
मुझे वह समय याद है ,
जब धूप का एक टुकड़ा सूरज की उंगली थाम कर,
अंधेरे का मेला देखता उस भीड़ में खो गया।।
सोचती हूँ: सहम और सूनेपन का एक नाता है,
मैं इसकी कुछ नहीं लगती,
पर इस छोटे बच्चे ने मेरा हाथ थाम लिया।
तुम कहीं नहीं मिलते,
हाथ को छू रहा है एक नन्हा सा गर्म श्वास,
न हाथ से बहलता है न हाथ को छोड़ता है।
अंधेरे का कोई पार नही,
मेले के शोर में भी खामोशी का आलम है,
और तुम्हारी याद इस तरह जैसे धूप का एक टुकड़ा।