ऐ बादल तुम क्यों रोते हो,ऐ बादल तुम क्यों रोते हो,
तुम तो गगन के साथी हो
कोयल तुम क्यों मुंह लटकाये,
चुपचाप सी बैठी हो
मचलती इठलाती जब,
बागों में गाना गाती हो
मोर भी अपने पर फैलाये,
घनघोर घटा को रोते हैं
क्या होगा इंसानों का,
जो खेतों में दाना बोते हैं
पेड़ों कि अब सहज भावना,
अंबर के अधीन रही
कहा गया रंगों का मौसम,
ये बिल्कुल रंगीन नहीं
आत्म हत्या नित्य नित्य अब तो,
बढ़ती रही किसानी में
क्या होगा उन फसलों का,
जो डूब गयी हैं पानी में