जीवन पिरामिड की तरह!
न भला हैं, न बुरा हैं कोई।
हस कर जीवन जीने की कला हैं सब मे।
रम गए हैं,कदम किसी जगह मे पिरामिड की तरह।
यह चतुर दुनियाँ वाले सब जानते हैं।
बोलते भी हैं, अपनों से, मै तुम्हारा कौन हूँ?
यह ज़िंदगी भी सवालियाँ निशान बन गई हैं ।
इन्ही सवालो को खोजती रह गई हैं ज़िंदगी भवसागरों मे।
मिलता हैं टूटाफूटा जवाब, जो है एक दरार की तरह।
जिससे जनता राजनेता सभी निकलते हवा की तरह।
बचना सभी जानते हैं, इस भौसगर से,बिन नाव के।
कौन आयेगा उबारने भवर मे फसी ज़िंदगी की नय्या को?
बन गई ज़िंदगी एक नोक पिरामिड की तरह।
वह ऊँची होकर भी चुभती हैं ज़िंदगी को।