प्रसिद्ध घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन जी अपने 'हिमालय- परिचय (१) गढ़वाल ' में लिखते हैं -"हिमालय किसको अपनी ओर आकृष्ट नहीं करता? मेरा तो उसके प्रति आकर्षण १९१० ई० से ही हुआ, और पिछले तैंताळीस वर्षों में उसके साथ इतना घनिष्ठ संबंध हुआ, कि "स्वान्त सुखाय" भी मुझे लेखनी चलाने की जरूरत महसूस होने लगी। लिखने का मतलब ही है, और अधिक परिचय प्राप्त करना। " इसलिए मुझे भी इस तीन दिवसीय हिमालय यात्रा पर कुछ संक्षिप्त लिखने का मन हुआ।हालांकि इस यात्रा पर काफी समय पूर्व से ही चर्चाएँ हुई थी परन्तु उन चर्चाओं को अंजाम देने तक भी काफी समय लगा।
इस यात्रा के लिए ०५ अक्टूबर को ही मैंने वाट्सएप ग्रुप में एक पत्रनुमा संदेश प्रेषित किया था -
प्रिय,
@अनुराग @अपना यार @नवदीप @भूपी भैजी @विवेक भाई
पैदल पथ यात्री चौमासी-केदारनाथ पैदल यात्रा के लिए इस आशय से सभी पूर्ण आश्वस्त हो जाएं ताकि आवश्यक तैयारियाँ पूर्ण की जा सके।पैदल यात्रीगण आज सांय तक पूर्ण तैयारियाँ सुनिश्चित कर लें क्योंकि ऊखीमठ से चौमासी तक कल यानि ०६/१०/२०२१ को भी रवाना हो सकते हैं।उक्त मार्ग पर निश्चित समय में ही वाहन आवागमन सूत्रों से पता चला है। व्यक्तिगत सामान के लिए स्वयं व्यवस्था करें और खाद्य एंव रहन-सहन की व्यवस्था हेतु ग्रुप में दिन २:०० बजे बाद चर्चाएँ शुरू हो जाएँगी। करीबी मित्रों से ज्ञात हुआ है कि चौमासी से खाम बुग्याल तक आम रास्ता है और उसके पश्चात दो वैकल्पिक मार्ग एक दूसरे से आम रास्ते पर प्रतिच्छेद करते हुए कटते हैं।मुझे प्रतीत होता है कि हमें गाइड की आवश्यकता नहीं है मार्ग की आवश्यक अथवा पूर्ण पुनः खोज मैंने व्यक्तिगत स्तर पर की है । इस सम्बन्ध में चौमासी के स्थानीय लोगों से सूक्ष्म जानकारियाँ एकत्रित यथास्थान पर की जाएगी । वापसी के लिए गौरीकुंड से ऊखीमठ के लिए @नवदीप द्वारा वाहन की व्यवस्था सुनिश्चित हुई है। यह पैदल यात्रा लगभग 3-4 दिन तक ऊखीमठ से ऊखीमठ तक है।
आगे फिर सूचित करता रहूँगा।
नोट: कोई सुझाव, समस्या और शिकायत के लिए मैसेज करें।
सादर
अभिषेक 'गौण्डारी'
उपर्युक्त संदेश से पहले भी कई मौखिक चर्चाएँ हुई थी। केदारनाथ जाने का वैकल्पिक और एक परम्परागत मार्ग कालीमठ घाटी के सुदूरवर्ती गाँव चौमासी- निवतर से है।यह मार्ग चौमासी-निवतर से शुरू होकर खाम बुग्याल तक जाता है और उसके पश्चात् यहाँ से इस मुख्य मार्ग पर तीन उपमार्ग कटते हैं।पहला मार्ग चौमासी- रामबाड़ा तक जाता है।यह मार्ग अधिकांश रूप से खडिंजा निर्मित है जो कि खाम बुग्याल से बायीं तरफ की ओर पर्यटकों अथवा स्थानीय लोगों को राम बाड़ा पहुँचाता है। जिस स्थान पर यह मार्ग राम बाड़ा के लिए जाता है उससे कुछ दूर बल्दजौत्या नामक स्थान है। बल्दजौत्या से दो उपमार्ग इस मुख्य मार्ग पर एक बायीं ओर और दूसरा खामनदी को पार करके जाता है।