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मन की निर्मलता

11 जुलाई 2015

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हम प्रायः तीर्थयात्रा पर जाने या पवित्र नदियों में स्नान करने के बारे में पढ़ते और सुनते रहते हैं.हमारे धार्मिक ग्रंथों में तीर्थयात्रा और गंगा स्नान के महत्त्व के बारे में विस्तार से लिखा गया है तथा संत लोग अपने प्रवचनों में भी इन बातो का वर्णन करते हैं.निश्चित रूप से इनका महत्त्व है.पर क्या इन सब के कर लेने मात्र से ही हम पवित्र और निर्मल हो जाते हैं?मैं अपने सुधी पाठकों से क्षमा याचना करते हुए इस कथा को आगे बढ़ता हूँ. संत तुकाराम के जीवन की एक कथा है.एक बार कुछ महात्मा लोग तीर्थयात्रा पर जा रहे थे.उन्होंने संत तुकाराम से भी चलने को कहा.तुकाराम ने अपने असमर्थता प्रकट की.पर उन्होंने एक कद्दू उन लोगों को दिया और उनसे कहा कि वे उस कद्दू को भी साथ साथ रखें और जहाँ जहाँ जाएँ और स्नान करें ,उस कद्दू को भी साथ साथ दर्शन पूजन और स्नान कराएं.वो कद्दू कड़वा था,ऐसा तुकाराम जी जानते थे. महात्मा लोग पूरे भारत का भ्रमण करते हुए एवं सभी पवित्र नदियों में स्नान करते हुए तथा साथ साथ उस कद्दू को भी सारे कर्मकांड कराते हुए वापस आये.सभी तीर्थों में कद्दू को दर्शन कराया गया था और सभी नदियों में कद्दू को भी स्नान कराया गया था. तुकाराम जी ने उन लोगों का स्वागत किया और उनके सम्मान में एक भोज का आयोजन किया गया.भोज में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाये गए.उस कद्दू की भी सब्जी बनायीं गयी.सब लोग भोजन करने बैठे.जब उन्होंने कद्दू की सब्जी चखी तो सबने एक स्वर से कहा कि तुकाराम जी ये कौन सी सब्जी आपने बनवा दी.ये तो बड़ी ही कड़वी है.शेष सब व्यंजन तो बहुत अच्छे हैं पर इस सब्जी ने तो पूरा स्वास ही बिगाड़ दिया. तुकाराम जी ने कहा कि ये कैसे हो सकता है?ये सब्जी तो उसी कद्दू की है जिसे आपलोग अपने साथ तीर्थयात्रा पर ले गए थे और इसको सभी तीर्थो में घुमाया ,सब जगह दर्शन पूजन स्नान आदि कराया,ये अब भी कड़वा का कड़वा ही रह गया.इसे तो अबतक मीठा हो जाना चाहिए था.पर ये हुआ नहीं. आप लोगों ने कुछ शिक्षा ली कि नहीं इस प्रसंग से?उन लोगों की समझ में कुछ नहीं आया.तुकाराम जी ने बताया कि जैसे ये कद्दू कड़वा था .पर तीर्थो में दर्शन करने और पवित्र नदियों में नहाने के बाद भी मीठा नहीं हुआ,उसी प्रकार जिनका मन निर्मल नहीं है,वे लाख दर्शन पूजन कर लें ,उन्हें कोई लाभ नहीं होगा.

सुरेन्द्र नारायण सिंह की अन्य किताबें

विजय कुमार शर्मा

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बिल्कुल सटीक सुरेद्र नारायण सिंह जी मन का निर्मल होना बहुत ही जरुरी है

11 जुलाई 2015

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सबको जीने का अधिकार है

12 अप्रैल 2015
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ईश्वर ने सबको समान रूप से बनाया है. सबको हवा ,पानी,पृथ्वी आदि की व्यवस्था की है.फिर हम कौन होते हैं किसी को उसके अधिकार से वंचित करने वाले.ईश्वर ने सबको इंसान बनाया ,हमने उसे जाति,धर्म ,वर्ग आदि में बाँट दिया.यह ईश्वरीय व्यवस्था के विरुद्ध है.आइये हम सब संकल्प लें कि अब से और अभी से हम वंचितों को

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स्वभाव

12 अप्रैल 2015
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हम सबने एक कथा पढ़ी है .एक ऋषि नदी किनारे बैठे थे .उन्होंने देखा कि एक विच्छू पानी में गिरा है और निकलने का प्रयास कर रहा है पर सफल नहीं हो रहा है.कोमल ह्रदय ऋषि ने उस विच्छू को बचाने का निर्णय लिया.उन्होंने विच्छू को हाँथ से बहार निकालना चाहा .विच्छू ने उन्हें डंक मार दिया. ऋषि ने इसकी परवाह न करते

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ज्योतिष ,एक महा विज्ञान

12 अप्रैल 2015
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ज्योतिष के बारे में आजकल एक धारणा विशेष रूप से जनमानस में घर कर रही है कि यह एक अन्धविश्वास है.और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.इस धारणा को बल मिलने के पीछे तथाकथित वैज्ञानिकों का तर्क (कुतर्क)है कि पृथ्वी से इतनी दूर स्थित ग्रहों का पृथ्वीवासियों पर प्रभाव कैसे पड़ सकता है.यहाँ पर एक बात बड़े ही ध्

