कोई शहर, तो कोई घर बेच देता है ।
कोई मयखाने मे जाकर अपनी इमान बेच देता है ।
जरा नजरे उठा कर तो देखो,
कोई इनके मुह के रोटी बेच देता है ।
खरे है बरे इमारत इन रंगीन मुहल्लों मे,
कोई आकर इनके नसीब बेच देता है ।
कोई कफन, तो कोई शमशान बेच देता है ।
कोई मंदीर जाकर भगवान बेच देता है ।
देश ऑर माँ मे कोई फर्क नहीं है,
है कुछ लोग जो अपनी तिजोरी के खातिर देश बेच देता है ।
--RAJIV RANJAN SINGH
09-03-2014, 10:10PM
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