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#कर्म और भाग्य
बहुत पुरानी बात आज है
दिखला आपको रहे अभी
साक्ष्य भी देगे धरा आपको
हैं शब्द हमारे जीवित सभी।।
था राजा एक इसी धरा पे,उसकी
पत्नी गर्भवती हुई कभी
जुड़वा सन्तानो को जना उसने
एक भाग्य तो एक कर्म जना तभी।।01
धीरे धीरे दोनो बड़े हुए
समय रुके ना धरा कभी
सम्राट के समक्ष आई चुनोती
कैसे उत्तराधिकारी हम चुने अभी।।
दोनो सन्ताने थी नेत्रो समान,कैसे
एक को श्रेष्ठ बनाए अभी
कोई कारण ना तर्क पास था
कैसे,किसे,सर्वश्रेष्ठ समझे अभी।।02
बुलाया दोनो को भरी सभा मे,बोले
सिद्ध आप खुद को करो अभी
उत्तराधिकारी हैं हमे
चुनना राष्ट्र का
अपनी,श्रेष्ठता साबित करो अभी।।
भाग्य बोले हम श्रेष्ठ है
हम से ही वैभव मिले सभी
हम नही तो कुछ भी नही,कभी
सब कुछ होकर भी व्यर्थ लगे सभी।।03
जिस पर दृष्टि पड़े हमारी
रंक भी राजा बने तभी
यही हमारी है
काबलियत
यही गुण धर्म हमारा हैं अभी।।
इसी आधार पर हम सर्वश्रेष्ठ है
है मुनिवरों,सम्राट सुनो सभी
भाग्य नही तो
प्राणी कभी नही
सम्राट बन सके आज अभी।।04
तर्क में दम था सुन रहा कर्म था
नमन उसने सबको किया तभी
बोले मुनिवरो,सम्राट सुनो
अब कर्म की सुनो आप सभी।।
कर्म नही तो कुछ भी नही कभी
सब कुछ मिथ्या लगे सभी
माना राजा की सन्ताने
राजा ही बने
पर सुकर्म ना करे
तो राज्य भी रुके ना कभी।।05
कर्म आधरित हैं प्राणी जीवन
चाहे,पशु,पक्षी,हो मानव सभी
कर्म नही तो कुछ भी नही
प्राणी भूखो मरे जनते ही सभी।।
कर्म श्रेष्ठ था,कर्म श्रेष्ठ है
कर्म ही सदा श्रेष्ठ रहे अभी
कर्म रच सके अपने भाग्य को
अगर सुकर्म करे जो कोई कभी।।06
कर्म नही तो भाग्य हैं वैसा
जैसे बिन अंग के प्राणी सभी
मात्र धड़ सा मिले शरीर तो,प्राणी
ऐसे भाग्य का करे कभी।।
मोहताजी में मिली भीख भी
समान शूल के लगे कभी
आज नही तो कल
जागे मन,तो
कोसे भाग्य को सभी।।07
यही तर्क हैं सम्राट हमारे
कर्म ही श्रेष्ठ सदा अभी
कर्म की छाया सदा भाग्य हैं
नही जुदा रहे भाग्य से कर्म कभी।।
बनाओ राजा आप चाहे जिसे
हम नही ऐतराज करेगे कभी
पर सत्यार्थ दर्शन तो
यही मात्र है
कर्म से ही भाग्य टिके सभी।।08
सुन रहा था जन मानस
सुन रहे थे सभापति सभी
तुरन्त प्रभाव से हुआ निर्णय
कर्म ही सर्वश्रेष्ठ बना तभी।।
सन्तुष्टि के भाव जगे थे सभी के
जाग्रत भाव भाग्य के हुए तभी
दृष्टि कर्म पर पड़ी ऐसी,कर्म
राजा बन गया था तभी।।09
कर्म बड़ा था कर्म बड़ा हैं
कर्म ही प्राणी का जीवन सभी
कर्म नही तो प्राणी हैं वैसा,जैसे
निर्जीव होते हैं शरीर सभी।।
हमारे कर्म है हाथो हमारे
नही अधीन वो किसी के कभी
भाग्य अधीन हो सके धरा पर,पर
कर्म आत्मनिर्भर सभी।।10
स्वरचित
हरीश हरपलानी
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