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कौन सा धर्म श्रेष्ठ है

13 अप्रैल 2015
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एक राज्य के राजा बड़े ही धर्मनिष्ठ ,दयालु,ईश्वरभक्त व प्रजापालक थे.प्रजा के सुख दुःख का पूरा ध्यान रखते थे.उनके राज्य में प्रजा सुखी व समृद्ध थी.एक दिन अचानक राजा के मन में विचार आया कि कौन सा धर्म श्रेष्ठ है.वे इस प्रश्न के उत्तर के लिए विकल थे पर उन्हें इसका उत्तर नहीं मिल पा रहा था.उनकी निद्रा लुप

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सुखी दांपत्य जीवन का सूत्र

15 अप्रैल 2015
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जीवन के चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम का अत्यधिक महत्त्व है. दांपत्य जीवन में समरसता ,सौहार्द्र और समर्पण का होना बहुत ही आवश्यक है.पर जब किसी कारणवश दांपत्य में कटुता आ जाती है तो पूरा जीवन ही दुस्साध्य हो जाता है.जीवन एक भार लगने लगता है.शोध से पता चलता है की प्रायः दांपत्य में कटुता के पीछे मुख्य

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16 अप्रैल 2015
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ज्योतिष सृष्टि के साथ ही श्री ब्रह्माजी के श्रीमुख से आविर्भूत हुआ था.लोक कल्याण के लिए इस शास्त्र की रचना की गयी.वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत में भी ज्योतिष के कई प्रसंग आये हैं. महर्षि वेदव्यास जी ने तेरह दिन के पक्ष में दो ग्रहण लगने पर एक भयंकर युद्ध की चेतावनी दी थी.महर्षि पराशर को ज्योतिष का

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बालक की सत्यवादिता

20 अप्रैल 2015
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पहले के समय में लोग कारवां में चलते थे.कारण कि रास्ते में चोर डाकुओं का भय लगा रहता था.गंतव्य तक पहुचने में कई कई दिन लग जाते थे.विश्राम के लिए सराय में शरण लेते थे.ऐसी ही एक घटना का यहाँ पर वर्णन कर रहा हूँ.यात्रियों का एक दल कहीं के लिए निकला था.उसमें युवा ,बच्चे ,महिला तथा वृद्ध सभी सम्मिलित थे

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23 अप्रैल 2015
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रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीददासजी ने लिखा है- "नहि कोउ अस जन्मा जग माहि,प्रभुता पाई जाहि मद नाहि". अहंकार मानव का सबसे बड़ा शत्रु है.किसी को धन का अहंकार,किसी को पद का अहंकार,किसी को बल का

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3 मई 2015
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आभार एवं शुभानुशंसा

4 मई 2015
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शब्द नगरी संगठन को उसके सराहनीय कार्य के लिए बहुत बहुत बधाई एवं ढेर सारी शुभ कामनाएं .हम संगठन से जुड़े लोगों के प्रति आभार प्रकट करते हैं व अनुशंसा करते हैं.ईश्वर हिंदी के उत्थान में लगे इस संगठन को अहर्निश उन्नति प्रदान करें. "निज भाषा उन्नति अहै,सब उन्नति को मू

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कितने पुत्र हैं

5 मई 2015
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हमारे समाज में बल्कि संसार के हर समाज में पुत्रों को बहुत महत्त्व दिया जाता है.पुत्र की कामना में लोग न जाने क्या क्या करते हैं.पुत्र लायक हो या नालायक हो,उसे पुत्रियों पर सदा ही वरीयता दी जाती है.कहा तो यहाँ तक जाता है कि जिसके पुत्र न हों उन्हें मुक्ति नहीं मिलती.यद्यपि पुत्रियां हर क्षेत्र

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माँ

10 मई 2015
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माँ एक ऐसा शब्द है जिसके बराबर पूरे ब्रह्माण्ड में कोई शब्द नहीं है.जन्म लेने के बाद बच्चा जो पहला शब्द बोलता है वह माँ ही है.माँ एक गुरु भी है,जो बच्चे के एकदम नए मन को अपने ज्ञान ,अनुभव से गढती है और उसे भविष्य का मानव बनाने का प्रयास करती है.माँ बच्चे के जन्म में पूरे नौ महीने का समय जिस

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बोझ उतार दो

29 मई 2015
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जीवन में सुख और दुःख आते रहते हैं.विना इन दोनों के जीवन में नीरसता आ जाती है.जब तक हम इन दोनों का अनुभव नहीं कर लेते ,उनके मूल्य को नहीं समझ सकते.प्रायः सुख का समय अधिक होने के कारण और सम्बन्धियों तथा मित्रो के समीप रहने के कारण वह समय सरलता से निकल जाता है और हमें पता नहीं चलता​.दुःख का समय य

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भगवान आखिर रहते कहाँ हैं

3 जून 2015
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हम सब किसी न किसी धर्म को मानते हैं और हर धर्म की एक अलग मान्यता है,पर इस बात पर सब एक मत हैं कि ईश्वर एक है और वह हमसब के अंदर रहता है.हम उसे मंदिर ,मस्जिद ,चर्च,गुरुद्वारा या किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल पर खोजते हैं.धर्म के नाम पर इंसान इंसान से लड़ाई झगड़े भी करता रहता है.पर क्या हमने कभी सो

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जिम्मा तो परमात्मा ने लिया है

18 जून 2015
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हम सांसारिक लोग दिन रात भौतिक सुख सुविधाओं के लिए भागम भाग करते रहते हैं.किसी को भी संतोष नहीं है.संचय करने की कोई सीमा नहीं है.वश चले तो हम सारे संसार के लोगों के धन पदार्थ अपने पास रख लें.पर यह संसार हमसे नहीं चलता .इसको चलाने वाला बहुत अच्छी तरह जानता है कि किसको क्या आवश्यकता है,उसी आधार प

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