बायीं ओर सिर्फ एक काल्पनिक रास्ता है जो कि हथनी टाॅप तक जाता है। दायीं ओर का रास्ता मनणी बुग्याल के लिए जाता है।केदारनाथ जाने के लिए मैंने ही यह हिमालय का रास्ता चुना था। यात्रा शुरू करने से पहले मैंने ही इस यात्रा के पैदल मार्ग के बारे में होम वर्क किया था और आवश्यक जानकारियाँ इकट्ठी कर दी थी।
हालांकि इन दिनों यहाँ प्राकृतिक हरियाली अथवा सौंदर्य का मनोहारी रूप देखने को नहीं मिलता है परन्तु इसके अतिरिक्त हिमालय हर ऋतु हर मौसम में अपने अनेक रूपों का दर्शन देता रहता है। कभी हरा-भरा तो कभी नंगे पहाड़ फिर उनके ऊपर बर्फ। नाना प्रकार के परिदृश्य पर्यटकों को लुभाते हैं। प्रकृति सौंदर्यशास्त्र के अन्तर्गत आर्चिबाल्ड एलिसन के सिद्धांत निर्विवादित के तीन आयामों मे से 'उदात्त का विचार' से प्रकृति के भयानक पक्षों को समझाया जाता है परन्तु इसे डर या उपेक्षा के बजाय प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से सहारा जाता है।
अक्टूबर ०६,२०२१
ऊखीमठ- चौमासी
लगभग २:०० बजे जीप चौमासी गाँव पहुँची थी। कालीमठ घाटी का चौमासी गाँव समुद्र तल से लगभग 6562 ft. (2000m) की ऊँचाई पर स्थित है तथा इस गाँव की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार से है कि यह 30.612295 अक्षांश एंव 79.070064 देशान्तर के मध्य बसा है। गुप्तकाशी बाजार यहाँ का मुख्य बाजार है। यहाँ से चौमासी गाँव के लिए जीप की सेवाएं उपलब्ध रहती हैं। सड़क कहीं अच्छी है तो कहीं ऊबड़- खाबड़। चौमासी पहुँचते ही जीप की छत से पिठुओं को उतारा गया। करीब बीस मिनट के अन्तर्गत ही ऑल सेट हो गया था।इस बीच हमने चौमासी के किसी ग्रामीण से इस पैदल मार्ग के बारे में पूछताछ की थी। दो बजकर बीस मिनट पर सभी सदस्यों के पैरों ने आगे की ओर गमन शुरू कर दिया था। चौमासी गाँव से थोड़ी ही दूरी डेड मील पर निवतर है जहाँ अभी मोटर मार्ग का कार्य प्रगति पर था। निवतर में ज्यादा लोग नहीं रहते हैं यह भी चौमासी ग्राम पंचायत के अन्तर्गत आता है। कुछ सात से आठ पक्के मकान और कुछ पुराने मकान यहाँ पर थे। ट्रैक का रास्ता बीच गाँव से होकर जाता है। गाँव से रास्ता उतराई के साथ नीचे खाम से निकलने वाली नदी के किनारे तक जाता है और फिर यहाँ पर अस्थायी पुल को पार करके सुंदर खंडिजा निर्मित रास्ता आगे की ओर ले जाता है।लगभग दस से बाहर किलो औसत वजन के पिठुओं के साथ हम आगे की ओर बढ़ रहे थे। काफी धूप थी इसलिए पसीने से तर-तर साथियों ने पानी पीने के लिए कुछ समय का आराम माँगा।धीरे-धीरे आगे बढ़ते,चढ़ाई बढ़ती जाती। रास्ते में जगह-जगह पानी के प्राकृतिक स्रोत- झरने मन मोह देते हैं। झरने से गिरते पानी की हल्की बौछार शरीर को ऊर्जा से भर देती है।आगे एक सीढ़ीनुमा जीगजेग चढा़ई है और फिर आता है पयालू बुग्याल।
