स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व प्रत्येक पत्रकार जो मीडिया से जुड़ते थे , शब्दों के शिल्पी थे ! एक शब्द का प्रयोग वे बहुत सोच -विचार तथा पूर्ण सावधानी से करते थे !
उनकी वाणी में लेखन में,हार्दिकता एवं संवेदनशीलता पूर्णतः एकाकार रहती थी !आज पत्रकार चाहे इलेक्ट्रानिक माधयम से जुड़ा हो या प्रिंट माध्यम से ,उसके भीतर शब्दों को प्रयोग में लेन का वह संस्कार है ही नहीं! भाषा भले ही प्रभावकारी हो , तथ्य भी सम्मोहक ढंग से उजागर कर दिए हो , पैर उद्देशय परक निष्ठा का सर्वथा आभाव ही रहता है !