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प्रत्युषा,  काव्य संग्रह

प्रत्युषा, काव्य संग्रह

काव्य संग्रह

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21 common.articles

निःशुल्क

प्रत्युषा,  काव्य संग्रह

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राम कृष्ण का देश है ये

22 अक्टूबर 2024
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राम कृष्ण का देश है ये, केवट को गले लगाया जाता है प्यार का मूल्य है यहां, सबरी माता के जूठे बेरों को खाया जाता है हर कोई ज्ञानी हो सकता, वाल्मीकि रामायण की रचना करते हैं राम छत्रिय होकर भी, भ

माँ

22 अक्टूबर 2024
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बहुत याद आती हो उम्र के आखरी पड़ाव में दर्द की कराह में जब कोई पास न हो साथी भी कोई साथ न हो जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़े हुये मन की व्यथा जब कोई न सुने व्याकुल हृदय की वेदना समझ काश हो, कि माँ आ ज

स्वपन

22 अक्टूबर 2024
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जाग जाते हैं रोज एक स्वपन देखकर देखते हैं  फिर अपने चारों और बेचैन होकर रात के घने अंधियारे में झिलमिलाती आँखों से उन रास्तों को तलाशते है जो छूटे हुए हैं वर्षों से उन अपनों को खोजते जो बिछड़े एक अ

ऐ जिंदगी

22 अक्टूबर 2024
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ऐ  जिंदगी, जब हम तुम्हें ख्वाब में देखते हैं भागते हैं पीछे, और नम आँखें से तुम्हें रोकते हैं फिर अचानक, जाने कहाँ गुम हो जाते हो तुम और बैचेन होकर, हम यहाँ-वहाँ दौड़ते हैं जब नींद टूटती है,

यूंही अक्सर

22 अक्टूबर 2024
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यूंही अक्सर खामोश रहने लगे थे जब से तुम बिछड़े शायद ही हम जिए थे गुमसुम से रहने लगे थे भरी महफिल में हम अपनों के बीच भी किसी को खोजते थे हम पूंजी कोई बची थी वो थी तुम्हारी यादें उन्हीं के बीच ही

दो कदम

21 अक्टूबर 2024
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दो कदम बस साथ चल लेते दो पल ठहर, कुछ बात कर लेते जाने से कब रोका था हमने मिलोगे कब, बस यही पूंछा था हमने सुबह-शाम बस  हाल ले लेते दो कदम बस साथ चल लेते रास्ते जीवन के कुछ ओझल हुए तेज आंधी में

एलबम के कुछ पुराने चित्र

21 अक्टूबर 2024
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एलबम के कुछ पुराने चित्र, एक बाद एक पलटते गये और उन पुराने छायाचित्रों में, अपनी छवि  तलाशते गये कुछ अपरचित सी लगने लगी पुरानी छवि  जैसे हमसे, हास परिहास करने लगी मानो पूंछ रही हो हमसे,  अपन

बदरा घिर आये लगा सावन है आया

21 अक्टूबर 2024
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बदरा घिर आये लगा सावन है आया कुछ बूंदों ने गिरकर मिट्टी को महकाया मोर भी पंख फैलाकर नाचने लगे जैसे सोये हुए सपने  जागने लगे ठंडी-ठंडी हवाएं भी चलने लगी तन-मन को शीतल करने लगी पर हवाओ ने यूं रुख

हाथ की लकीरों को

21 अक्टूबर 2024
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हाथ की लकीरों को, पढ़ने की कोशिश करते रहे कुछ पल सुकून के, इन लकीरो में तलाशते रहे बड़ी अदभुत ये लिपी है कुछ लाइनों में ही, पूरी जिंदगी सिमटी है कुछ सीधी, कुछ तिरछी लकीरें   कभी एक दूसरे से मि

किसको जिम्मेदार कहेंगे ?

21 अक्टूबर 2024
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नौकर ही बनना  सरकारी चाहे पद क्यों न हो चपरासी गणित में मास्टर डिग्री कैसे लाये मिडिल के सवाल न हल कर पाए खुद को न जिम्मेदार कहेंगे सरकार से सौ सवाल करेंगे  स्वरोजगार से दूर हुए, कौशल विकास स

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