इतिहास की पोथिया कुरदे तो पता चलता है कि हर जाति पर समय समय पर अत्याचार हुए है | लेकिन दलित व्यक्तियों पर जो अत्याचार हुए वो इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि अन्य लोगो पर अत्यचार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हुए लेकिन दलितों पर अत्याचार अपने ही लोगो अपने ही देश के लोगो के कारण हुए , लेकिन आज कल एक तनावपूर्ण , कुंठित मासिकता से त्रस्त दलितवादी लेखक देखे जा रहे है | जो अपनी ही कल्पना अनुसार आरोप प्रत्यारोप करते है , हम जातिवाद आदि छोटी सोच के खिलाफ है लेकिन जानबूझ धर्म ,संस्कृति ,महापुरुषों ,देवो को का अपमान ओर झूटी झूटी कहानिया बना कर मजाक बनाना बिलकुल ही गलत ओर मुर्खता पूर्ण है | ये क्यूँ होता है कारण बताया जाता है जातिवाद के विरोध में लेकिन जब इस तरह की पुस्तक पढ़ी जाती है तो पता चलता है कि इसमें विरोध ओर क्रान्ति बिलकुल नही बल्कि कुंठित मानसिकता ,नफरत , बदला लेने की भावना नज़र आती है तो कुछ अपने राजनेतिक स्वार्थ के लिए ऐसा करते है ताकि आपस में नफरत रहे ओर वोट मिलते रहे |
यहा मै कुछ दलित वादी लेखको की पुस्तको के कुछ अंश बताऊंगा जिसमे उन्होंने किस तरह कल्पित आक्षेप किये है -
लेखक स्वपन कुमार जी अपनी पुस्तक “भारत के मूल निवासी ओर आर्य आक्रमण” नाम की पुस्तक के 60 वे पेज पर ॠग्वेद के 1/103/7 वे मंत्र का अर्थ करके लिखा है-” इंद्र को रात के अंधकार मे गौशाला की रस्सी खोलकर गौ चोरी करते हुए देखा गया है।”
यह मंत्र यह है-” तदिन्द्र प्रेव वीर्य चकर्थ् यत्ससन्त वज्रेणबोधयोSहिम ।
अनुत्वा पत्नीर्ह्रशिंत वयश्च विश्वे देवासो अमदन्ननु त्वा॥
पाठक गण जरा ध्यान दे कि इस मंत्र मे कही भी गौ,गौशाला,अथवा रस्सी तक का नाम नही है। तब स्वपन कुमार जी ने इंद्र को गाय चोरी करते हुए क्या स्वपन मे देखा था।
स्वपनकुमार ,आर के आकोदिया जैसे परजीवी लेखको ने लाल भुजक्कड जैसी कई कल्पनाए की है:-
- जैमिनी पूर्व मीमासा के 32 वे सूत्र का अर्थ करते है-:
“………कम्बल और खडाऊ पहने एक बूढा खडा है ओर आशीष के गीत गुनन गुना रहा है………समर्पण को तत्यपर एक ब्राह्मणी कहती है ” है राजन बता प्रतिपदा के दिन मैथुन का क्या अर्थ है अथवा क्या गौ ने इस बली का उत्सव मनाया ?” (हिंदु धर्म की विडम्बनाये पृष्ठ 108 आर के आकोदिया)
पाठकगण ध्यान दे कि यह सूत्र है-
” कृते वा विनियोग: स्यात कर्मण: सम्बधात ॥ 1/32 “
जिसका अर्थ है- पूर्व पक्ष की निर्वत्ति मे दोष नही है,कर्म मे विनियोग संबंध होगा कर्म के साथ संबंध होने से।
अब बताए अकोदिया जी को कंबल,खडाउ,बूढा,ब्राह्मणी,गौ,मैथुन ये शब्द कहा दिखे।
यही महाश्य इसी पुस्तक के पृष्ठ 107 पर लिखते है कि ” न्याय दर्शन के प्रेरणता ॠषि गौतम वेद को प्रमाणिक नही मानते है क्युकि इनमे मिथ्यावाद है।परन्तु हमे लगता है इनहोने न्याय दर्शन की शक्ल तक नही देखी होगी-
” न्याय दर्शन का सूत्र 2/1/68 देखे-
” मंत्रायुर्वेदप्रामाण्यवच्च तत्प्रामाण्यमाप्तप्रामाण्यात्॥”
मंत्र प्रामाण्य,आयुर्वेद प्रामाण्य के समान ओर वेद का प्रमाण्य है,आप्त प्रमाण्य से।”-यहा तो वेद प्रमाण सिध्द होता है आप कहा भटक रहे हो।
” मनु किसानो का ओर शौषितो का नेता था। अग्नि बलासुर का पुत्र ओर मित्र व वरुण भारत के मूल निवासी थे” देवताओ ने रिश्वत देकर इनहे आपस मे लडाया,देवराज इंद्र ने भारत पर आक्रमण किया”( भारत के मूल निवासी व आर्य आक्रमण पृ 61 व 62)”
पाठक गण ध्यान देखे। कितनी मनोरंजन बात है, कभी मनु को गालिया कभी मूल निवासी।
इस तरह आपने देखा और इस तरह की कई बातें इन दलित विचारक लेखको की पुस्तको और पत्रिकाओं में मिल जायेंगी ..जिनका भ्न्दफोदना भी आवश्यक है लेकिन विचार ये है क्या इन झूटी कहानियो से ये जातिवाद मिटा पायेंगे या आपस में ही और ज्यादा नफरत को बढ़ावा देंगे .....
हालकि दलित वादी लेखक खुद को नास्तिक बताते है बताते है एक अन्धविश्वासी आस्तिक से एक नास्तिक १०० गुना अच्छा है लेकिन नास्तिकता बुद्ध जेसी हो क्यूंकि यदि नास्तिकता बुद्ध जेसी न हो तो नास्तिक अवसादी ,कुंठित ,ईर्षालू दिखता है ओर नास्तिकता बुद्ध जेसी हो तो नास्तिक करुणामय ,जागरूक , ओर नम्र ,दुसरो का हित करने वाला होता है |