यह बुग्याल समुद्र तल से लगभग 7382.25ft.(2250m) की ऊँचाई पर स्थित है।इस बुग्याल के आस-पास बाँज और बुँराश का घना जङ्गल है।यहाँ पर भेड़ पालकों की छानी है। हिमालय से वापसी के दौरान यहाँ कुछ दिन उनका डेरा होता है। हम से आगे यहाँ चौमासी गाँव के लोग आये थे, जिनके साथ कुछ सात से आठ पर्यटक थे। हालांकि पर्यटक हमें रास्ते भर कहीं नहीं मिले थे परन्तु इन लोगों से वार्ता होने पर उन्होंने बताया कि वे अभी आये नहीं हैं, हमें आगे उनके लिए कैम्प लगाना है।यहाँ पर पिठुओं और पीठ को थोड़ा आराम दिया और इन लोगों के साथ गप्पे शुरू हो गयी। इसी चर्चा में हमने उन से इस रूट के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करनी चाही थी। इसी बीच इनमें एक महानुभाव थे, उम्र कुछ पैंतीस ऊपर चालीस नीचे प्रतीत होती थी।काफी मजाकिया किस्म के प्राणी थे। इनकी बातें सुनकर थकान फुर उड़ गयी।इसी मजाकिया तरीके से उन्होंने इस रूट के बारे में ऊपरी जानकारी दी और हमारी ऊर्जा को पुनर्जीवित कर दिया।उनके द्वारा बताया गया था कि हमें सिर्फ नदी के बांयी तरफ जाना है और उनका एक्शन और एक्सप्रेशन क्या लाजवाब था।वे बता रहे थे कि उन्हें रामबाड़ा निकलना है इसलिए वे आगे कुछ दूर तक ही हमारे साथी बने थे। पिठुओं को कसा और आगे चल दिए। समय की घड़ी काफी आगे बढ़ी थी - कुछ यूँ चार बजकर दस मिनट हो रहे थे।
पथ-प्रदर्शिका के अनुसार आज का रात्रि शिविर स्थल एक घंटे दूर था क्योंकि हमें पाँच बजे तक ही चलना था।चौमासी के एक युवक ने बताया था कि आज आप लोग द्यूली बुग्याल तक ही पहुँच पायेंगे। सब कुछ सही चल रहा था, सूर्य की किरणें क्षितिज पर थी। चालीस से पचास मिनट में हम द्यूली पहुँच गये। यह बुग्याल काफी ऊँची जगह पर स्थित है। समुद्र तल से कुछ यूँ ही 8858.7ft.(2700m)।इस बुग्याल से सिर्फ कालीमठ घाटी का दृश्य दूर अनंत तक दिखता प्रतीत होता है। शाम को दूर पहाड़ों के समांतर दिखता रक्ताभ और उसके नीचे कुछ धुँआ सा, यह दृश्य वाकई लाजवाब था।द्यूली बुग्याल में इन दिनों भेड़- बकरियाँ थी। तम्बू लगाने के लिए अच्छी जगह की तलाश शुरू हुई। इतने में इन भेड़- बकरियों के बाॅडीगार्ड मिलने आ गये - वे पालसियों के कुक्कुर थे। "क्या खाते हैं ये" - सभी ने एक स्वर में कहा। ये कुत्ते मनुष्य के लिए काफी फेमलियर होते हैं। पहले काला फिर सफेद और अंत में एक बड़ा सा भूरा कुत्ता वहाँ आया और अपने क्षेत्र की सुरक्षा के निर्देश देने लगा।
