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राजा जयसिंह के नाम शिवाजी का पत्र

17 मार्च 2015

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भारतीय इतिहास में दो ऐसे पत्र मिलते हैं जिन्हें दो विख्यात महापुरुषों ने दो कुख्यात व्यक्तिओं को लिखे थे। इनमे पहिला पत्र "जफरनामा" कहलाता है जिसे श्री गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब को भाई दया सिंह के हाथों भेजा था। यह दशम ग्रन्थ में शामिल है जिसमे कुल 130 पद हैं। दूसरा पत्र छ्त्रपति शिवाजी ने आमेर के राजा जयसिंह को भेजा था जो उसे 3 मार्च 1665 को मिल गया था। इन दोनों पत्रों में यह समानताएं हैं की दोनों फारसी भाषा में शेर के रूप में लिखे गए हैं। दोनों की पृष्टभूमि और विषय एक जैसी है। दोनों में देश और धर्म के प्रति अटूट प्रेम प्रकट किया गया है। शिवाजी पत्र बरसों तक पटना साहेब के गुरुद्वारे के ग्रंथागार में रखा रहा। बाद में उसे "बाबू जगन्नाथ रत्नाकर" ने सन 1909 अप्रैल में काशी में काशी नागरी प्रचारिणी सभा से प्रकाशित किया था। बाद में अमर स्वामी सरस्वती ने उस पत्र का हिन्दी में पद्य और गद्य ने अनुवाद किया था। फिर सन 1985 में अमरज्योति प्रकाशन गाजियाबाद ने पुनः प्रकाशित किया था। राजा जयसिंह आमेर का राजा था। वह उसी राजा मानसिंह का नाती था, जिसने अपनी बहिन अकबर से ब्याही थी। जयसिंह सन 1627 में गद्दी पर बैठा था और औरंगजेब का मित्र था। औरंगजेब ने उसे 4000 घुड सवारों का सेनापति बना कर "मिर्जा राजा "की पदवी दी थी। औरंगजेब पूरे भारत में इस्लामी राज्य फैलाना चाहता था लेकिन शिवाजी के कारण वह सफल नही हो रहा था। औरंगजेब चालाक और मक्कार था। उसने पाहिले तो शिवाजी से से मित्रता करनी चाही। और दोस्ती के बदले शिवाजी से 23 किले मांगे। लेकिन शिवाजी उसका प्रस्ताव ठुकराते हुए 1664 में सूरत पर हमला कर दिया और मुगलों की वह सारी संपत्ति लूट ली जो उनहोंने हिन्दुओं से लूटी थी। फिर औरंगजेब ने अपने मामा शाईश्ता खान को चालीस हजार की फ़ौज लेकर शिवाजी पर हमला करावा दिया और शिवाजी ने पूना के लाल महल में उसकी उंगलियाँ काट दीं और वह भाग गया। फिर औरंगजेब ने जयसिंह को कहा की वह शिवाजी को परास्त कर दे। जयसिंह खुद को राम का वंशज मानता था। उसने युद्ध में जीत हासिल करने के लिए एक सहस्त्र चंडी यज्ञ भी कराया। शिवाजी को इसकी खबर मिल गयी थी जब उन्हें पता चला की औरंगजेब हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाना चाहता है। जिस से दोनों तरफ से हिन्दू ही मरेंगे। तब शिवाजी ने जयसिंह को समझाने के लिए जो पत्र भेजा था। उसके कुछ अंश नीचे दिये हैं - 1 जिगरबंद फर्जानाये रामचंद ज़ि तो गर्दने राजापूतां बुलंद। हे रामचंद्र के वंशज, तुमसे तो क्षत्रिओं की इज्जत उंची हो रही है। 2 शुनीदम कि बर कस्दे मन आमदी -ब फ़तहे दयारे दकन आमदी। सुना है तुम दखन कि तरफ हमले के लिए आ रहे हो 3 न दानी मगर कि ईं सियाही शवद कज ईं मुल्को दीं रा तबाही शवद। तुम क्या यह नही जानते कि इस से देश और धर्म बर्बाद हो जाएगा। 4 बगर चारा साजम ब तेगोतबर दो जानिब रसद हिंदुआं रा जरर अगर मैं अपनी तलवार का प्रयोग करूंगा तो दोनों तरफ से हिन्दू ही मरेंगे। 5 बि बायद कि बर दुश्मने दीं ज़नी बुनी बेख इस्लाम रा बर कुनी। उचित तो यह होता कि आप धर्म दे दुश्मन इस्लाम की जड़ उखाड़ देते। 6 बिदानी कि बर हिन्दुआने दीगर न यामद चि अज दस्त आं कीनावर। आपको पता नहीं कि इस कपटी ने हिन्सुओं पर क्या क्या अत्याचार किये है। 7 ज़ि पासे वफ़ा गर बिदानी सखुन चि कर्दी ब शाहे जहां याद कुन इस आदमी की वफादारी से क्या फ़ायदा। तुम्हें पता नही कि इसने बाप शाहजहाँ के साथ क्या किया। 8 मिरा ज़हद बायद फरावां नमूद -पये हिन्दियो हिंद दीने हिनूद हमें मिल कर हिंद देश हिन्दू धर्म और हिन्दुओं के लिए लड़ाना चाहिए। 9 ब शमशीरो तदबीर आबे दहम ब तुर्की बतुर्की जवाबे दहम। हमें अपनी तलवार और तदबीर से दुश्मन को जैसे को तैसा जवाब देना चाहिए। 10 तराज़ेम राहे सुए काम ख्वेश - फरोज़ेम दर दोजहाँ नाम ख्वेश अगर आप मेरी सलाह मामेंगे तो आपका लोक परलोक नाम होगा।
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क्या आर्य विदेशी थे ?

