।।बुझ गए सब दिए।।- (द्वारा-:©कुमार मनीष)-- (8418056591)--- बुझ गए सब दिए ,--- निराश चहरे हो गए;--- आस में जब उठे,--- कदमों पे पहरे हो गए।--- बुझ गए सब दिए,--- निराश चहरे हो गए।--- रात है गहरी घनी कि,--- धीरे बहता रक्त है।--- हर दिशा चुप सी बैठी,--- और ठहरा वक्त है।--- वक्त के जो पल गुजरते,--- दोहरे-तिहरे हो गए।--- बुझ गए सब दिए,--- निराश चहरे हो गए;--- आस में जब उठे,--- कदमों पे पहरे हो गए।--- प्यास है कि बड़ रही पर,--- पास है खारा समुन्दर ।--- पी न पाऊं-जी न पाऊं,--- देखता सारा समुन्दर ।--- और समुन्दर की तरह ही,--- जख़्म गहरे हो गए।--- बुझ गए सब दिए,--- निराश चहरे हो गए;--- आस में जब उठे,--- कदमों पे पहरे हो गए।--- (8418056591)-- (द्वारा-:©कुमार मनीष)