"अंधेरा हो जाएगा, जल्दी टेंट पिच करना है। दो लड़के पानी के लिए जाओ " - हमारे सिनियर भूपी भैजी घोषणा करते हैं। काफी अच्छी जगह पर शिविर लगने वाला था।इस बीच दो लोग -नवदीप और अनुराग, पानी लेने गये थे। पानी का पता नजदीक ही बुग्याल के कुछ दूर पर घने पेड़ों के बीच था। इतने में मैं और विवेक भाई, भूपी भैजी का साथ दे रहे थे।दस मिनट के अंदर ही द्यूली बुग्याल में हमारा लाल रंग युक्त कवर से बना तम्बू अपनी शोभा का गुणगान करने लगा। घर की आकृतिनुमा यह तम्बू पाँच लोगों के लिए पर्याप्त था। अंधेरा दस्तक देने लगा। दूसरे पर्यटकों के पोर्टर भी द्यूली पहुँच गये और उनका भी रात्रि विश्राम यहीं होने वाला था।अंधेरा होने से पहले-पहले मैं और विवेक भाई कुछ दूर तक लकड़ियों की तलाश के लिए गये थे क्योंकि ज्यों-ज्यों समय आगे बढ़ा त्यों-त्य़ों तापमान गिरा। इसलिए रात्रि को बोन फायर तो होना लाजमी था। दो चक्कर में लकड़ी का ढेर लग गया। ट्रैक के दौरान लाइट का विभाग मैंने अपने जिम्मे किया रहता है।प्रकाश की उपस्थिति अग्रणी और सर्वमान्य है।पिठू को पहले मैंने फिर और साथियों ने अनपैक करना शुरू कर दिया। लम्बी तार युक्त लाइट की रोड पिठू से निकाली गई और फिर तम्बू पर फिटिंग स्टार्ट। किचन के लिए हमने तम्बू के प्रवेश पर ही जगह बना दी थी, हवा की बाधा को हटाने के लिए इधर- उधर से रैनकोट सेट कर दिए। फिर बीच प्रवेश द्वार के ऊपर लगी लाइट। इससे पहले की लाइट पर बैटरी का संयोजन करते । दूर ऊखीमठ का रात्रि नजारा देखने लायक था। टिमटिमाती रोशनी जैसे आसमान वहाँ पर आकर चिपक गया हो।
द्यूली बुग्याल तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है और एक तरफ दूर अनंत तक घाटी दिखती है। फिर एक सुंदर शाम को अंजाम देने की कवायद शुरू कर दी गई।भूपी भैजी ने मुख्य रसोइये की सीट पकड़ ली।ढाई से तीन घंटे में 7-8 किमी ही तय हुआ।इतना काफी होता है पिठुओं के साथ।आज शाम चाय-पकोड़े के नाम।कुछ आधे एक घंटे तक चाय पकोड़े बने और इनका स्वाद लिया गया।रात्रि भोजन की तैयारियाँ भी साथ ही में शुरू हुई, खीचड़ी का प्रेशर स्टोव पर चढ़ाया गया।तब तक अनुराग और नवदीप ने बोन फायर के लिए लकड़ियों को तोड़कर व्यवस्थित कर दिया था। लकड़ियों के ऊपर थोड़ा डीजल की बौछार की गई और माचिस की एक जली तिली को इसके सुपुर्द किया गया।लेकिन आग नहीं जल पाई। काफी मसकत के पश्चात् एक बड़ा सा अंगीठा तैयार हुआ जिस पर धु-धु कर आग जल रही थी।प्रकृति के नजारे का यह रात्रि स्वरूप काफी समय तक निहारा गया। फिर खिचड़ी तैयार हुई।आधे घंटे में खिचड़ी भी सफाचट होने लगी तब तक वहाँ एक साथी पधार गये -एक बड़ा गद्दी बालों वाला कुता। फिर क्या? डीनर पर सरीक हो गए।
साढ़े नौ बजे तक आॅल सेट हो गया था। तम्बू के अंदर सभी ने दस्तक दे दी।कुछ देर आगे की गतिविधियों पर चर्चा हुई। लाइट का कंट्रोल मेरे पास था।बैट्री और लाइट की तार का डिसकन्क्शन हुआ-लाइट बंद, गुड नाईट।
अक्टूबर ०७,२०२१
द्यूली बुग्याल
