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क़तर कर पड़ हम पंछी के....

15 जून 2015

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featured imageयह मेरी बहुत सुन्दर कविता है जिसे लिखते हुए मै रो परा था.. ​क़तर कर पड़ हम पंछी का अपना पेट क्यू है भरते... कहते है ! हम सभ्य लोग है फिर पुरानी सभ्यताओ से क्यू है डरते... यह जमी है सबकी, इस पर हस कर हम-तुम जी लेते | थोरा पानी तुम पी लेते.. थोरा पानी हम भी पी लेते.... नाव चलाते सागर में तुम, थोरा गगन को हम भी चूम लेते.. क़तर दिय जब पड़ हमारा, बोलो हम कैसे उड़ पाते.. ​क़तर कर पड़ हम पंछी का अपना पेट क्यू है भरते... होती सिर्फ तकलीफ हमको, तो सारा पर दे देते.. मेरे भी है गुलज़ार बगियाँ, जहाँ मेरे बच्चे है रोते.. यही नहीं इन बगिया में, मेरे बुढ़ा माँ-बाप भी है सोते.. अगर इसी तरह रहा जीने के अरमानो में, फिर धुन्धते रहना चिड़िया घर के दीवारों में.. कास मै कह पाता अपनों को.... अब यह सदी नहीं है शिदार्थ के बिचारो का ... --- राजीव रंजन सिंह 8936004660 rajivranjansingh2020@gmail.com मै पटना रेलवे स्टेशन में बैठा हुआ था तभी एक ट्रेन आई और सारे सवारी उतर गए, तभी पंछियों के कई समूह ट्रेन के डब्बा में प्रवेश कर गए, और तभी सफाई करने वाले सफाई कर्मचारी सारे पंछियों को पिट-पिट के मारना चालू कर दिया, मैंने तुरंत उठा और एक पुलिस कर्मचारी को सिकायत किया तो उसने “ डेली का है “ बोल कर टाल दिया, कितने पुलिस से सिकायत किया लेकिन सारे ने कोई ना कोई बहाना बनाया... पटरी पार कर उस बोगी में जाने का सोचा तभी एक और ट्रेन आ गई फिर मै नहीं जा पाया... और वो ट्रेन यार्ड में चली गई ​ भावार्थ:- इस कविता में एक असहाय पंछी जिसका पर (पंख) तो कटा हुआ है लेकिन अपनी दुखद बात बता रही है.. आप हमारे पर(पंख) काट कर अपना पेट भरते हो, कहते हो की हम सभ्य (मनुष्य यानी सारे पृथ्वी पे समझदार) है, तो आप अपनी सभ्यता यानी पूर्वजो को कैसे भूल गय, भगवान ने तो जमी सबके लिय बनाया है, कितना अच्छा होता हम सब आस-पास होते ना किसी से डर ना किसी से भय होती जब अपनी बाहे फ़ैलाने का मन करता तो तुम भी सागर में उतर जाते और हम भी आसमान में पंख फैलाते, पंख कटाने से कितने पंछियों के घर उजरते है क्या आपने कभी सोचा है... इन पंक्ति पे ध्यान दे- मेरे भी है गुलज़ार बगियाँ जहाँ मेरे बच्चे है रोते यही नहीं इन बगिया में मेरे बुढ़ा माँ-बाप भी है सोते अगर मेरे पर से आपको भोजन मिल जाता है तो मै देदेता लेकिन सिर्फ एक हमारे पंख कटने से कितनी जान जाती है इक हमारे बच्चे यह आश लगाये रहते है की मै उनके लिय कुछ खाने को लेकर आऊंगा और तरप-तरप के भूखे मर जाते है, फिर क्या जिनकी हडियो में अब कोई दम ना रहा हो और उसका भोजन लाकर देने वाला भी ना आये तो क्या होगा ये तो आप सोच ही सकते है और अंत में पंछी कहता है की मै भी तो इस जमी की खुबसुरती को बढ़ता था अगर इसी तरह हमे मरोगे तो वो भी दिन दूर नहीं है जब हम सिर्फ चिड़िया घर के दीवारों में दिखेंगे और आप हमे आशमानो में उड़ते उए नहीं देख पाएंगे,एसे मै क्या कहू आज इस जमी पर पहले जैसी कोई खुबसुरती नहीं है "इस लिय आप से अनुरोध है कृपया ऐसा ना करे और ना ही ऐसा करने दे" (धन्यवाद)

राजीव रंजन सिंह -राजपूत- की अन्य किताबें

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

दिल से निकलकर कागज पर उतरी बहुत अच्छी पहल राजीव जी...बहुत बहुत शुभकामनाएँ,...इसी तरह लिखते रहो |

11 जुलाई 2017

aradhana

aradhana

बहुत खूब .............कुछ लोग इस दुनिया मे रो कर भी हँसते है ,औरो को अर्पित जो सेवा भी वही करते है

