कैसे रोकता खुद को
मोहब्बत करने से उसके
शहर बनारस की हवा के
हर रूक में इश्क बहता है
कैसे कहूं उससे कि वह धड़कन
बनकर मेरे दिल में रहता हैं
उसे भी हमसे हुईं थी
एक तरफा मोहब्बत लेकिन
हमें भी उससे प्यार था
हमें बनारस के हर घाट पर
और उसे बनारस की गलियों
में हमारा इंतजार था
हमारे मुंह से निकला हर शब्द
मेरे इश्क को कहता है
कैसे कहूं कि वह धड़कन
बनकर मेरे दिल मैं रहता है
कहने को तो बहुत कुछ था
लेकिन कुछ कह ना सके
इश्क के दरिया तो दो थे
लेकिन कभी बह ना सके
दिलों की बातें एक दूसरों
को कभी बता ना सके
मोहब्बत तो बहुत थी हमें
लेकिन कभी जता न सके
इश्क की राह पर चलने
वाला अक्सर दर्द रहता है
कैसे कहूं उससे कि वह धड़कन
कर मेरे दिल में रहता है