ऐ जिंदगी,
जब हम तुम्हें ख्वाब में देखते हैं
भागते हैं पीछे,
और नम आँखें से तुम्हें रोकते हैं
फिर अचानक,
जाने कहाँ गुम हो जाते हो तुम
और बैचेन होकर,
हम यहाँ-वहाँ दौड़ते हैं
जब नींद टूटती है,
तो एक बड़ा शून्य होता है
आँखों और अश्कों के बीच,
संघर्ष का दौर होता है
आखिर इस टकरार में,
अश्क जीत जाते हैं
नयनों के लाख समझने पर भी,
आँसू निकल ही आते हैं
जैसे ही सुबह होती है,
खुद से उलझ जाते हैं
कोई मानसिक रोग है यह,
दिल को ये समझाते हैं
अकसर इसी जदोजहद ,
पूरा दिन गुजर जाता है
दिल को पागल बनाने में,
यूं ही पूरा वक्त गुजर जाता है
ये जिंदगी,
जब हम तुम्हें ख्वाब में देखते हैं
भागते हैं पीछे,
और नम आँखें से तुम्हें रोकते हैं