शायद सबसे अच्छी तस्वीरें वो होती हैं, जिन्हें हम फेसबुक पे नहीं लगा सकते. उस पुराने एल्बम को देखते हुए लगा, हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला, मतलब डर तो पापा से आज भी लगता है, पर वो अब डाँटते नहीं हैं, मम्मी को मेरी फिक्र आज भी है, पर अब वो उतने सवाल नहीं करतीं और हाँ रही बात दोस्तों की, तो वो साले आज भी नहीं बदले, कल भी मेरी इज़्ज़त नहीं करते थे, आज भी नहीं करते हैं. कभी कभी इस उलझी हुई ज़िन्दगी में वो दिन याद आतें हैं तो लगता है काश, पर ‘काश’ से अच्छा लफ्ज़ ‘उम्मीद’ है और ‘एक आग़ाज़’ इसी उम्मीद की कहानी है. बस इतना समझ लीजिये, यहाँ वक़्त के बदले वक़्त मिलेगा......
1 फ़ॉलोअर्स
3 किताबें