पहले के समय में लोग कारवां में चलते थे.कारण कि रास्ते में चोर डाकुओं का भय लगा रहता था.गंतव्य तक पहुचने में कई कई दिन लग जाते थे.विश्राम के लिए सराय में शरण लेते थे.ऐसी ही एक घटना का यहाँ पर वर्णन कर रहा हूँ.यात्रियों का एक दल कहीं के लिए निकला था.उसमें युवा ,बच्चे ,महिला तथा वृद्ध सभी सम्मिलित थे.सब के पास मॉल असबाब था.रुपये पैसे थे.सब लोग मस्ती में अपने गंतव्य के लिए चले जा रहे थे.किसी को भी आगे आनी वाली घटना का भान नहीं था.चलते चलते शाम हो गयी.लोग अब कहीं विश्राम के लिए रुकने की सोच रहे थे.अचानक तभी कहीं से डाकुओं का एक दल उस कारवां पर टूट पड़ा.डाकुओं ने सभी यात्रियों से उनके रुपये पैसे ,मॉल असबाब जो कुछ भी था ,सब लूट लिया.किसी के पास कुछ भी न छोड़ा.डाकुओं के सरदार ने अपने साथियों से पूछा कि सबसे सब कुछ ले लिया गया न.साथियों ने उसे बताया कि सबके पास कुछ न कुछ मिला पर एक बालक है जिसके पास कुछ नहीं था.सरदार ने उस बालक को बुलाकर पूछा-क्यों रे तेरे पास कुछ नहीं है?
बालक ने कहा कि मेरे पास सोने की पांच अशर्फियाँ हैं जो मेरी माँ ने मुझे दिए थे और मेरी तहमद में सिल दिया था.उसने तहमद में से उन अशर्फियों को निकालकर सरदार को दे दिया.सरदार ने पूछा कि तुमने हमें क्यों बताया अशर्फियों के बारे में,हम तो उन्हें ढूंढ भी नहीं पाये थे.बालक ने कहा-मेरी माँ ने मुझे ये भी सिखाया था कि कभी झूठ मत बोलना.इसलिए मैंने आपको बता दिया.
डाकुओं के दल को उस बालक कि सत्यवादिता से बड़ा आश्चर्य हुआ.सरदार ने सभी यात्रियों से लूटा गया सामान तुरंत वापस करवा दिया.उसने भविष्य में फिर कभी डाका डालने से तौबा कर ली.यही बालक आगे चलकर बहुत बड़ा खलीफा बना.