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टोन टोटके का एक रहस्य !

30 मार्च 2015

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ओ३म् मारय-मारय, उच्चाटय- उच्चाटय, विद्वेषय- विद्वेषय, छिन्दी- छिन्दी, भिन्दी- भिन्दी, वशीकुरू- वशीकुरू, खादय- खादय, भक्षय- भक्षय, त्राटय- त्राटय, नाशय- नाशय, मम शत्रुन् वशीकुरू- वशीकुरू, हुं फट् स्वाहा....!!" आदि मोहिनीमारण के तन्त्रमन्त्रोच्चार ने पूरे वातावरण को भयप्रेत कर दिया। विशाल जन समुदाय "हर हर महादेव" की ध्वनि से अपनी उपस्थिति भान करवा रहा था। सभी "बाबा जोगेन्दर पण्डित" जी को तरह तरह प्रसन्न करने में प्रयत्नरत थे। चढ़ावे पर चढ़ावा और फिर चढ़ावे पर चढ़ावा.....! बाबा जी अद्भुत शक्तियों के स्वामी जो थे। पूरे इलाके में उनकी तान्त्रिक शक्तियों की चर्चा जोरों पर थी। प्रबुद्धों के अनुसार उन्होंने अपनी कुण्डलिनी जागृत कर ली थी। लोग खड़े खड़े परस्पर कानाफूसी कर रहे थे। समीप से सुना तो पता चला "बाबा मन्त्र से ही हवनकुण्ड की अग्नि प्रज्वलित करने वाले हैं।" सुना तो अन्तस में विनोदी पटाखे फूट पड़े। घर से महोत्सव के लिए जब निकला था तभी पड़ोस के दादाजी ने मेरी चंचलता भाँप कर चेताया था कि "मनु (भवितव्य) आज कोई खुराफाती न करना।" तब तो "हाँ" में सर हिला दिया था। परन्तु तनिक सोचो, शक्कर भी अपना शक्करत्व छोड़ता है भला? वो भी तब जबकि अवसर स्वयं चलकर सम्मुख उपस्थित हुआ हो? मुखिया जी के लाडले होने के कारण "बाबा जोगेन्दर पण्डित" के पार्श्व में ही बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। धूप, दशांग, सिन्दूर, रोली अक्षत , घी, सरसों, तिल तथा साथ ही अन्नादि हव्य पदार्थों से सुसज्जित थालें रखी थीं। बाबा जी भड़काऊँ काले परिधान में थे। हवनकर्म प्रारम्भ ही होने वाला था। बाबा जी ने अपना विभत्स, अति भयानक मन्त्रोच्चार प्रारम्भ किया। विज्ञान वर्ग का विद्यार्थी होने के कारण मेरी दृष्टि में बाबाजी की हर क्रियाकलाप संदेहपूर्ण प्रतीत हो रही थी। मैं पूर्णरूप से "बकोध्यानं" के आसन में था। तभी अकस्मात् मन में अतितीव्र खुराफाती लहर कौंधी। अवसर पाते ही दृष्टि बचाते मैंने बाबाजी के सम्मुख रखी थाली की "सरसों, तिल व घी" अन्य थाल से बदल दी। अन्तस में उमड़ते ठहाकों के ज्वार को बलपूर्वक पचाकर चुपचाप देखता रहा। कुछ कर्मकाण्डी क्रियाकलापों के पश्चात् बाबाजी ने सम्मुख रखी थाल से "घी" लेकर हवनकुण्ड में डालनी प्रारम्भ कर दी। बाबा ज्यों ज्यों कुण्ड में "घी" डालते त्यों त्यों उनके मन्त्रों का कोलाहल उच्च होता जा रहा था। घी छोड़ने के पश्चात् बाबा जोर जोर से "फू......फू......". की ध्वनि करते हुए "तिल और सरसों" हवनकुण्ड में डाले जा रहे थे। उपस्थित जनसमूह चमत्कार की प्रतिक्षा में लालायित था। बाबा पहले से उग्र प्रतीत हो रहे थे। बारम्बार थाल से सरसों-तिल हवनकुण्ड में डालकर जोर जोर से उच्चारित करते - "फू........"