shabd-logo

दम तोड़ती आशा

25 सितम्बर 2019

3489 बार देखा गया 3489

न्याय की आशा

हर ओर हताशा

प्रक्रिया है ढीली

डगर पथरीली

भटकते हैं दर-दर

नहीं मिलता न्याय

बांधे आंखों पर पट्टी

खड़ी न्याय की देवी

बाहुबल,धनबल का

द्वारपाल है न्याय

सूनी आंखें देखें सपने

बीतेंगे सदियां टूटे सपने

न्याय है स्वप्न इस व्यवस्था में

अन्याय छुपा न्याय के

मुखौटों में

न्याय हार जाता है

अन्याय जीत जाता है

धूल चाटती फाइलों में

घर की चारदीवारी में

सरकारी दफ्तरों में

बाजारों, बस्तियों में

घुट जाता है दम न्याय का

फैला है जाल सर्वत्र अन्याय का

कहां है न्याय,कैसा है

बीत जाती सदियां

चलती रहती है जिंदगी

बढ़ती रहती है तारीख

आदमी गुजर जाता है

न्याय नहीं मिल पाता है।


©✍ अभिलाषा चौहान

स्वरचित मौलिक

2
रचनाएँ
Merebhav
0.0
मैं अभिलाषा ,अनंत अभिलाषाओं को अंतरतम में समाहित किए उमड़ते भावसागर को शब्दों के माध्यमसे जीवंत करने का प्रयास कर रही हूं।मन,आत्माबुद्धि, विचार का बहता निर्झर है मेरा यह पेज।
1

दम तोड़ती आशा

25 सितम्बर 2019
0
1
0

न्याय की आशाहर ओर हताशाप्रक्रिया है ढीलीडगर पथरीलीभटकते हैं दर-दरनहीं मिलता न्यायबांधे आंखों पर पट्टीखड़ी न्याय की देवीबाहुबल,धनबल काद्वारपाल है न्यायसूनी आंखें देखें सपनेबीतेंगे सदियां टूटे सपनेन्याय है स्वप्न इस व्यवस्था मेंअन्याय छुपा न्याय केमुखौटों मेंन्याय हार जाता हैअन्याय जीत जाता हैधूल चाटत

2

अनजान डगर

31 दिसम्बर 2019
0
1
0

सौम्या यही नाम था उसका,हमारे पड़ोस में रहने वाले तिवारी जी की बेटी थी।आज उसे घर लाया जा रहा था, कहां से? कहीं बाहर गई थी क्या सौम्या? हां, पिछले कई दिनों से दिखी भी नहीं थी।मैंने पूछा भी था,तो टाल-मटोल वाला जबाव मिला था, लेकिन आज सारी कहानी सामने थी। आठवीं में ही पढ़ती थीसौम्या! बड़ी चुलबुली और प्या

---

किताब पढ़िए