हमारे समाज में बल्कि संसार के हर समाज में पुत्रों को बहुत महत्त्व दिया जाता है.पुत्र की कामना में लोग न जाने क्या क्या करते हैं.पुत्र लायक हो या नालायक हो,उसे पुत्रियों पर सदा ही वरीयता दी जाती है.कहा तो यहाँ तक जाता है कि जिसके पुत्र न हों उन्हें मुक्ति नहीं मिलती.यद्यपि पुत्रियां हर क्षेत्र में पुत्रों के साथ कदम से कदम मिलाकर परिवार का नाम रोशन कर रही हैं,उन्हें सदा ही उपेक्षित ही किया जाता है.लोग पुत्र की चाह में कई कई पुत्रियों के पैदा होने के बाद भी नहीं चेतते.
लेकिन क्या पुत्र वास्तव में पुत्र का कर्त्तव्य निभाता है?आये दिन हम ऐसे कई प्रकरण देखते हैं जिसमें पुत्र तो है पर केवल नाम का.माता पिता की सेवा की बात तो छोड़िये ,वह उन्हें घर तक से निकाल देता है दर दर भटकने के लिए.जो माँ नौ माह तक गर्भ में रखकर शिशु का हर तरह से ख्याल रखती है,सारे कष्ट उठाकर भी उफ़ तक नहीं करती ,उसी माँ को असहाय छोड़कर पुत्र अपने संसार में लीन हो जाता है.मैंने एक जगह एक कथा पढ़ी थी.बेटे का विवाह हो गया.उसकी पत्नी आ गयी.उसने पति के कान भरने प्रारम्भ कर दिए.पुत्र भी पत्नी के प्रेम में अँधा होकर माँ के साथ दुर्व्यवहार करने लगा.एक दिन उसने माँ से कहा कि माँ आज तुम सारे हिसाब कर लो .जो भी पैसा अब तक तुमने मेरे ऊपर खर्च किया है,सब मुझसे ले लो और हमारा पीछा छोड़ दो ,हम अब अलग रहेंगे.माँ ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हें हिसाब दूंगी.रात में जब बेटा सो गया,माँ ने उसके विस्तर पर एक लोटा पानी डाल दिया,पुत्र ने करवट बदली.वहां पर भी पानी डाल दिया.जहाँ जहाँ वह विस्तर पर स्थान बदलता,वहां पर पानी डाल देती.बेटा चिल्लाया.माँ ये क्या कर रही हो.माँ ने कहा मैं तुम्हें हिसाब दे रही हूँ.तुमने एक रात में ही विस्तर गीला होने के कारण इतना तूफान खड़ा कर दिया.मैंने जो कष्ट तुम्हें अपने विस्तर पर सुलाने में सहे हैं उसका हिसाब तो तू दे दे.रात में कितनी बार मैंने तुम्हें गीले से सूखे में किया,उसका हिसाब तो दे दे.ये काम मैंने वर्षो तक किया,उसका हिसाब तो दे दे.
एक महात्मा जी एक गावँ में गए.उन्होंने वहां पर कहा कि मैं उसी के घर रुकूंगा जिसने कभी झूठ न बोला हो.सारे लोग वहां पर अपने को सत्यवादी सिद्ध करने में लग गए.एक व्यक्ति वहां पर चुपचाप खड़ा था.महात्मा ने उससे पूछा कि तुम कुछ क्यों नहीं बोल रहे हो.सारे ग्रामवासी एक स्वर से बोल उठे,महात्मा जी इस व्यक्ति से झूठा तो पूरे संसार में कोई नहीं हो सकता.
महात्मा जी ने कहा कि मैं आज इसी के यहाँ पर रुकूंगा.वे उसके घर गए.गावँ वाले भी पीछे पहुंचे.महात्मा जी ने उससे पूछा कि कितने पुत्र हैं तुम्हारे.उस व्यक्ति ने कहा-महात्माजी केवल एक.गावँ वाले चिल्लाने लगे.देखिये महात्माजी हम लोग कह रहे थे कि ये सबसे बड़ा झूठा है.इसके तीन लड़के हैं और ये कह रहा है कि एक लड़का है.महात्माजी ने उससे पूछा कि सच बताओ.उसने कहा अभी सच का पता आपको चल जायेगा.उसने बड़े लड़के को आवाज लगायी,वह बोला मैं खाली नहीं हूँ आपके फालतू काम के लिए.उसने सबसे छोटे को बुलाया.उसने कहा कि आपकी तो आदत है दिन भर बक बक करने की.मैं नहीं आऊंगा.अब उसने मझले बेटे को बुलाया.वह कोई काम कर रहा था.उस काम को छोड़ कर वह तुरंत आया.उसने विनम्रता पूर्वक पिता से पूछा कि क्या आज्ञा है पिता जी.उस व्यकि ने महात्माजी से कहा कि महात्माजी अब आप ही बताइये मेरे कितने पुत्र हैं.
कहने को तो मेरे तीन तीन पुत्र हैं पर दो तो किसी काम के नहीं हैं.काम का तो मेरा एक ही पुत्र है.अब आप मुझे सच्चा कहें या झूठा.महात्माजी ने गाँव वालों से कहा कि वास्तव में सबसे सच्चा तो यही है.
"पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः "
पिता के प्रसन्न होने पर सभी देवता प्रसन्न होते हैं.