नदी, पर्वत ,वन,और अन्नपूर्णा धरती से भारतीय साहित्य का घर सम्बन्ध रहा है क्योकिउसने प्रकृति से अपनी सहधेर्मिता और सहअस्तित्त्व को पहचाना है ! भारत की पहली कविता ही पशु-पक्षी के विरुद्ध जन्मिति !कवियों ने प्रकृति की हलकी से हलकी धड़कन और स्पंदन को महसूस किया है ! आदि कवि वाल्मीकि जानते है की कड़कड़ाती ठण्ड में जलचर हंस, कैसे सम्हालकर ,दरकार ठन्डे पानी में पैर डालते है 'कालिदास को पता है की अनुकूल मंद -मंद पवन यात्रा का शुभ शकुन है ! "पद्माकर' मन में बसंत का बरगना महसूस करते है "पंत" बल -पक्षिणी से सवाल करते है किश्त में ,ढोसले में बंद ,अंदर में तुमनेकैसे जान लिया की सूर्य की पहली किरण अंतरिक्ष में प्रवेश कर चुकी है? "शमशेर " सोचतेहै की यह पशु कैसे सोते होंगे /"प्रेमचंद ' के बैल अपनी व्यथा -करुणा हमारे कण में कह जाते है !"प्रसाद "की प्रकृति हमें अतिवाद के प्रति सावधान करती है !
रचनाकार तो मनुस्य की संवेदना का प्रतिक भी है और प्रहरी भी है
१लेकिन इलेक्ट्रानिक माध्यम में रचनाकार की उची गति लगभग शून्य हो गयी है १एलेच्त्रनिच माध्यम की पत्रकारिता में साहित्य संवेदना के लिए कोई स्थान ही नहीं रह गया है !साहित्य के प्रगति एक विरोध ,साहित्य विहीन पत्रकारिता के प्रति एक अद्भुत सम्मान जिस तरह से उभर रहा है,उससे निराशा होती है !यह किसी
शब्द में साहित्यिकता का संस्कार ध्वनित भी होता है, उसके भी तथाकथित पत्रकारिता की पहचान दी जाती है