। कोई प्रभाव न होता देख बाबा तिलमिला गये। उनकी मुखभंगिमा बदल चुकी थी। एकदम लाल...!! बात प्रतिष्ठा की थी, अपने उक्त चमत्कार की पुरजोर घोषणा जो कर दी थी। क्षण प्रतिक्षण मुख पर रूआँसी छा रही थी। वे कभी हाँथ में लिए सरसों व तिल को देखते तो कभी समीप बैठे यजमानों को, पूरी सन्देहभरी दृष्टि से। उनका ये अभिनय-मंचन मुझसे सहन न हुआ, एक बलिष्ठ हँसी फूट पड़ी। वे मेरी समस्त खुराफातियों को भाँप गये। बोले- "दे, दो...!" मैंने हँसकर कहा - "क्या..?" बोले- "चलो एक तिहाई तुम्हारा हुआ" - क्या? बोले- चढ़ावा। तब तक मैं लोटपोट हो चुका था। चढ़ावे का नाम सुनकर अन्तस मेँ आग लग गयी। आचार्य को दी प्रतिज्ञा व "महर्षि दयानन्द" की वो पाखण्ड-खण्डनी छवि मानसचक्षुओं में नाच गयी। अब वहाँ रूकना मेरी सामर्थ्य से बाहर था। बाबा मुझे लालायित दृष्टि से देख रहे थे। बाबा के पाखण्ड का भाण्डा फूट चुका था। शीघ्र ही पितामह तथा पंचो तक बात पहुँच गयी। उन्होंने पूरा विवरण गाँव के सम्मुख परोस दिया। बाबा पकड़े गये। मन्दिर के पुजारी जी ने बड़े चाव से बाबा जी को हनुमान जी का प्रसाद चखाया। न जाने कहाँ-कहाँ से उनपर कृपा बरसी। अन्ततः बाबा को ससम्मान पुलिस के तिहाड़ीधाम पहुँचाया गया। बाबा आज भी वहीं विराजमान हैं। हा हा हा घटना का वैज्ञानिक विश्लेषण:- वे विद्यार्थी जो विज्ञान वर्ग से 9वीं से12 वीं कक्षा में अध्ययनरत हैं उन्हें इस अभिक्रिया (कथित चमत्कार ) को सिध्द करने के लिए कोई विशेष कठिनाईं नहीं होनी चाहिए। मित्रों आपने "पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO4)" का नाम तो सुना ही होगा, जो गाँवों में "लाल दवा" के नाम से सुलभ है। तथा दूसरा पदार्थ है "ग्लिसरिन"। जब इन दोनों पदार्थों की परस्पर अभिक्रिया करायी जाती है तो रासायनिक अभिक्रिया के फलस्वरूप इनका तीव्र "दहन" होने लगता है। ऐसे में ढोंगी बाबा-गण पोटैशियम परमैंगनेट को "सरसों या तिल" की भाँति तथा श्वेत ग्लिसरिन को "घी" की भाँति प्रयुक्त कर अपने कथित चमत्कार का प्रदर्शन कर यज्ञ इत्यादि की अग्नि प्रज्वलित करते हैं। दार्शनिक व्याख्या:- परमेश्वर शाश्वत तथा सनातन है। उसके अनुरूप ही उसके गुण-कर्म-स्वभाव भी शाश्वत, सनातन तथा अपरिवर्तनीय है। उसके बनाए सृष्टि नियमों को कोई भंग या दूषित नहीं कर सकता। यदि कोई ऐसा करता है तो ईश्वर "ईश्वर" नहीं कहला सकता। उसके कार्यों को भंग करने का सामर्थ्य किसी में भी नहीं। यदि कोई बाबा चमत्कार प्रदर्शन कर स्वयं को ईश्वर से जुड़े होने की बात कहे तो निश्चित ही वह ढोंगी अथवा पाखंण्डी है क्योंकि चमत्कार (नियमभंग) ईश्वर के सत्ता की स्वीकृति नहीं बल्कि तामसी सत्ता के उपस्थिति की पुष्टि है। जो कि असम्भव है। तमसो मा ज्योतिर्गमयः! हे प्रभु, हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो! ओ३म्!
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क्या आर्य विदेशी थे ?

