बदरा घिर आये लगा सावन है आया
कुछ बूंदों ने गिरकर मिट्टी को महकाया
मोर भी पंख फैलाकर नाचने लगे
जैसे सोये हुए सपने जागने लगे
ठंडी-ठंडी हवाएं भी चलने लगी
तन-मन को शीतल करने लगी
पर हवाओ ने यूं रुख बदल लिया
शीतल पवन ने तूफा का रूप लिया
बादल बरसते, पर ये उड़ा ले गयी
हमारे हिस्से का सावन कहाँ ले गयी ?
बदरा घिर आये लगा सावन है आया
तपती धरा की उम्मीदों को जगाया
उम्मीद थी घटायें बरस जायेंगी
रिमझिम-रिमझिम हमको भिगो जायेंगी
पर घटाए हवाओं का रुख समझने लगी
बरसना था कहीं, कहीं बरसने लगी
कहीं नदियां सराबोर होने लगी
इतनी बरसी कि अब वो उफनने लगी
कहीं झुलसने लगे उम्मीदों के पल
धुलमिल आशाएं और आँखों में जल
क्या घटाएं फिर से घिर आएँगी ?
हमारे हिस्से का सावन लौटाएगी
बदरा घिर आये लगा सावन है आया
देखकर मेघ, पपीहा पीऊ-पीऊ गाया
उसे लगने लगा अब प्यास बुझ जायेगी
अम्बर से अब अमृत की बर्षा हो जायेगी
बड़ा लम्बा इंतजार, कुछ बूदों की आस
जैसे झूमने लगा, काली घटाए देख आज
उसे क्या पता, पल में सब बदल जायेगा
बदरा बरसेगा नही, हवाओ से मिल जायेगा
इंतजार और सही, कभी तो तरस खाएंगी
घटाए हमारे लिये भी, कभी घिर आएँगी
उम्मीदे एक दिन सराबोर हो जायेगी
हमारे हिस्से का सावन लेकर आएँगी