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कितने पुत्र हैं

5 मई 2015

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हमारे समाज में बल्कि संसार के हर समाज में पुत्रों को बहुत महत्त्व दिया जाता है.पुत्र की कामना में लोग न जाने क्या क्या करते हैं.पुत्र लायक हो या नालायक हो,उसे पुत्रियों पर सदा ही वरीयता दी जाती है.कहा तो यहाँ तक जाता है कि जिसके पुत्र न हों उन्हें मुक्ति नहीं मिलती.यद्यपि पुत्रियां हर क्षेत्र में पुत्रों के साथ कदम से कदम मिलाकर परिवार का नाम रोशन कर रही हैं,उन्हें सदा ही उपेक्षित ही किया जाता है.लोग पुत्र की चाह में कई कई पुत्रियों के पैदा होने के बाद भी नहीं चेतते. लेकिन क्या पुत्र वास्तव में पुत्र का कर्त्तव्य निभाता है?आये दिन हम ऐसे कई प्रकरण देखते हैं जिसमें पुत्र तो है पर केवल नाम का.माता पिता की सेवा की बात तो छोड़िये ,वह उन्हें घर तक से निकाल देता है दर दर भटकने के लिए.जो माँ नौ माह तक गर्भ में रखकर शिशु का हर तरह से ख्याल रखती है,सारे कष्ट उठाकर भी उफ़ तक नहीं करती ,उसी माँ को असहाय छोड़कर पुत्र अपने संसार में लीन हो जाता है.मैंने एक जगह एक कथा पढ़ी थी.बेटे का विवाह हो गया.उसकी पत्नी आ गयी.उसने पति के कान भरने प्रारम्भ कर दिए.पुत्र भी पत्नी के प्रेम में अँधा होकर माँ के साथ दुर्व्यवहार करने लगा.एक दिन उसने माँ से कहा कि माँ आज तुम सारे हिसाब कर लो .जो भी पैसा अब तक तुमने मेरे ऊपर खर्च किया है,सब मुझसे ले लो और हमारा पीछा छोड़ दो ,हम अब अलग रहेंगे.माँ ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हें हिसाब दूंगी.रात में जब बेटा सो गया,माँ ने उसके विस्तर पर एक लोटा पानी डाल दिया,पुत्र ने करवट बदली.वहां पर भी पानी डाल दिया.जहाँ जहाँ वह विस्तर पर स्थान बदलता,वहां पर पानी डाल देती.बेटा चिल्लाया.माँ ये क्या कर रही हो.माँ ने कहा मैं तुम्हें हिसाब दे रही हूँ.तुमने एक रात में ही विस्तर गीला होने के कारण इतना तूफान खड़ा कर दिया.मैंने जो कष्ट तुम्हें अपने विस्तर पर सुलाने में सहे हैं उसका हिसाब तो तू दे दे.रात में कितनी बार मैंने तुम्हें गीले से सूखे में किया,उसका हिसाब तो दे दे.ये काम मैंने वर्षो तक किया,उसका हिसाब तो दे दे. एक महात्मा जी एक गावँ में गए.उन्होंने वहां पर कहा कि मैं उसी के घर रुकूंगा जिसने कभी झूठ न बोला हो.सारे लोग वहां पर अपने को सत्यवादी सिद्ध करने में लग गए.एक व्यक्ति वहां पर चुपचाप खड़ा था.महात्मा ने उससे पूछा कि तुम कुछ क्यों नहीं बोल रहे हो.सारे ग्रामवासी एक स्वर से बोल उठे,महात्मा जी इस व्यक्ति से झूठा तो पूरे संसार में कोई नहीं हो सकता. महात्मा जी ने कहा कि मैं आज इसी के यहाँ पर रुकूंगा.वे उसके घर गए.गावँ वाले भी पीछे पहुंचे.महात्मा जी ने उससे पूछा कि कितने पुत्र हैं तुम्हारे.उस व्यक्ति ने कहा-महात्माजी केवल एक.गावँ वाले चिल्लाने लगे.देखिये महात्माजी हम लोग कह रहे थे कि ये सबसे बड़ा झूठा है.इसके तीन लड़के हैं और ये कह रहा है कि एक लड़का है.महात्माजी ने उससे पूछा कि सच बताओ.उसने कहा अभी सच का पता आपको चल जायेगा.उसने बड़े लड़के को आवाज लगायी,वह बोला मैं खाली नहीं हूँ आपके फालतू काम के लिए.उसने सबसे छोटे को बुलाया.उसने कहा कि आपकी तो आदत है दिन भर बक बक करने की.मैं नहीं आऊंगा.अब उसने मझले बेटे को बुलाया.वह कोई काम कर रहा था.उस काम को छोड़ कर वह तुरंत आया.उसने विनम्रता पूर्वक पिता से पूछा कि क्या आज्ञा है पिता जी.उस व्यकि ने महात्माजी से कहा कि महात्माजी अब आप ही बताइये मेरे कितने पुत्र हैं. कहने को तो मेरे तीन तीन पुत्र हैं पर दो तो किसी काम के नहीं हैं.काम का तो मेरा एक ही पुत्र है.अब आप मुझे सच्चा कहें या झूठा.महात्माजी ने गाँव वालों से कहा कि वास्तव में सबसे सच्चा तो यही है. "पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः " पिता के प्रसन्न होने पर सभी देवता प्रसन्न होते हैं.

