है मेघ बरसने वाले
अब थोड़ा विश्राम करो
रौद्र रूप प्रलेयांकरकारी
पुलकित हो आराम करो
है धरा को जल से भरने वाले
कैसी प्रलय दिखा डाली
कर्ण कर्ण को पत्थर को तुमने
जल में मग्न करा डाली
उच्च निकेतन टिके रह गए
बस्ती धनहीन की डूबी
धन से हीन को हानि देकर
तुमको ईश्वर क्या सूजी
है वरुण इंद्र मेघो के राजा
मैं प्रश्न उठाने आया हूँ
विन मौसम की वर्षातो का
मैं क्षति दिखाने आया हूँ
कृषक श्रमिकों का भी तुमने
ध्यान जरा सा धरा नहीं
'थमों मेघ' इनकी विनती
के शब्दों को पूर्ण करा नहीं
जहाँ रह गई भूमि सुखी
वहाँ पर दया दिखा देते
रूप प्रलयंकर धरने वाले
अभ्युदय रूप दिखा देते
दया करो सागर की बूंदे
झर झर कब तक बरसोंगी
अब भीग रहा है सारा जीवन
क्या चैतन्य भी गीला कर दोगी
है मेघ बरसने वाले
अब थोड़ा विश्राम करो
रौद्र रूप प्रलेयांकरकारी
पुलकित हो आराम करो
......पारस