16 जून 2015

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पुजा करू कहाँ

15 मई 2015
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पुजा करू कहाँ । सब भगवान ढूंढते है ॥ जब आती है मुस्किल तो, अपनी पहेचान ढूंढते है । ये गज़ब का है आदमी । मर जाए तो उनके परिवार ढूंढते है ॥ क्या बुढ़ापा क्या जवानी । बचपन की बात ढूंढते है ॥ जिंदगी रुक जाये तो, सब इन्साफ ढूंढते है । पुजा करू कहाँ । सब भगवान ढूंढते है ॥ लूट जाते है सब यहाँ ।

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सब बिकता हैं ।

18 मई 2015
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कोई शहर, तो कोई घर बेच देता है । कोई मयखाने मे जाकर अपनी इमान बेच देता है । जरा नजरे उठा कर तो देखो, कोई इनके मुह के रोटी बेच देता है । खरे है बरे इमारत इन रंगीन मुहल्लों मे, कोई आकर इनके नसीब बेच देता है । कोई कफन, तो कोई शमशान बेच देता है । कोई मंदीर जाकर भगवान बेच देता है । देश ऑर माँ मे

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हार

25 मई 2015
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कभी अपनो से हार जाते है, कभी सपनो से हार जाते है... ऐसा नहीं की मै कमजोर हु, जो हर किसी से हार जाता हु... अक्शर सपने ढूंढते है गली-गली, ठोकर मिलती है हर घड़ी... अब चाहत पे ना कोई बसेरा होगा... मोहब्बत नाम है सिर्फ उमीदो का, अब जाम लेकर ढूंढता हु कभी-कभी... थोड़ा जाम आँखों से भी छलक आता है

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फिर क्यू रुलाकर चले गय....

26 मई 2015
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जब मेरी हालत बुरी थी वो सताते चले गय, कह कर आय थे हम अपने है, फिर क्यू रुलाकर चले गय.... एक जख्म तो भरा नहीं था जिंदगी का, फिर पैरो तले कांच उछाल कर चले गय कह कर आय थे हम अपने है, फिर क्यू रुलाकर चले गय.... जब भी मेरे मजार पे जलेंगे दीपक आपको फिर से आना होगा, मिटने मेरी सूरत... अगर तुझे ख़

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एक दीवार

29 मई 2015
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एक दीवार क्या खरी हो गई, सारे रिस्ते मिटा दिए । बंद कर अपने घर को, सारे दीपक बुझा दिए । जो था बचपन मे अपना कभी, आज दिल बांट कर अफशाना सुना दिए । ना परे कदम उनका, राहों मे कांटे बिछा दिए । ना मिल जाये नजर कभी, यारो घरो मे पर्दा लगा दिए । एक दीवार क्या खरी हो गई, सारे रिस्ते मिटा दिए । क

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हिंदुस्तान की सल्तनत

6 जून 2015
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संगमरमर की ये लाल दिवारे हिंदुस्तान की सल्तनत की याद दिलाती है। सूरज की पहली लाली लाल किला पे आ जाता है दहारते है भारत के लाल यहाँ से यह भारत का भाग्य बतलाता है। संगमरमर की ये लाल दिवारे हिंदुस्तान की सल्तनत की याद दिलाती है। धर्म की आँख मिचौली मे लहू के छीटे आ जाते है। गरीबो पे होती राज

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मेरी आहट

10 जून 2015
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मेरी आहट मेरी आहट को सुनो, मेरी धरकनों को सुनो । क्या कहता है दिल, इसके आवाजों को सुनो । क्या साज है इस दुनियाँ की, हर आलम को सुनो । मत पूछ की कहा खो गये है हम, मुझे समझो ऑर मेरी आवाजों को सुनो । बहुत बुरा है जमाना, जमाने को सुनो । किस तरह तरप्ती है इसके आहट, दर्द भरी आहट को सुनो । म

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हाँ हमे अब सवरना है

12 जून 2015
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हमे प्यार के लिये सवरना है… बंद आंखों के ख्वाबो मे उलझना है। हमे प्यार के लिये सवरना है.... चोट खाकर मुशकुराते है हम बंद होठो से गुनगुनाते है हम वो जख्म देकर हमे हसाते है उनकी यादों से सजा पाते है हम हमे प्यार के लिये सवरना है...... मख़मली बाहों का हार मिले कोरे कागज पे लिखा जिंदगी के नाम म

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हिन्द की जयकार

13 जून 2015
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हिन्द की जयकारों मे, रशभरा अनोखा है। चरो ओर गूंज उठी है, यह धरती का शोला है। पथ तुम्हारा अंजानी सी है, छोड़ो करना अब दुहाई । वरसे कैसी भी अंगारे हुमे उसे बुझानि है। हिन्द की जयकारों मे, रशभरा अनोखा है। त्रस्त हुआ है ये जो दामन, चिर-प्यास बुझाना है। आज उठे हिन्द की अशि, यह कीर्ति जगाना ह

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क़तर कर पड़ हम पंछी के....