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हम सबने एक कथा पढ़ी है .एक ऋषि नदी किनारे बैठे थे .उन्होंने देखा कि एक विच्छू पानी में गिरा है और निकलने का प्रयास कर रहा है पर सफल नहीं हो रहा है.कोमल ह्रदय ऋषि ने उस विच्छू को बचाने का निर्णय लिया.उन्होंने विच्छू को हाँथ से बहार निकालना चाहा .विच्छू ने उन्हें डंक मार दिया. ऋषि ने इसकी परवाह न करते

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ज्योतिष ,एक महा विज्ञान

12 अप्रैल 2015
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ज्योतिष के बारे में आजकल एक धारणा विशेष रूप से जनमानस में घर कर रही है कि यह एक अन्धविश्वास है.और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.इस धारणा को बल मिलने के पीछे तथाकथित वैज्ञानिकों का तर्क (कुतर्क)है कि पृथ्वी से इतनी दूर स्थित ग्रहों का पृथ्वीवासियों पर प्रभाव कैसे पड़ सकता है.यहाँ पर एक बात बड़े ही ध्

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13 अप्रैल 2015
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एक राज्य के राजा बड़े ही धर्मनिष्ठ ,दयालु,ईश्वरभक्त व प्रजापालक थे.प्रजा के सुख दुःख का पूरा ध्यान रखते थे.उनके राज्य में प्रजा सुखी व समृद्ध थी.एक दिन अचानक राजा के मन में विचार आया कि कौन सा धर्म श्रेष्ठ है.वे इस प्रश्न के उत्तर के लिए विकल थे पर उन्हें इसका उत्तर नहीं मिल पा रहा था.उनकी निद्रा लुप

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15 अप्रैल 2015
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जीवन के चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम का अत्यधिक महत्त्व है. दांपत्य जीवन में समरसता ,सौहार्द्र और समर्पण का होना बहुत ही आवश्यक है.पर जब किसी कारणवश दांपत्य में कटुता आ जाती है तो पूरा जीवन ही दुस्साध्य हो जाता है.जीवन एक भार लगने लगता है.शोध से पता चलता है की प्रायः दांपत्य में कटुता के पीछे मुख्य

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ज्योतिष प्राचीनतम शास्त्र है

16 अप्रैल 2015
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ज्योतिष सृष्टि के साथ ही श्री ब्रह्माजी के श्रीमुख से आविर्भूत हुआ था.लोक कल्याण के लिए इस शास्त्र की रचना की गयी.वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत में भी ज्योतिष के कई प्रसंग आये हैं. महर्षि वेदव्यास जी ने तेरह दिन के पक्ष में दो ग्रहण लगने पर एक भयंकर युद्ध की चेतावनी दी थी.महर्षि पराशर को ज्योतिष का

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बालक की सत्यवादिता

20 अप्रैल 2015
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पहले के समय में लोग कारवां में चलते थे.कारण कि रास्ते में चोर डाकुओं का भय लगा रहता था.गंतव्य तक पहुचने में कई कई दिन लग जाते थे.विश्राम के लिए सराय में शरण लेते थे.ऐसी ही एक घटना का यहाँ पर वर्णन कर रहा हूँ.यात्रियों का एक दल कहीं के लिए निकला था.उसमें युवा ,बच्चे ,महिला तथा वृद्ध सभी सम्मिलित थे

