जीवन के चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम का अत्यधिक महत्त्व है. दांपत्य जीवन में समरसता ,सौहार्द्र और समर्पण का होना बहुत ही आवश्यक है.पर जब किसी कारणवश दांपत्य में कटुता आ जाती है तो पूरा जीवन ही दुस्साध्य हो जाता है.जीवन एक भार लगने लगता है.शोध से पता चलता है की प्रायः दांपत्य में कटुता के पीछे मुख्य रूप से अहम कार्य करता है.दोनों में से कोई भी अपना अहम छोड़ने को तैयार नहीं होता.परिणामस्वरूप दांपत्य दुखद हो जाता है.
एक युवा जो अपने दाम्पत्य जीवन से सुखी नहीं था,महात्म कबीर के पास पहुंचा .उसने सुन रखा था कि कबीर एक साधक होने के साथ ही एक सद्गृहस्थ भी हैं.उसने कबीर से सुखी दांपत्य के लिए कुछ उपदेश देने के लिए निवेदन किया.कबीर ने उसे बैठने के लिए कहा.दिन का उजाला था.भरपूर प्रकाश था उस कक्ष में.कबीर ने अपनी पत्नी को आवाज दी.कहा कि एक दीपक ले आओ.पत्नी एक दीपक रख गयी.उस युवा ने मन ही मन सोचा कि इन दोनों का मानसिक संतुलन बिगड़ गया हैं क्या.प्रकाश में कबीर दिया मांग रहे हैं और पत्नी बिना किस प्रतिवाद के दीपक रख जा रही हैं.
कुछ देर पश्चात पत्नी दो गिलास में शरबत ले के आयीं.शरबत में शक्कर कि जगह नमक मिला हुआ था.पत्नी ने कबीर से पूछा -शरबत में शक्कर कम तो नहीं हैं.कबीर ने कहा कि ठीक हैं.अब तो वह युवा पूरी तरह से समझ चूका था कि यहाँ आने से कोई लाभ नहीं हुआ,ये दोनों लोग तो मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं,ये क्या बतायेगे सुखी दाम्पत्य के सूत्र.वह उठ कर जाने लगा.कबीर ने पूछ,क्यों जा रहे हो? तुम्हें तुम्हारा उत्तर मिला कि नहीं ?उसने कहा-अपने तो कुछ बताया ही नहीं,उलटे ऐसे कार्य किया जो मुझु समझ नहीं आया.कबीर ने कहा कि यही तो दांपत्य का सरलतम सूत्र हैं.दाम्पत्य में तर्क-कुतर्क का कोई स्थान नहीं हैं.एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करना चाहिए और सदा ही त्याग के लिए तत्पर रहना चाहिए.