काव्य संग्रह
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खुले आसमान के तले, बिस्तर लगाकर सो जाना और सोने से पहले, चाँद को देर तक निहारना अब कहाँ संभव होता है? आसमान में केवल, एक सितारा देखकर डर जाना और फिर आकाश में चारों तरफ, अन्य सितारों को खोजना
ढ़ेर सारी बातों को सहेज रखा था क्या-क्या कहना है, सोच रखा था सोचा था, भावनायों को उड़ेल देंगे हर दर्द, शब्दों में कुछ यूं पिरो लेंगे उलझने भी कहेंगे, सुलझने भी कहेंगे पल-पल, क्षण-क्षण को कुछ यूँ ब
न जाने क्यों कुछ कविताएं पूरी नहीं होती हैं सिमिट के रह जाती हैं क्यों कुछ पंक्तियों में मुरझा जाती हैं क्यों बन्द होकर डायरियों में जैसे बिखर गयी हों पतझर के पत्तो की तरह कुम्हला गयीं हो किताब मे
मै शाम को बगीचे में एक बैंच पर खामोश बैठा हुआ था और मेरे सामने एक टूटी हुई जीर्ण हालत में बैंच पड़ी थी I अचानक उस बैंच पर एक चिड़िया आकर बैठी और फिर उड़ने लगी I कुछ दूर उड़ने के बाद वह फिर वापस आकर
बदरी को सरोवर की तरफ जाते हुए देखकर, मुस्कराते हुए चातक ने एक प्रश्न कर लिया किसी सोच में डूबी हो या भूल गयी हो तुम दिशा, हँसते हुए चातक ने एक व्यंग कर लिया न तो वहाँ तपती धरा, जो तुम्हारी प्र