14 मार्च 2015
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आजकल एक दलित वर्ग विशेष (अम्बेडकरवादी ) अपने राजनेतिक स्वार्थ के लिए आर्यों के विदेशी होने की कल्पित मान्यता जो कि अंग्रेजी और विदेशी इसाई इतिहासकारों द्वारा दी गयी जिसका उद्देश्य भारत की अखंडता ओर एकता का नाश कर फुट डालो राज करो की नीति था उसी मान्यता को आंबेडकरवादी बढ़ावा दे रहे है | जबकि स्वयम अम्

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तीसरा धाम???

15 मार्च 2015
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यजुर्वेद 32.10-- " स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा। यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्नध्यैरन्त।।" इस मन्त्र मेँ आया हुआ ये पद " यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्नध्यैरन्त" जिसका अर्थ हैँ जिस तीसरे धाम मेँ मोक्षसुख को प्राप्त होते हुए ज्ञानवान् लोग स्वेच्छापूर्वक विचरण करते

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इतिहास की अनकही कहानिया(The untold story of history)

15 मार्च 2015
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मित्रो इतिहास मे कई वीरो की गाथाए है जो खो गई है ओर कई वीरो की वीरता के कार्यो का श्रेय किसी दूसरे को दिया गया लेकिन यहा यह लेख कोई वीर या वीरता की गाथा को नही है बल्कि एक महान प्रेम कहानी को सम्प्रित है| भारत देश मे हीर रांझा,सलीम अनारकली,शाहजहा मुमताज कई प्रेमियो की कहानिया प्रसिध्द है तो कई इतिहा

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दलित वादी लेखको की झूठी कल्पना

15 मार्च 2015
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इतिहास की पोथिया कुरदे तो पता चलता है कि हर जाति पर समय समय पर अत्याचार हुए है | लेकिन दलित व्यक्तियों पर जो अत्याचार हुए वो इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि अन्य लोगो पर अत्यचार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हुए लेकिन दलितों पर अत्याचार अपने ही लोगो अपने ही देश के लोगो के कारण हुए , लेकिन आज कल एक तनाव

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ग्रीक सभ्यता मे भगवान कृष्ण(Krishna in Greek civilization)

16 मार्च 2015
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जय श्री कृष्णा! मित्रो हमारे भगवान कृष्ण की महिमा ओर यश के बारे मे आप सब परिचित है | भगवान कृष्ण योगेश्वर है,सभी शास्त्रो के ज्ञाता के साथ साथ युध्दादि कला मे भी निपुण थे| अर्जुन को गीता जैसे उपदेश देने वाले भगवान कृष्ण से भारत ही नही बल्कि विश्व की समस्त प्राचीन सभ्यताए जैसे-सिंधु सरस्वती,मेसोपोटाम

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चुंबकीय उत्तोलन और हिंदू मंदिर (Magnetic levitation and Hindu Temples)

16 मार्च 2015
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आपने जेकी चेन की The Myth नाम की फिल्म तो देखि ही होगी ?? नहीं तो जरुर देखे ,उसमे जेकी चेन एक पुरातत्व विद था जो भारत में एक मंदिर में आता है । उस मंदिर में साधू उड़ पा रहे थे क्युकी 2 काले जादुई पत्थर के कारण । यह कल्पना नहीं पर सत्य है ,पर साधू के बजाये मुर्तिया हवा में तैरती थी । चुम्बक का उल्लेख

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ज़फरनामा : गुरु गोविन्द सिंह का पत्र !

