हाथ की लकीरों को,
पढ़ने की कोशिश करते रहे
कुछ पल सुकून के,
इन लकीरो में तलाशते रहे
बड़ी अदभुत ये लिपी है
कुछ लाइनों में ही,
पूरी जिंदगी सिमटी है
कुछ सीधी, कुछ तिरछी लकीरें
कभी एक दूसरे से मिलती लकीरें
जैसे एक दूसरे से मिलने को आतुर
जीवन भर साथ देने को व्याकुल
फिर तलाशने लगे इन लकीरों में,
अपना बीता हुआ कल
कुछ छूटे हुए अपने,
साथ बिताए विस्मृत पल
खुद से किये हुए कुछ वादे
सपने पूरे करने के वो इरादे
एक कसक कुछ सपने खोने की
एक टीस मंजिल न मिलने की
जैसे सब कुछ समाहित था
लकीरों में हर पल अंकित था
शायद सब कुछ पहले से जानती थीं
ये लकीरें भविष्य पहचानती थीं