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पेट में ऐसी आग लगी है, आंखों की नींद भाग गई है। ये भोर की पौ फटती नहीं ये रात भी अब कटती नहीं। समय की गति रुक गई है, आंत हमारी सुख गई है। कोई तो पानी का प्याला दे दे, रूखा सूखा ही निवाला दे दे