हम प्रायः तीर्थयात्रा पर जाने या पवित्र नदियों में स्नान करने के बारे में पढ़ते और सुनते रहते हैं.हमारे धार्मिक ग्रंथों में तीर्थयात्रा और गंगा स्नान के महत्त्व के बारे में विस्तार से लिखा गया है तथा संत लोग अपने प्रवचनों में भी इन बातो का वर्णन करते हैं.निश्चित रूप से इनका महत्त्व है.पर क्या इन सब के कर लेने मात्र से ही हम पवित्र और निर्मल हो जाते हैं?मैं अपने सुधी पाठकों से क्षमा याचना करते हुए इस कथा को आगे बढ़ता हूँ.
संत तुकाराम के जीवन की एक कथा है.एक बार कुछ महात्मा लोग तीर्थयात्रा पर जा रहे थे.उन्होंने संत तुकाराम से भी चलने को कहा.तुकाराम ने अपने असमर्थता प्रकट की.पर उन्होंने एक कद्दू उन लोगों को दिया और उनसे कहा कि वे उस कद्दू को भी साथ साथ रखें और जहाँ जहाँ जाएँ और स्नान करें ,उस कद्दू को भी साथ साथ दर्शन पूजन और स्नान कराएं.वो कद्दू कड़वा था,ऐसा तुकाराम जी जानते थे.
महात्मा लोग पूरे भारत का भ्रमण करते हुए एवं सभी पवित्र नदियों में स्नान करते हुए तथा साथ साथ उस कद्दू को भी सारे कर्मकांड कराते हुए वापस आये.सभी तीर्थों में कद्दू को दर्शन कराया गया था और सभी नदियों में कद्दू को भी स्नान कराया गया था.
तुकाराम जी ने उन लोगों का स्वागत किया और उनके सम्मान में एक भोज का आयोजन किया गया.भोज में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये गए.उस कद्दू की भी सब्जी बनायीं गयी.सब लोग भोजन करने बैठे.जब उन्होंने कद्दू की सब्जी चखी तो सबने एक स्वर से कहा कि तुकाराम जी ये कौन सी सब्जी आपने बनवा दी.ये तो बड़ी ही कड़वी है.शेष सब व्यंजन तो बहुत अच्छे हैं पर इस सब्जी ने तो पूरा स्वास ही बिगाड़ दिया.
तुकाराम जी ने कहा कि ये कैसे हो सकता है?ये सब्जी तो उसी कद्दू की है जिसे आपलोग अपने साथ तीर्थयात्रा पर ले गए थे और इसको सभी तीर्थो में घुमाया ,सब जगह दर्शन पूजन स्नान आदि कराया,ये अब भी कड़वा का कड़वा ही रह गया.इसे तो अबतक मीठा हो जाना चाहिए था.पर ये हुआ नहीं.
आप लोगों ने कुछ शिक्षा ली कि नहीं इस प्रसंग से?उन लोगों की समझ में कुछ नहीं आया.तुकाराम जी ने बताया कि जैसे ये कद्दू कड़वा था .पर तीर्थो में दर्शन करने और पवित्र नदियों में नहाने के बाद भी मीठा नहीं हुआ,उसी प्रकार जिनका मन निर्मल नहीं है,वे लाख दर्शन पूजन कर लें ,उन्हें कोई लाभ नहीं होगा.