07 अक्टूबर को नित्य के अनुसार सबेरे जल्दी उठकर अगले गंतव्य जाने की तैयारियाँ शुरू कर दी गई।
नौ बजे तक यहाँ से प्रस्थान करने का लक्ष्य रखा गया।धूप ने भी तय समय पर उपस्थिति दर्ज की।सुबह नास्ता करके 8:30 बजे तक सब तय समय में हुआ। आठ बजकर चालीस मिनट पर दल अगले गंतव्य की ओर रवाना हो गया था।बुग्याल छोड़कर अब घंने बाँज वृक्षों के बीच से रास्ता आगे की ओर बढ़ता और ऊँचाई बढ़ती जाती।घने जङ्गल के बीचों-बीच पेड़ों से सूर्य का प्रकाश प्रदीप्त हो रहा था। न अधिक धूप और न अधिक छांव। "मंजिल से अधिक सफर का आनंद" पंक्तियाँ याद आ गयी।ज्यों-ज्यों ऊपर चढ़ते हरे बुग्यालों की घास सफेद और पीले रङ्ग मिश्रित रङ्ग में दर्शन देने लगते।रास्ते भर पानी और ग्लूकोज के मिश्रण काफी मददगार साबित हुआ।
पौनें दो घंटे की मसकत के बाद हम छिपी बुग्याल पहुँच गये।छिपी बुग्याल समुद्र तल से 10,007.05 ft. (3050m) की ऊँचाई पर स्थित है। घने जङ्गल के बीचों- बीच यह बुग्याल सुंदरता का पर्याय है। कैम्पिंग की काफी अच्छी जगह प्रतीत होती है। यहाँ पर भेड़ पालकों की छानी भी है। साढ़े दस बजे थे। छिपी से सौ मी० दूर ही चले थे कि मेरा शरीर ऊर्जा के क्षय को महसूस कर मुझे संकेतित करने लगा। मेरे दोनों पैर एक ही जगह पर इधर- उधर करने लगे थे। एक और साथी ने भी ऐसी ही शिकायत दर्ज की।अभी काफी चलना था लेकिन शरीर की ऊर्जा में उत्तरोत्तर कमी होती जा रही थी। अनंत: एक झरने के पास शरीर ने हार मान ली।शरीर को ऊर्जाविन्त करने के लिए यही पर कुछ खाद्य बनाने की योजना बनी।सब झटपट सा हुआ। हमारे हाथों में मैगी की प्लेटें थी - खूब प्याज, टमाटर, हरी मिर्च और सूप से निर्मित।ग्लूकोज पानी ट्रैक के दौरान काफी हद तक आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है।पुनः सभी चीजें पैक हुई और आगे प्रस्थान।रास्ते भर बातें करते और इस घने जङ्गल के बीच चलती मंद-मंद सी हवा शरीर को स्पर्श करती हुई निकल जाती, पसीने से तर बदन पर जब इस हवा का घर्षण होता, यह सुखद अनुभूति थी ।
यहाँ से कुछ आगे दौ सौ मी० पर ऊपर की ओर जिगजेग सीढ़ीयाँ थी, जहाँ एक और समस्या का सामना करना पड़ा।दो ली० के डीजल की बोतल मेरे ही हाथों से रफुचक्कर हो गई, ढक्कन से लगी रस्सी टूटने के कारण बोतल काफी दूर तक इस घने जङ्गल में लुढ़कती रही और करीब डेढ़ सौ मी० नीचे जा गिरी। दल के दो सदस्य मेरे आगे और दो सदस्य पीछे से अग्रसर थे। पीछे के सदस्यों अनुराग और विवेक ने पिठुओं को उतार कर बोतल की ढूँढ खोज शुरू कर दी । मिनट पश्चात् मेरा भी जाना हुआ तकदीर इतनी रही कि बोतल जल्दी ही मिल गयी, नहीं तो पूरी योजना पर पानी फिरा चला था।डीजल तेल का प्रयोग हमने ईंधन के रूप में किया था।इसलिए ट्रैक के दौरान हाथों पर ट्रैकिंग पोल के अतिरिक्त कुछ भी न रखने की हिदायत दी जाती है।डेढ़ से दो घंटे बाद हम खेडुरा बुग्याल पहुँच गये ।