15 जून 2015
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यह मेरी बहुत सुन्दर कविता है जिसे लिखते हुए मै रो परा था.. ​क़तर कर पड़ हम पंछी का अपना पेट क्यू है भरते... कहते है ! हम सभ्य लोग है फिर पुरानी सभ्यताओ से क्यू है डरते... यह जमी है सबकी, इस पर हस कर हम-तुम जी लेते | थोरा पानी तुम पी लेते.. थोरा पानी हम भी पी लेते.... नाव चलाते सागर में तुम,

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““”””” भारत के लाल ””””””

12 जुलाई 2015
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भारत के लाल हो तुम यह बात बताने आया हु... आजादी की जुनून चढ़ी, गगन में तिरंगा लहराया था.. भगत सिंह ने फांसी चदकर,, भारत के शक्ति को दरसाये थे.. 80 के थे वीर कुवर सिंह, अंग्रेजो को छक्के छुराये थे.. लक्ष्मी बाई, वीर शिवा जी की,, येसे अनेको अमर गाथा है.. कैसे मर मिटे सरहदों पे,, उनकी बखान सु

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आग सिने की...

17 जुलाई 2015
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गज़ब की आग दहक रहा है.. अपने भी सिने में.... बच के रहना ये पाक बच्चे भी यहाँ जश्न मानते.. बारुद के शोला से.... और कही तुम मिट ना जाना.. दुनियाँ के तस्वीरों से.... गज़ब की आग दहक रहा है.. अपने भी सिने में.... यह सोच कर बक्श देता हु तुझे.. तू भी टुकरा है अपने आंगन का.... छोड़ दो अपना नापाक इरा

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भारत विश्व शक्ति के नया चेहरा...

18 जुलाई 2015
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तू नाज ना कर अपने हुकूमत पे.. हम विश्व शक्ति का नया तस्वीर बनाने वाले है.. काश्मीर है मेरा, तेरा भ्रम भी हम तोरेंगे.. चीर कर सीना तेरा, खुदा के घर भेजेंगे.. थामा है दामन जिसका.. वो खुद हम से घबराया है…. बच के रहना ये पाकिस्तान.. हम विश्व शक्ति का नया इतिहास बनाने वाले है…. हम उखार देंगे तेर

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जब भारत भूमि के पुत्र कहलाता हु....

26 जुलाई 2015
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जब भारत भूमि के पुत्र कहलाता हु.. सच कहता हु खुद में यह स्वाभिमान जगाता हु.... चूम लेता हु इस तिरंगे को.. मिट्टी के तिलक लगता हु.... जब भारत भूमि के पुत्र कहलाता हु.. सच कहता हु खुद में यह स्वाभिमान जगाता हु.... सोचता हु काम आजाऊ इस जमी के.. क्या हुआ जो गगन के एक तारा टूट गया.... क्या हुआ जो

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बिहार बंदी में पटना.....

27 जुलाई 2015
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मैंने पटना के बहुत से जगहों के बारे में बता रहा हु “ आज लालटेन बुझाय गए, और टायर जलाये गए.. गलियो और चौराहों में.. “मेरी मांगे पूरी करो” के नारा लगाये गए.... ना जात दिखा ना दिखा धर्म, ये अच्छी बात है.. लोग तो आय थे भारो पे, ये सच्ची बात है.. ******************************* मै कुछ लोगो से

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दर्द-दिल

19 मार्च 2016
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जीवन में  कुछ पायी नहीं ना ही जीवन से  कुछ छुपाई मैंने दिल को ठुकरा के चली गयी कोई फिर भी नहीं किसी को बताई मैंनेउसने मुझसे प्यार किया नहीं फिर भी उसकी वादा निभाई मैंने 

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दीवाना-दिल

19 मार्च 2016
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कुछ पाने के लिए कुछ खोना परता है किसी को भुलाने के लिए रोना परता है लेकिन कुछ खो के भी कुछ मिलता नहीं इस जहाँ में हर किसी को यहाँ ठुकराना परता है                                                     RaJu_RoY

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मै झाँसी वाली रानी हु......

20 अप्रैल 2016
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मत भूलना मुझको मै झाँसी वाली रानी हु......कंचन सजे ना मेरे कानो मे, ना हार गले मे सजाई थी,, लेकर हांथों मे तलवार ,फिरंगी को दौड़ाई थी ,,भारत ही नहीं पूरा ब्रिटेन तक लक्ष्मी के नाम आई थी ॥ मत भूलना मुझको मै झाँसी वाली रानी हु....... पुछ रही हु साधना तेरी,क्या हर आँगन मे लक्ष्मी के नाम आई है? कब तक तु

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