जीवन पिरामिड की तरह! न भला हैं, न बुरा हैं कोई।हस कर जीवन जीने की कला हैं सब मे।रम गए हैं,कदम किसी जगह मे पिरामिड की तरह।यह चतुर दुनियाँ वाले सब जानते हैं।बोलते भी हैं, अपनों से, मै तुम्हारा कौन हूँ?यह ज़िंदगी भी सवालियाँ निशान बन गई हैं ।इन्ही सवालो को खोजती रह गई हैं ज़िंदगी भवसागरों मे।मिलता हैं टू