हम सांसारिक लोग दिन रात भौतिक सुख सुविधाओं के लिए भागम भाग करते रहते हैं.किसी को भी संतोष नहीं है.संचय करने की कोई सीमा नहीं है.वश चले तो हम सारे संसार के लोगों के धन पदार्थ अपने पास रख लें.पर यह संसार हमसे नहीं चलता .इसको चलाने वाला बहुत अच्छी तरह जानता है कि किसको क्या आवश्यकता है,उसी आधार पर सबको उसका भाग मिलता है.प्रारब्ध में जो कुछ है ,वह तो मिलेगा ही .फिर क्यों किसी का अहित करना.किसी की वस्तु की कामना करना.
एक व्यक्ति एक मालिक के यहाँ काम करता था.पूरे मनोयोग से वह अपने काम को करता था.कभी भी शिकायत का अवसर नहीं देता था.अवकाश तो वह कभी लेता ही नहीं था.एक दिन वह काम पर नहीं आया.उसके मालिक ने सोचा कि हो सकता है उसे आर्थिक तंगी हो इसलिए मन लगा कर काम नहीं कर पाता हो.मालिक ने उसका वेतन बढ़ा दिया.जब उस व्यक्ति को अतिरिक्त मेहनताना मिला तो उसने कुछ नहीं कहा.,चुपचाप रख लिया.कुछ महीनो के बाद वह फिर काम पर नहीं आया.मालिक को बहुत क्रोध आया.उसने सोचा कि वेतन बढाने से कोई लाभ नहीं हुआ.उसने मेहनताना कम कर दिया.इस बार भी वह व्यक्ति कुछ नहीं बोला.चुपचाप पैसा रख लिया.मालिक को बड़ा आश्चर्य हुआ.उसने उससे पूछा कि मैंने जब तुम्हारा वेतन बढ़ाया तब भी तुम कुछ नहीं बोले.वेतन जब कम कर दिया तब भी कुछ नहीं बोले.आखिर कारण क्या है.
उस व्यक्ति ने उत्तर दिया ,जब पहली बार मैं अनुपस्थित हुआ था तब हमारे घर में एक बच्चे का जन्म हुआ था.जब आपने वेतन बढ़ा दिया तो मैंने सोचा कि परमात्मा ने उस बच्चे के हिस्से का अनुदान भेज दिया है.दूसरी बार जब मैं अनुपस्थित हुआ तो मेरी माँ का देहांत हो गया था.आपने मेरा वेतन कम कर दिया तो मैंने सोचा कि माँ अपने हिस्से का खर्च अपने साथ ले गयी.मैं इस वेतन के लिए क्यों परेशान होऊं जिसका जिम्मा स्वयं परमात्मा ने लिया है.