#डिजिटलीकरण
आज बदल रहा मानव खुद को
बदल इतिहास को रहा अभी
देख रहा है वक़्त उसे,दौर
डिजिटलीकरण का
चल रहा अभी।।
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बीते जमाने की बातें हो जाएगी
जो भोगते अत्तित में थे सभी
अब कभी ना वो दौर आएगा
जिसमे सुकून मिलता था कभी।।01
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प्रदूषण मुक्त था कभी वातावरण हमारा
अधिकांश,स्वस्थ रहते थे प्राणी सभी
स्वस्थ तन था,स्वस्थ मन था,स्वस्थ
मस्तिष्क मानव का था कभी।।
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आज मानव का मस्तिष्क देखो आप
जिसे चाहो,जब चाहो देखो अभी
गर्दने झुकी हैं,नज़रे धसी हैं
मानव,घुसा मोबाइल में
झुका दिखे अभी।।02
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मनाओ खुशिया है विश्व मानवो
मानव करने,उन्नति लगा अभी
कद बढ़ने लगा है मानव का
परछाई घटती दिखे हैं अभी।।
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परछाई परिभाषा सदा यही हैं
छाव प्राणी को मिले कभी
घटने लगी हैं छाव धरा
दौर डिजिटलीकरण
का चला अभी।।03
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अब ना मिलती छाव अनजानी
जो पहले मिलती,दिखती थी कभी
राहो हो जाती कभी दुर्घटना कोई तो
मदद के लिए,हाथ,बढ़ते दिखते थे कभी।।
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चंद यादे अत्तित की बनी आज है
चंद यादे ओर बन जाएगी कभी
धरा हो रहा डिजिटलीकरण
मानव,बदलने खुद को लगा अभी।।04
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माना उनत्ति कर रहा हैं मानव,आज
विश्व से बाते कर सके live अभी
पर बातो से ना भरे कभी पेट हैं
धरा,बंजर होने हैं लगी अभी।।
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डिजिटलीकरण से जो निकले तरंगे
उससे प्रभाव मस्तिष्क पर पड़े अभी
वो प्राणी विलुप्त होने की कगार पर
जो खेतो से कीड़े,चुग कर खाते थे कभी।।05
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माना मानव कर चुका तरक्की
उपाय ढूंढ लिया इसका अभी
डालो यूरिया,छिड़को दवाई
कीड़े खुद मर जाएंगे सभी।।
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पर स्वाद बदला अब अन्न का
बदली पौष्टिकता उसमे अभी
नही असत्य आज शब्द हमारे
आप भी भोग रहे हो सत्य अभी।।06
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आज मनाओ खुशिया हैं धरा वासियो
दौर डिजिटलीकरण का चला अभी
अब कभी ना आए अत्तित दुबारा
यादे,यादों में ही रहेगी सभी।।
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जब तक जीवित हैं तब तक सुनाना
कहानी अपने वंशजो को सभी
कल तक केसी आबो
हवा थी हमारी
आज,
केसी बन चुकी है अभी।।08
स्वरचित
हरीश हरपलानी नज्ज्ज्ज्