हम सब किसी न किसी धर्म को मानते हैं और हर धर्म की एक अलग मान्यता है,पर इस बात पर सब एक मत हैं कि ईश्वर एक है और वह हमसब के अंदर रहता है.हम उसे मंदिर ,मस्जिद ,चर्च,गुरुद्वारा या किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल पर खोजते हैं.धर्म के नाम पर इंसान इंसान से लड़ाई झगड़े भी करता रहता है.पर क्या हमने कभी सोचा कि वास्तव में भगवान रहते कहाँ हैं.
वचपन में मैंने एक कहानी पढ़ी थी.एफिम व एलिशा (पाठक गण कृपया मुझे क्षमा करें यदि मैं उनके सही नाम नहीं बता पा रहा हूँ) नामक दो मित्र तीर्थयात्रा पर चले.चलते चलते एक जगह पहुंचे,वहां पर उन्हें किसी के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी.अंदर जा कर देखा तो एक बुढ़िया मरणासन्न अवस्था में पड़ी थी.कोई देखभाल करने वाला नहीं था.दोनों मित्रों में से एक ने (कदाचित मैं उसका नाम स्मरण नहीं कर पा रहा हूँ)वहीँ पर रुक कर उस बुढ़िया की सेवा करने की सोची.दूसरे मित्र ने कहा कि हम भगवान के दर्शन के लिए चले हैं,तुम किस पचड़े में पड़ रहे हो.मित्र बोला -हमने निर्णय कर लिया है,मुझे अब आगे नहीं जाना.मैं यहीं पर रहकर इस बूढी मान कि सेवा करूँगा,तीर्थ फिर कभी करूँगा.उसने अपने पैसों से घर में राशन पानी का प्रबंध किया.घर की साफ सफाई कर के बुढ़िया को भोजन बनाकर खिलाया.अब यह उसका नित्य का कार्य हो गया.बुढ़िया की सेवा करना,उसके लिए भोजन आदि की व्यस्था करना ,उसकी दवा दारू की व्यवस्था करना ,यही उसकी नित्य की पूजा हो गयी.उसकी सेवा से बुढ़िया शीघ्र ही स्वस्थ हो गयी.उसके सारे पैसे समाप्त हो गए.अब तीर्थयात्रा पर जाना संभव नहीं था.वह घर लौट गया.
उधर उसका मित्र जब अपने गंतव्य पर पहुंचा तो उसने भगवान के समक्ष उस मित्र को प्रथम पंक्ति में दर्शन करते पाया.घर वापस लौटकर उसने अपने मित्र से शिकायत की कि तुम तो रुक गए थे फिर कब पहुँच गए और भगवान का दर्शन भी कर लिए और मुझसे मिले भी नहीं.दूसरे मित्र ने कहा मैं तो वहाँ गया ही नहीं,मेरे रुपये समाप्त हो गए थे ,सो मैं वापस आ गया.सारांश यह कि उसको उस बुढ़िया में ही भगवान के दर्शन हो गए.
मैंने कल्याण पत्रिका में संत एकनाथ के बारे में एक कथा पढ़ी थी.उस समय भारत में रेल नहीं थी.दक्षिण भारत से गंगोत्री तक आना सरल नहीं था.एकनाथ गंगोत्री आये.वहां से में जल भरकर ले चले.काशी होते हुए रामेश्वर को जाने लगे.रामेश्वर निकट था,ग्रीष्म ऋतु थी,एक दिन दोपहर कि जलती धुप में एकनाथ ने रेतीले मैदान में एक गधे को प्यास से छटपटाते देखा.प्यास से उस असहाय पशु की दशा बड़ी बुरी थी.एकनाथ को लगा की मेरी पूजा लेने के लिए प्रभु स्वयं यहाँ पधारे हैं.उन्होंने गंगोत्री का पानी उस गधे के मुंह में डालना प्रारम्भ किया,शीतल जल पीकर उस पशु में प्राणों का नवीन संचार हो गया.एकनाथ के साथियों ने कहा-इतने परिश्रम से प्रभु के लिए जल लाये थे,उसको नष्ट कर दिया.एकनाथ ने कहा,भाइयों जरा आँख का पर्दा हटाकर देखो,प्रभु सर्वत्र दिखेंगे.
हम लोग तीर्थयात्रा करने जाते हैं पर दीन दुखियों की उपेक्षा करते रहते हैं,हमें प्रभु के दर्शन कैसे होंगे.
प्राणिमात्र में ईश्वर का रूप है,आवश्यकता बस पहचानने की है.