खेडुरा बुग्याल समुद्र तल से लगभग 10958ft.(3340m) की ऊँचाई पर स्थित है। छिपी बुग्याल और खेडुरा बुग्याल के बीच की दूरी लगभग 4-6 किमी० है। साढे़ बारह बजे हम खेडुरा पहुँचे थे। यह बुग्याल काफी बड़ा है इस पर सुंदर मखमली घास उगी हुई थी। यहाँ बैठकर प्रकृति की शांति से वार्ता की जा सकती है।5-6 किमी० पर आज का गंतव्य था- खाम बुग्याल। हिमालय में दोपहर पश्चात् मौसम की आनाकानी शुरू हो जाती है इसलिए हमें जल्दी खाम तक पहुँचना था।सभी सदस्यों की चलने की गति काफी धीमी हो चुकी थी।इधर कहीं थोड़ा मद्यपान हुआ जिससे शरीर को थोड़ा सी ऊर्जा मिल सके और फिर चल दिए।
खाम बुग्याल काफी बड़ा बुग्याल है, हमें कैम्पिंग बुग्याल के आधे से अधिक दूरी पर तम्बू लगाने थे। खाम बुग्याल में करीब तीन बजे पहुँचना हुआ, खाम बुग्याल का अंत सीधे हिमालय की जड़ पर प्रतीत होता दिखाई पड़ा।
खाम बुग्याल समुद्र तल से लगभग 11811.6ft.(3600m) की ऊँचाई पर स्थित है।
जहाँ से राम बाड़ा के लिए रास्ता निकलता है वहाँ साँसे ली गई। परन्तु हमें अभी और आगे चलना था। आधे घण्टे चलने के पश्चात् एक सुंदर कैंपिंग स्थल दिखाई दिया जहाँ पर तम्बू लगाने को लेकर मंजूरी हुई थी। समय साढ़े तीन के करीब था। नजदीक ही खामनदी का शोर आकर्षित कर रहा था ।यहाँ चंद मिनटों में हिम शिखर से चलती ठंडी बयार ने हिला कर रख दिया।सभी चीजें घंटे भर में यथास्थान पर सेट हो गई।तम्बू लगाया गया, ठंड और बारिश से बचने के लिए आवश्यक पुख्ता इंतजाम किए गये।यहाँ भी कीचन को तम्बू की देहली पर ही बनाया गया ताकि तम्बू में आवश्यक गर्मी बनी रहे और स्टोव भी जलता रहे क्योंकि सांय होते ही हवा का रूख कुछ तेज सा हो रहा था जो स्टोव को जलने में बाधा उत्पन्न कर रहा था। इंतज़ार के बाद चाय बनी।चाय पीकर आवश्यक कपड़े पहने गए। थोड़ी देर इधर-उधर टहलने का वक्त मिला। पूरे बुग्याल में कोहरे का नाच तभी यहाँ तभी वहाँ हो रहा था समय आगे बढ़ता अंधेरा दस्तक देने लगा। फिर लाइट फिटिंग। आज की रात्रि चावल और दाल को लेकर बिल पास करना था। सभी ने बिल के पक्ष में मत किया और मुहर लग ग ई । कुछ यूँ दो घंटे तक खाना पकता और हमारी गप्पें शुरू हुई । इतनी ऊँचाई पर वायुमंडलीय दाब की कमी के कारण खाना देर से पकता है इसलिए धैर्य रखना लाजमी था।
साढ़े आठ तक रात्रि भोजन तैयार था अब और देर तक भूख को रोका नहीं जा सकता था इसलिए टूट पड़े। आज काफी दूरी तय की गई थी इसलिए शरीर एग्जोस्ट हो चुका था।सवा नौ बजे पर ही गुड नाईट।
अक्टूबर ०८,२०२१
खाम बुग्याल
