मै गुमनाम रही, कभी बदनाम रहीमुझसे हमेशा रूठी रही शोहरत,तुम्हारी पहली पसंद थी मैफिर क्यो कहते हो मुझे दूसरी औरत ||ज़ुबान से स्वीकारा मुझे तुमनेपर अपने हृदय से नही,मै कोई वस्तु तो ना थीजिसे रख कर भूल जाओगे कहींअंतः मन मे सम्हाल कर रखोबस इतनी सी ही तो है मेरी हसरतपर क्यो कहते हो मुझे दूसरी औरत||तुम्हार