14 मार्च 2015
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आजकल एक दलित वर्ग विशेष (अम्बेडकरवादी ) अपने राजनेतिक स्वार्थ के लिए आर्यों के विदेशी होने की कल्पित मान्यता जो कि अंग्रेजी और विदेशी इसाई इतिहासकारों द्वारा दी गयी जिसका उद्देश्य भारत की अखंडता ओर एकता का नाश कर फुट डालो राज करो की नीति था उसी मान्यता को आंबेडकरवादी बढ़ावा दे रहे है | जबकि स्वयम अम्

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तीसरा धाम???

15 मार्च 2015
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यजुर्वेद 32.10-- " स नो बन्धुर्जनिता स विधाता धामानि वेद भुवनानि विश्वा। यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्नध्यैरन्त।।" इस मन्त्र मेँ आया हुआ ये पद " यत्र देवा अमृतमानशानास्तृतीये धामन्नध्यैरन्त" जिसका अर्थ हैँ जिस तीसरे धाम मेँ मोक्षसुख को प्राप्त होते हुए ज्ञानवान् लोग स्वेच्छापूर्वक विचरण करते

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इतिहास की अनकही कहानिया(The untold story of history)

15 मार्च 2015
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मित्रो इतिहास मे कई वीरो की गाथाए है जो खो गई है ओर कई वीरो की वीरता के कार्यो का श्रेय किसी दूसरे को दिया गया लेकिन यहा यह लेख कोई वीर या वीरता की गाथा को नही है बल्कि एक महान प्रेम कहानी को सम्प्रित है| भारत देश मे हीर रांझा,सलीम अनारकली,शाहजहा मुमताज कई प्रेमियो की कहानिया प्रसिध्द है तो कई इतिहा

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दलित वादी लेखको की झूठी कल्पना

15 मार्च 2015
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इतिहास की पोथिया कुरदे तो पता चलता है कि हर जाति पर समय समय पर अत्याचार हुए है | लेकिन दलित व्यक्तियों पर जो अत्याचार हुए वो इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्यूंकि अन्य लोगो पर अत्यचार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा हुए लेकिन दलितों पर अत्याचार अपने ही लोगो अपने ही देश के लोगो के कारण हुए , लेकिन आज कल एक तनाव

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ग्रीक सभ्यता मे भगवान कृष्ण(Krishna in Greek civilization)

16 मार्च 2015
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जय श्री कृष्णा! मित्रो हमारे भगवान कृष्ण की महिमा ओर यश के बारे मे आप सब परिचित है | भगवान कृष्ण योगेश्वर है,सभी शास्त्रो के ज्ञाता के साथ साथ युध्दादि कला मे भी निपुण थे| अर्जुन को गीता जैसे उपदेश देने वाले भगवान कृष्ण से भारत ही नही बल्कि विश्व की समस्त प्राचीन सभ्यताए जैसे-सिंधु सरस्वती,मेसोपोटाम

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चुंबकीय उत्तोलन और हिंदू मंदिर (Magnetic levitation and Hindu Temples)

16 मार्च 2015
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आपने जेकी चेन की The Myth नाम की फिल्म तो देखि ही होगी ?? नहीं तो जरुर देखे ,उसमे जेकी चेन एक पुरातत्व विद था जो भारत में एक मंदिर में आता है । उस मंदिर में साधू उड़ पा रहे थे क्युकी 2 काले जादुई पत्थर के कारण । यह कल्पना नहीं पर सत्य है ,पर साधू के बजाये मुर्तिया हवा में तैरती थी । चुम्बक का उल्लेख

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ज़फरनामा : गुरु गोविन्द सिंह का पत्र !

