चिड़ियों से मैं बाज लड़ावा
गीदड़ों को मैं सिंह बनावा
सवा लाख से एक लड़ाऊं
तबहुँ गोविंद सिंह नाम कबहुं
पर्वत जिसके पाव पखाड़े
अंधकार भय खाता हो
जिसकी चलती कृपाण कृपा करती है
रण भूमि जय जय करती है
छोड़ के आनंद पुर साहिब जो
चमकौर गाँव मे आ बैठे है
कोई और नही वो स्वयं भूपति
भारत माँ के गोविंद बेटे है
मैं दृश्य बनाता प्रलयकारी
कथा सुनाता भयकारी
कथा रक्त वर्षा की है
चंडी रूप सिरसा की है
कथा युद्ध मे काल की
चमकौर के महाकाल की
कथा पुत्र बलिदान की
माँ भारत के सम्मान की
युद्ध भूमि अब सज्जित हो गई
अत्याचार से लज्जित हो गई
बजीर खां के दुष्कर्मो से
भारत भूमि खंडित हो गई
भारत माता की सुन पुकार
चमक उठी पंथी कृपाण
वजीर खां के समक्ष जभी
गुरु गोविंद सिंह सी आते है
बजीर खां के जुड़ते कर
सर अपने आप झुक जाते है
एक तरफ सेना चालीस के
दस दस लाख खड़े हुए
सवा लाख से एक लड़ेगा
सिंह इसी बात पर अड़े हुए
एक तरफ घमंड प्रपंची
कांटो के जाल बिछाता है
समर भूमि अधरों से चूमकर
सिंह मन ही मन मुस्काता है
एक तरफ धरती माता को
जंजीरो ने जकड़ा है
सिंह स्वतन्त्रता पाने हेतु
हाथ हथौड़ा पकड़ा है
बाजीरखं ने हट पकड़ ली
की मेरी शान निराली है
गोविंद निकल तू छिपा कहा पर
मेरी कटक रक्त की प्यासी है
सिख चालीस दो साहिबजादे
और पिता दशमेश रहें
बाहर किले के बाजीरखां के
दस लाख कुत्ते भौक रहे
कूद जाने को रणभूमि में
रणधीरों ने रणनीति का विस्तार किया
पांच पांच की टोली होगी
विजय समर की बोली होगी
सवा लाख से एक लड़ना
काल बनकर तांडव करना
सीने में आग लगा देना
ज्वाला को भड़का देना
पांच पांच की टोली ले
युद्धभूमि में धीर जाते थे
मुग़लो के सर पर तांडव कर
मृत्युं से भेंट कराते थे
पुत्र प्रेम का मोह नही था
पुत्रो को भी रण में भेजा
उठा अजित अपना भाल तू
जा विजयी अखंड मेरे बेटा
रण में तुझको जाना होगा
माता का कर्ज चुकाना है
सर काट देना शत्रु का
या बलिदान स्वयं हो जाना तुम
सीना चौड़ा कर लड़ते जाना
कदमो को नही हटाना तुम
पांच पांच का जत्था जाता
रणभूमि में युद्ध करने को
भय हृदय मुग़लो का खाता
युद्ध भूमि युद्ध करने को
रफ्तार प्रकाश की क्या होगी
जो तीरो की रफ्ताए थी
गोविंद से लोहा लेले कोई
क्या ही उनकी औकात थी
नही पकड़ सकते गोविंद को
गोविंद गरज गरज कर बोला
मुग़ल सल्तनत का सिंघासन
कंपित हो डगमग डोला
गोविंद तो हाथ नही आये
चमकौर समर में विजय मिली
पर फतेह सिंह और जोरावर को
बंधी कर जोर दिखाते है
नन्हे नन्हे बच्चो से ज़बरन
इस्लाम कबूल कराते है
भयदर्शन देकर कह देते
इस्लाम कबूल तो हाँ बोलो
पर वीर कभी न झुक सकते
सागर में बांध कब रुक सकते
चाहे प्राण हमारे लो
धर से मस्तक छिन्न करदो
दीवार में जिंदा चिनवा दो
इस्लाम कबूल हो कभी नहीं
देख शौर्य बच्चो की की सभा
सन्न रही चुप चाप खड़ी
कलियों को ईंटो से ढककर
गलती कर दी है बहुत बड़ी
झुके नही मस्तक ऊचां
बात एक ही आती है
बकरी भेड़ के झुंड कभी
शेरो से उलझा करते है
लाख लडालो एक लड़ेगा
हटे नहीं हम मरते है
जो बोले सो निहाल
सत श्री अकाल
जो बोले सो निहाल
सत श्री अकाल