देश के समक्ष तथा विश्व मानव के समक्ष जो समस्सयाएं है उनके समाधान के लिए एक दृस्टि इस माध्यम द्वारा मिलनी हि चाहिए और यह कैसे संभव है ! यही इलेक्ट्रानिक माध्यम के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है !स्वतंत्र अभिव्यक्ति जिसमे विचारो के प्रवाह में कोई ठराव न आता हो इस तरह का सहस इलेक्ट्रानिक मीडिया को बटोरना ही होगा !स्वतंत्रता के पश्चात १९५० में जब देश का लोकतान्त्रिक संविधान बना तो विशव, देश के समक्ष तथा विश्व मानव के समक्ष जो समस्सयाएं है उनके समाधान के लिए एक दृस्टि इस माध्यम द्वारा मिलनी हि चाहिए और यह कैसे संभव है ! यही इलेक्ट्रानिक माध्यम के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है !स्वतंत्र अभिव्यक्ति जिसमे विचारो के प्रवाह में कोई ठराव न आता हो इस तरह का सहस इलेक्ट्रानिक मीडिया को बटोरना ही होगा !स्वतंत्रता के पश्चात १९५० में जब देश का लोकतान्त्रिक संविधान बना तो विशव समुदाय ने भारत को एक वृहद लोकतंत्र के रूप में देखना प्रारम्ब किया ! देश की व्यवस्थापिका,कार्यपालिका, न्यायपालिका की देख रेख में एक आदर्श प्रणाली इस देश में विकसित हो यह सुनिश्चित करना इलेक्ट्रानिक ममाध्यम को निभानी चाहिए जो भूमिका स्वतंत्रता सेनानियों की भाटी प्रिंट मीडिया को भी यही उपदेश की आवश्यकता हो गयी है ,कक्योकि प्रिंट मीडिया भी अब मिशन से हैट गया है जो मिशन प्राप्त से पूर्व प्रिंट मीडिया की पहचान थी ! सस्वाधीनता प्राप्ति के बाद आज भी भारतीय संविधान के पृष्ठों पर आदर्श लोकतंत्र की छबि विद्यमान है पर स्वार्थो की पराकाष्ठा ने इस लोकतंत्र को अब चंचल बना डाला है ,इससे लोकतंत्र की जेड खोखली हो गयी है ! इस देश की धर्म निरपेक्ष छबि भी ऐसी देश के लिए अब अधिक