16 मार्च 2015
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भारत अनादि काल से हिन्दू देश रहा है. इस देश में जितने भी धर्म, संप्रदाय और मत उत्पन्न हुए हैं, उन सभी के अनुयायी, इस देश के वास्तविक उतराधिकारी हैं. लेकिन जब भारत पर इस्लामी हमलावरों का शासन हुआ तो उन्होंने हिन्दू धर्म और हिन्दुओं को मिटाने के लिए हर तरह के यत्न किये. आज जो हिन्दू बचे हैं, उसके लिए

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राजा जयसिंह के नाम शिवाजी का पत्र

17 मार्च 2015
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भारतीय इतिहास में दो ऐसे पत्र मिलते हैं जिन्हें दो विख्यात महापुरुषों ने दो कुख्यात व्यक्तिओं को लिखे थे। इनमे पहिला पत्र "जफरनामा" कहलाता है जिसे श्री गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब को भाई दया सिंह के हाथों भेजा था। यह दशम ग्रन्थ में शामिल है जिसमे कुल 130 पद हैं। दूसरा पत्र छ्त्रपति शिवाजी ने आमेर क

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क्या श्री राम ने पशु वध किया था ???

18 मार्च 2015
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मित्रो कुछ दिन पहले इसी साईट पर एक कविता पढने को मिली जिसमे एक नास्तिक मित्र ने आरोप किया की राम ने मास ,चर्म के लिए हिरन का पीछा किया था | उन्होंने बिना प्रमाण ये आक्षेप कर दिया अब पता नही उनकी केसी भावना हो लेकिन इससे यह बात तो पता चलती है कि नास्तिकता अगर बुद्ध जेसी न हो तो वो कुंठा .अवसाद बन जात

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स्वाध्याय का महत्व

20 मार्च 2015
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कई लोग कहते है कि केवल भक्ति ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है स्वाध्याय या वेद अध्ययन नही ..ये उन लोगो का भ्रम है जो ऐसा कहते है क्या बिना ज्ञान के कोई सही मार्ग पर जा सकता है नही जो ऋषि मुनि ईश्वर का साक्षात्कार किया उन्होंने स्वाध्याय को भी ईश्वर प्राप्ति में आवश्यक माना है | मह्रिषी पतंजली कहते है

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सोम रस ओर शराब

20 मार्च 2015
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कई पश्चमी विद्वानों की तरह भारतीय विद्वानों की ये आम धारणा है ,कि सोम रस एक तरह का नशीला पदार्थ होता है । ऐसी ही धारणा डॉ.अम्बेडकर की भी थी ,,डॉ.अम्बेडकर अपनी पुस्तक रेवोलुशन एंड काउंटर रेवोलुशन इन असिएन्त इंडिया मे निम्न कथन लिखते है:- . यहाँ अम्बेडकर जी सोम को वाइन कहते है ।लेकिन शायद वह

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ऊंटेश्वरी माता का महंत

30 मार्च 2015
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फादर ऐन्थानी फर्नान्डीस उर्फ फादर टोनी राष्ट्रवादी , स्वतंत्र चिंतक , ईमानदार और अपनी हिन्दू विरासत को मानने वाले गुजराती कैथोलिक ईसाई थे। वर्षों धर्मान्तरण कार्य में लगे रहने के दौरान जब उन्होंने कैथोलिक चर्च की समाज सेवा के नाम पर कुटिलता और धोखाधडी से धर्म परिवर्तन कराये जाने की साजिश को नजदीक

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टोन टोटके का एक रहस्य !

30 मार्च 2015
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ओ३म् मारय-मारय, उच्चाटय- उच्चाटय, विद्वेषय- विद्वेषय, छिन्दी- छिन्दी, भिन्दी- भिन्दी, वशीकुरू- वशीकुरू, खादय- खादय, भक्षय- भक्षय, त्राटय- त्राटय, नाशय- नाशय, मम शत्रुन् वशीकुरू- वशीकुरू, हुं फट् स्वाहा....!!" आदि मोहिनीमारण के तन्त्रमन्त्रोच्चार ने पूरे वातावरण को भयप्रेत कर दिया। विशाल जन समुदाय

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