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माँ

22 अक्टूबर 2024

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बहुत याद आती हो

उम्र के आखरी पड़ाव में

दर्द की कराह में

जब कोई पास न हो

साथी भी कोई साथ न हो

जीर्ण-शीर्ण हालत में पड़े हुये

मन की व्यथा जब कोई न सुने

व्याकुल हृदय की वेदना समझ

काश हो, कि माँ आ जाओ निकट


बहुत याद आती हो

 बहुत याद आती हो माँ  


मेरे रोने की आवाज सुनकर

जान लेती थी, उसका भावार्थ

कष्ट से मेरे व्याकुल होकर

बैठी रहती थी, सिरहाने रातभर

और सहलाती रहती थी मेरे बाल

अपने ममतत्व भरे हाथों से

भर देती थी जीवन अमृत

अपने सारे सुख को त्याग के

आज क्यों इतना कठोर हृदय

मेरी आवाज न पहुँचपाती माँ


बहुत याद आती हो

बहुत याद आती हो माँ   


चेहरे को पढ़कर दुख-दर्द,

कैसे समझ जाती थी

कौन सी ऐसी विद्या है,

जो सिर्फ तुम्ही को आती थी

कभी लोरी तो कभी थप्पी

बॉहों का झूला तो कभी झप्पी

मुझे सुलाकर, मेरे चहरे को

अब रात-भर कौन दुलारे मॉ

नजर लगी मेरे बेटे को कह

नजर न अब कौन उतारे माँ  


बहुत याद आती हो

बहुत याद आती हो माँ  


सारे बंधन से मुक्त हो,

हे प्रभु जब मै आऊं   तुम्हारे द्वार

तुम्हरे चरणों का मोह नहीं

फिर पहुंचा देना मेरी माँ  के पास

फिर से पाकर वही अमृत गोद

वही ऑंचल छाँव , वही अमर रस

इतना उपकार करो मुझ पर

फिर वही स्वर्ग पा जाऊँ  माँ   


बहुत याद आती हो

बहुत याद आती हो माँ   



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