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भगवान अहंकार खाते हैं

23 अप्रैल 2015
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रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीददासजी ने लिखा है- "नहि कोउ अस जन्मा जग माहि,प्रभुता पाई जाहि मद नाहि". अहंकार मानव का सबसे बड़ा शत्रु है.किसी को धन का अहंकार,किसी को पद का अहंकार,किसी को बल का

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साधु कौन

3 मई 2015
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हम अपने जीवन में बहुत से ऐसे कार्य करते हैं या लोगों द्वारा किया जाता हुआ देखते हैं जो वास्तव में उचित नहीं होते.पर अपने अहम के कारण अपना दोष स्वीकार नहीं करते.अहम एक ऐसा दोष है जो हमें हमारे दोषों की ओर देखने नहीं देता या हम जानबूझ कर उसे नहीं समझते हैं. एक साधु (?)थे.तालाब के किनारे

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आभार एवं शुभानुशंसा

4 मई 2015
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शब्द नगरी संगठन को उसके सराहनीय कार्य के लिए बहुत बहुत बधाई एवं ढेर सारी शुभ कामनाएं .हम संगठन से जुड़े लोगों के प्रति आभार प्रकट करते हैं व अनुशंसा करते हैं.ईश्वर हिंदी के उत्थान में लगे इस संगठन को अहर्निश उन्नति प्रदान करें. "निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मू

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माँ

10 मई 2015
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माँ एक ऐसा शब्द है जिसके बराबर पूरे ब्रह्माण्ड में कोई शब्द नहीं है.जन्म लेने के बाद बच्चा जो पहला शब्द बोलता है वह माँ ही है.माँ एक गुरु भी है,जो बच्चे के एकदम नए मन को अपने ज्ञान ,अनुभव से गढती है और उसे भविष्य का मानव बनाने का प्रयास करती है.माँ बच्चे के जन्म में पूरे नौ महीने का समय जिस

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बोझ उतार दो

29 मई 2015
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जीवन में सुख और दुःख आते रहते हैं.विना इन दोनों के जीवन में नीरसता आ जाती है.जब तक हम इन दोनों का अनुभव नहीं कर लेते ,उनके मूल्य को नहीं समझ सकते.प्रायः सुख का समय अधिक होने के कारण और सम्बन्धियों तथा मित्रो के समीप रहने के कारण वह समय सरलता से निकल जाता है और हमें पता नहीं चलता​.दुःख का समय य

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भगवान आखिर रहते कहाँ हैं

3 जून 2015
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हम सब किसी न किसी धर्म को मानते हैं और हर धर्म की एक अलग मान्यता है,पर इस बात पर सब एक मत हैं कि ईश्वर एक है और वह हमसब के अंदर रहता है.हम उसे मंदिर ,मस्जिद ,चर्च,गुरुद्वारा या किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल पर खोजते हैं.धर्म के नाम पर इंसान इंसान से लड़ाई झगड़े भी करता रहता है.पर क्या हमने कभी सो

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जिम्मा तो परमात्मा ने लिया है

18 जून 2015
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हम सांसारिक लोग दिन रात भौतिक सुख सुविधाओं के लिए भागम भाग करते रहते हैं.किसी को भी संतोष नहीं है.संचय करने की कोई सीमा नहीं है.वश चले तो हम सारे संसार के लोगों के धन पदार्थ अपने पास रख लें.पर यह संसार हमसे नहीं चलता .इसको चलाने वाला बहुत अच्छी तरह जानता है कि किसको क्या आवश्यकता है,उसी आधार प

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मन की निर्मलता

11 जुलाई 2015
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हम प्रायः तीर्थयात्रा पर जाने या पवित्र नदियों में स्नान करने के बारे में पढ़ते और सुनते रहते हैं.हमारे धार्मिक ग्रंथों में तीर्थयात्रा और गंगा स्नान के महत्त्व के बारे में विस्तार से लिखा गया है तथा संत लोग अपने प्रवचनों में भी इन बातो का वर्णन करते हैं.निश्चित रूप से इनका महत्त्व है.पर क्या

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