हम सबने एक कथा पढ़ी है .एक ऋषि नदी किनारे बैठे थे .उन्होंने देखा कि एक विच्छू पानी में गिरा है और निकलने का प्रयास कर रहा है पर सफल नहीं हो रहा है.कोमल ह्रदय ऋषि ने उस विच्छू को बचाने का निर्णय लिया.उन्होंने विच्छू को हाँथ से बहार निकालना चाहा .विच्छू ने उन्हें डंक मार दिया. ऋषि ने इसकी परवाह न करते हुए फिर से उसे हाँथ से उठाया .उसने फिर डंक मारा. यह प्रक्रिया अनवरत चलती रही. ऋषि उसे निकालने का प्रयास करते और विच्छू उन्हें डंक मार देता. वहां पर इस कार्य को बहुत देर से देख रहे एक सज्जन ने ऋषिवर से कहा,ऋषिश्रेष्ठ !आप इस जहरीले विच्छू को व्यर्थ ही बचाने का प्रयास कर रहे हैं. वह बार बार आपको डंक मार रहा है और आप उसे बार बार निकालने का प्रयास कर रहे हैं.छोड़ दीजिये उसको पानी में मरने के लिए. ऋषि ने कहा ,डंक मारना विच्छू का स्वभाव है और उसे बचाना मेरा स्वभाव है.