ऋषि ने इसकी परवाह न करते

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ज्योतिष ,एक महा विज्ञान

12 अप्रैल 2015
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कौन सा धर्म श्रेष्ठ है

13 अप्रैल 2015
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एक राज्य के राजा बड़े ही धर्मनिष्ठ ,दयालु,ईश्वरभक्त व प्रजापालक थे.प्रजा के सुख दुःख का पूरा ध्यान रखते थे.उनके राज्य में प्रजा सुखी व समृद्ध थी.एक दिन अचानक राजा के मन में विचार आया कि कौन सा धर्म श्रेष्ठ है.वे इस प्रश्न के उत्तर के लिए विकल थे पर उन्हें इसका उत्तर नहीं मिल पा रहा था.उनकी निद्रा लुप

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सुखी दांपत्य जीवन का सूत्र

15 अप्रैल 2015
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जीवन के चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम का अत्यधिक महत्त्व है. दांपत्य जीवन में समरसता ,सौहार्द्र और समर्पण का होना बहुत ही आवश्यक है.पर जब किसी कारणवश दांपत्य में कटुता आ जाती है तो पूरा जीवन ही दुस्साध्य हो जाता है.जीवन एक भार लगने लगता है.शोध से पता चलता है की प्रायः दांपत्य में कटुता के पीछे मुख्य

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16 अप्रैल 2015
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ज्योतिष सृष्टि के साथ ही श्री ब्रह्माजी के श्रीमुख से आविर्भूत हुआ था.लोक कल्याण के लिए इस शास्त्र की रचना की गयी.वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत में भी ज्योतिष के कई प्रसंग आये हैं. महर्षि वेदव्यास जी ने तेरह दिन के पक्ष में दो ग्रहण लगने पर एक भयंकर युद्ध की चेतावनी दी थी.महर्षि पराशर को ज्योतिष का

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बालक की सत्यवादिता

20 अप्रैल 2015
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पहले के समय में लोग कारवां में चलते थे.कारण कि रास्ते में चोर डाकुओं का भय लगा रहता था.गंतव्य तक पहुचने में कई कई दिन लग जाते थे.विश्राम के लिए सराय में शरण लेते थे.ऐसी ही एक घटना का यहाँ पर वर्णन कर रहा हूँ.यात्रियों का एक दल कहीं के लिए निकला था.उसमें युवा ,बच्चे ,महिला तथा वृद्ध सभी सम्मिलित थे

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भगवान अहंकार खाते हैं

23 अप्रैल 2015
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रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीददासजी ने लिखा है- "नहि कोउ अस जन्मा जग माहि,प्रभुता पाई जाहि मद नाहि". अहंकार मानव का सबसे बड़ा शत्रु है.किसी को धन का अहंकार,किसी को पद का अहंकार,किसी को बल का

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3 मई 2015
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हम अपने जीवन में बहुत से ऐसे कार्य करते हैं या लोगों द्वारा किया जाता हुआ देखते हैं जो वास्तव में उचित नहीं होते.पर अपने अहम के कारण अपना दोष स्वीकार नहीं करते.अहम एक ऐसा दोष है जो हमें हमारे दोषों की ओर देखने नहीं देता या हम जानबूझ कर उसे नहीं समझते हैं. एक साधु (?)थे.तालाब के किनारे

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आभार एवं शुभानुशंसा

4 मई 2015
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शब्द नगरी संगठन को उसके सराहनीय कार्य के लिए बहुत बहुत बधाई एवं ढेर सारी शुभ कामनाएं .हम संगठन से जुड़े लोगों के प्रति आभार प्रकट करते हैं व अनुशंसा करते हैं.ईश्वर हिंदी के उत्थान में लगे इस संगठन को अहर्निश उन्नति प्रदान करें. "निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मू

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कितने पुत्र हैं

5 मई 2015
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हमारे समाज में बल्कि संसार के हर समाज में पुत्रों को बहुत महत्त्व दिया जाता है.पुत्र की कामना में लोग न जाने क्या क्या करते हैं.पुत्र लायक हो या नालायक हो,उसे पुत्रियों पर सदा ही वरीयता दी जाती है.कहा तो यहाँ तक जाता है कि जिसके पुत्र न हों उन्हें मुक्ति नहीं मिलती.यद्यपि पुत्रियां हर क्षेत्र

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माँ

10 मई 2015
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माँ एक ऐसा शब्द है जिसके बराबर पूरे ब्रह्माण्ड में कोई शब्द नहीं है.जन्म लेने के बाद बच्चा जो पहला शब्द बोलता है वह माँ ही है.माँ एक गुरु भी है,जो बच्चे के एकदम नए मन को अपने ज्ञान ,अनुभव से गढती है और उसे भविष्य का मानव बनाने का प्रयास करती है.माँ बच्चे के जन्म में पूरे नौ महीने का समय जिस

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बोझ उतार दो

29 मई 2015
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भगवान आखिर रहते कहाँ हैं

3 जून 2015
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हम सब किसी न किसी धर्म को मानते हैं और हर धर्म की एक अलग मान्यता है,पर इस बात पर सब एक मत हैं कि ईश्वर एक है और वह हमसब के अंदर रहता है.हम उसे मंदिर ,मस्जिद ,चर्च,गुरुद्वारा या किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल पर खोजते हैं.धर्म के नाम पर इंसान इंसान से लड़ाई झगड़े भी करता रहता है.पर क्या हमने कभी सो

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जिम्मा तो परमात्मा ने लिया है

18 जून 2015
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हम सांसारिक लोग दिन रात भौतिक सुख सुविधाओं के लिए भागम भाग करते रहते हैं.किसी को भी संतोष नहीं है.संचय करने की कोई सीमा नहीं है.वश चले तो हम सारे संसार के लोगों के धन पदार्थ अपने पास रख लें.पर यह संसार हमसे नहीं चलता .इसको चलाने वाला बहुत अच्छी तरह जानता है कि किसको क्या आवश्यकता है,उसी आधार प

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मन की निर्मलता

11 जुलाई 2015
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हम प्रायः तीर्थयात्रा पर जाने या पवित्र नदियों में स्नान करने के बारे में पढ़ते और सुनते रहते हैं.हमारे धार्मिक ग्रंथों में तीर्थयात्रा और गंगा स्नान के महत्त्व के बारे में विस्तार से लिखा गया है तथा संत लोग अपने प्रवचनों में भी इन बातो का वर्णन करते हैं.निश्चित रूप से इनका महत्त्व है.पर क्या

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