काया की हक़ीक़त से लेकर,
काया की आबरू तक मैं थी,
काया के हुस्न से लेकर,
काया के इश्क़ तक तू था।।
यह मैं अक्षर का इल्म था,
जिसने मैं को इख़लाक दिया
यह तू अक्षर का जश्न था,
जिसने 'वह' को पहचान लिया।।
भय-मुक्त मैं की हस्तीऔर
भय-मुक्त तू की, 'वह' की
मनु की स्मृति,
तो बहुत बाद की बात है।।