खाम बुग्याल में जागरण के पश्चात मैं जब तम्बू से बाहर निकला, तम्बू के विपरीत दिशा में उच्च हिमालय की चोटी पर प्रभात् की बेला में सूर्य की पहली किरण को देखकर मुझे अरविंद 'प्रकृति प्रेमी' की कविता संग्रह 'प्रकृति अर मनखि' के 'प्रकृति उठिगि' शीर्षक की पंक्तियाँ याद आने लगी-
हे मनखि! सुबेर का बग्त स्येंयु न रऽ
खड़ु उठ, देख अमृतबाणि बरखणी च
प्रकृति उठिगि बिना घड़ि कि
चुछा! त्वैमा त अलारम घड़ि च ।
उपर्युक्त पंक्तियों का हिंदी अनुवाद सार के रूप पर में निम्नलिखित है-
हे मनुष्य! सुबह के समय सोया हुआ मत रह
खड़ा हो, देखो अमृतवाणी बरस रही है
प्रकृति बिना घड़ी के उठ गई है
तेरे पास तो अलार्म के लिए घड़ी है ।
मन में ये पंक्तियाँ और पर्वत चोटी पर सूर्य की पहली-पहली किरण वाह! क्या अद्भुत सङ्गम है। प्रकृति के इन परिदृश्यों को देखकर मन भावविभोर हो उठता है।
धूप से पहले इस तापमान में कुछ भी नहीं किया जा सकता था इसलिए धूप के आने तक का इंतजार किया गया। आज हमें आठ किमी० तक चलना था- खाम बुग्याल से केदारनाथ। खाम बुग्याल से डेढ़ किमी० की दूरी से थोड़ा कम दूरी पर बल्दजौत्या नामक स्थान है। नाम से ही प्रतीत हो रहा है, बल्द अर्थात बैल और जौत्या का अर्थ जोता हुआ। वह स्थान जहाँ पर बैलों को जोता गया हो । पौराणिक कथाओं में पाण्डवों का हिमालय से संबंध मिलता है।इस स्थान पर पाण्डवों को हल जोतते रात से सुबह हो गई थी।पाण्डव जुते हुये बैलों को छोड़कर अदृश्य हो गए।जुतै हुये बैल विशालकाय पाषाणखण्डों में परिवर्तित हो गये जिसके कारण इस स्थान का नाम बल्दजौत्या पड़ा ।
नौ बजे तक धूप कैंपिंग स्थल पर पहुँच गयी। इस बीच नास्ता तैयार हुआ और अन्य महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किये गए।चालीस से पैंतालीस मिनट तक पैकिंग चली फिर आगे के लिए रवाना। आज का दिवस इस ट्रैकिंग का महत्वपूर्ण दिन था क्योंकि यहाँ से आगे रास्ता सिर्फ मैप और पथ-प्रदर्शिका के अनुसार था। पौने ग्यारह बजे तक बल्दजौत्या पहुँच गये । पास ही खाम नदी पर मनणी बुग्याल जाने के लिए लकड़ी का पुल बनाया गया था। खैर हमारा रास्ता बांयी तरफ था। बर्फिले पहाड़ के समीप से ही बायी तरफ हथिनी टाॅप की तरफ जाना था। बैठकर थोड़ा सा विश्राम किया गया और रास्ते का खाका तैयार किया गया।अब डेढ़ से दो किमी० एकदम बिने रास्ते वाली खड़ी चढ़ाई थी। मन निराशा से भरता जा रहा था। आगे बढ़ते यहाँ कोहरे ने दस्तक दी परन्तु परमानेन्टली नहीं। अगवाई मैंने सम्भाल रखी थी।हालांकि सभी सदस्यों को इस दुष्कर खड़ी चढ़ाई पर लोहे के चने चबाने पड़े परन्तु पीछे देखता हूँ तो दो सदस्यों के चेहरे कुछ उच्च स्तर का बंया कर रहे थे।यहाँ कड़ी मसकत करनी पड़ी। आखिरकार दो किमी की चढ़ाई करीब तीन घंटे में तय हुई । टाॅप पर पहुँचते ही सभी के मुहँ से एक वाक्य निकलता गया -