16 मार्च 2015
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भारत अनादि काल से हिन्दू देश रहा है. इस देश में जितने भी धर्म, संप्रदाय और मत उत्पन्न हुए हैं, उन सभी के अनुयायी, इस देश के वास्तविक उतराधिकारी हैं. लेकिन जब भारत पर इस्लामी हमलावरों का शासन हुआ तो उन्होंने हिन्दू धर्म और हिन्दुओं को मिटाने के लिए हर तरह के यत्न किये. आज जो हिन्दू बचे हैं, उसके लिए

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राजा जयसिंह के नाम शिवाजी का पत्र

17 मार्च 2015
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भारतीय इतिहास में दो ऐसे पत्र मिलते हैं जिन्हें दो विख्यात महापुरुषों ने दो कुख्यात व्यक्तिओं को लिखे थे। इनमे पहिला पत्र "जफरनामा" कहलाता है जिसे श्री गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब को भाई दया सिंह के हाथों भेजा था। यह दशम ग्रन्थ में शामिल है जिसमे कुल 130 पद हैं। दूसरा पत्र छ्त्रपति शिवाजी ने आमेर क

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क्या श्री राम ने पशु वध किया था ???

18 मार्च 2015
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मित्रो कुछ दिन पहले इसी साईट पर एक कविता पढने को मिली जिसमे एक नास्तिक मित्र ने आरोप किया की राम ने मास ,चर्म के लिए हिरन का पीछा किया था | उन्होंने बिना प्रमाण ये आक्षेप कर दिया अब पता नही उनकी केसी भावना हो लेकिन इससे यह बात तो पता चलती है कि नास्तिकता अगर बुद्ध जेसी न हो तो वो कुंठा .अवसाद बन जात

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स्वाध्याय का महत्व

20 मार्च 2015
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कई लोग कहते है कि केवल भक्ति ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है स्वाध्याय या वेद अध्ययन नही ..ये उन लोगो का भ्रम है जो ऐसा कहते है क्या बिना ज्ञान के कोई सही मार्ग पर जा सकता है नही जो ऋषि मुनि ईश्वर का साक्षात्कार किया उन्होंने स्वाध्याय को भी ईश्वर प्राप्ति में आवश्यक माना है | मह्रिषी पतंजली कहते है

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सोम रस ओर शराब

20 मार्च 2015
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कई पश्चमी विद्वानों की तरह भारतीय विद्वानों की ये आम धारणा है ,कि सोम रस एक तरह का नशीला पदार्थ होता है । ऐसी ही धारणा डॉ.अम्बेडकर की भी थी ,,डॉ.अम्बेडकर अपनी पुस्तक रेवोलुशन एंड काउंटर रेवोलुशन इन असिएन्त इंडिया मे निम्न कथन लिखते है:- . यहाँ अम्बेडकर जी सोम को वाइन कहते है ।लेकिन शायद वह

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ऊंटेश्वरी माता का महंत

30 मार्च 2015
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फादर ऐन्थानी फर्नान्डीस उर्फ फादर टोनी राष्ट्रवादी , स्वतंत्र चिंतक , ईमानदार और अपनी हिन्दू विरासत को मानने वाले गुजराती कैथोलिक ईसाई थे। वर्षों धर्मान्तरण कार्य में लगे रहने के दौरान जब उन्होंने कैथोलिक चर्च की समाज सेवा के नाम पर कुटिलता और धोखाधडी से धर्म परिवर्तन कराये जाने की साजिश को नजदीक

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टोन टोटके का एक रहस्य !

30 मार्च 2015
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ओ३म् मारय-मारय, उच्चाटय- उच्चाटय, विद्वेषय- विद्वेषय, छिन्दी- छिन्दी, भिन्दी- भिन्दी, वशीकुरू- वशीकुरू, खादय- खादय, भक्षय- भक्षय, त्राटय- त्राटय, नाशय- नाशय, मम शत्रुन् वशीकुरू- वशीकुरू, हुं फट् स्वाहा....!!" आदि मोहिनीमारण के तन्त्रमन्त्रोच्चार ने पूरे वातावरण को भयप्रेत कर दिया। विशाल जन समुदाय

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