'हथिनी टाॅप की चढ़ाई वाकई थका देने वाली थी ' या यूँ कहें कि दुसाध्य अथवा विकट।हथिनी टाॅप समुद्र तल से 14436ft.(4400m) की ऊँचाई पर स्थित है।
हथिनी टाॅप से केदारनाथ, भुकुण्ड भैरव होते हुए लगभग चार से पाँच किमी है।समय दो बजकर बीस मिनट बताया गया। अब पूरी बिना रास्ते की उतराई सम्मुख थी ।पिठुओं को कसा और आगे बढ़ते गये । हल्की सी हेलीकॉप्टर के चलने की आवाज कानों को सुनाई दी जिससे दिशा का सही पता लग गया । कोहरा था इसलिए आगे कुछ भी दृश्यमान नहीं था। कुछ दूरी से दल दो भागों में विभक्त हो गया । आगे केदारपुरी दिखने लगी। मैं और भूपी भैजी अगवानी में थे इसलिए साढ़े चार बजे तक केदारनाथ पहुँच गये । यहाँ आशीष शुक्ला भाई जी हमारी प्रतीक्षा में थे । पहले पहुँची हमारी टीम ने कमरे पर जाकर आवश्यक बंदोबस्त किया । हमारे आने के बीस से पच्चीस मिनट पश्चात् दूसरी टीम पहुँच गयी - नवदीप, अनुराग और विवेक । चाय पीकर हमने सूक्ष्म स्नान किया और सभी देवालय की तरफ बढ़ने लगे।
पुराणों में कहा गया है "गंङ्गाद्वारोन्तरं विप्र स्वर्गभूमि: स्मृता: सुधर:" , आज इस स्वर्ग भूमि में महादेव के दर्शन से प्रफुल्लित और प्रस्फुटित हो गये ।
सायंकालीन आरती के पश्चात रात्रि भोजन किया। पुनः मंदिर प्राङ्गण में गये। कितना शांति प्रिय, पावन वातावरण था इसकी शब्द रचना नहीं की जा सकती।
अक्टूबर ०९,२०२१
केदारनाथ
आज केदारनाथ से वासुकी ताल की 8 किमी० की यात्रा थी।बासुकी ताल समुद्र तल से लगभग 13566.935ft.(4135m) की ऊँचाई पर स्थित है।दिन के करीब बारह बजे हम वासुकी ताल पहुँच गये थे। ताल के समीप बैठकर खूब चर्चाएँ चली । फिर धीरे- धीरे वापसी । फिर सांयकाल में आरती के लिए प्रतीक्षा करने लगे । उस सुंदर वातावरण में फिर सरीक होने का अवसर प्राप्त हुआ।और काफी देर तक मंदिर के चारों तरफ मंडराये फोट़ो ली गयी।
अगले ही दिन इस पुण्य धाम केदारनाथ से रामबाड़ा -गौरीकुंड- गुप्तकाशी -ऊखीमठ पहुँच गये ।
पथ- प्रदर्शिका
गुप्तकाशी---------30 किमी०-----चौमासी
चौमासी-----3किमी०------पयालू बुग्याल
पयालू बुग्याल --------3किमी०----द्यूली बुग्याल
द्यूली बुग्याल --------2.5किमी०------छिपी बुग्याल
छिपी बुग्याल-------3किमी०------खेडुरा बुग्याल
खेडुरा बुग्याल - ------3.5किमी०------खाम बुग्याल
खाम बुग्याल --------2किमी०---------बल्दजौत्या
बल्दजौत्या --------- 2किमी०------हथनी टाॅप
हथनी टाॅप-------3.5किमी०------भुकुण्ड भैरव
{दूरियाँ ~=}
ट्रैक का समय - अप्रैल- जून (बारिश के दिनों में न करें)
अगस्त- अक्टूबर मध्य
अंततः मैं एक ही निष्कर्ष पर पहुँच पाता हूँ।
° यात्राएँ क्यों की जाती हैं?
इसका उत्तर सिर्फ यात्राएँ करके ही प्राप्त किया जा सकता है।
धन्यवाद
अभिषेक पंंवार 'गौण्डारी'
उत्तराखण्ड
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